प्रकाशित - 09 Apr 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
नींबू खरीदना इन दिनों आम आदमी को भारी पड़ रहा है। इसकी कीमत ने इस कदर रफ्तार पकड़ी है कि ये रुकने का नाम नहीं ले रही है। पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस समेत रोजमर्रा की कई चीजों के दाम मे बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। इस बीच नींबू की आसमान छूती कीमतों ने भीषण गर्मी के इस मौसम में नींबू को लोगों की पहुंच से दूर कर दिया है। एक महीने में ही नींबू 70 रूपए से 400 रूपए तक पहुंच गया है। सब्जी बेचने वाले 10 रूपए में 1 नींबू दे रहे हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार आने वालों दिनों में इसकी कीमत कम होने के आसार नहीं दिख रहे हैं। बता दें कि नींबू को कम लागत में ज्यादा मुनाफा वाली फसल बोला जाता है। इसमें कई औषधीय गुण समाहित होते हैं। यह वजह है कि बाजार में इसकी मांग साल भर बनी रहती है। भारत दुनिया का सबसे अधिक नींबू उत्पादन वाला देश है। भारत इसकी खेती तमिलनाडू, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, असम, आंध्रप्रेदश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात आदि राज्यों में की जाती है। हालांकि, पूरे भारत में इसकी खेती की जाती है। किसान अलग-अलग राज्यों में नींबू की अलग-अलग किस्मों की खेती करते है। आपकों बता दें कि नींबू का एक पौधों को एक बार लगाने के बाद 10 वर्ष तक पैदावार प्राप्त कर सकते है। नींबू का एक पौधा लगभग 3 साल बाद अच्छी तरह बड़ा हो जाता है। इसके पौधों से पूरा साल पैदावार होती रहती है। एक एकड़ में नीबू की खेती में लगभग 4 से 5 लाख रूपये सालाना कमाई हो सकती है। देश में कई किसान नींबू की खेतीकर अच्छा-खासा मुनाफा कमा रहे हैं, अगर आप भी नींबू की खेती कर अच्छी कमाई करना चाहते है, तों आज हम आपको ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से नींबू की खेती कैसे करें और नींबू की अच्छी किस्म कौनसी है, तथा नींबू के मंडी भाव के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
नींबू की खेती अधिक मुनाफे वाली खेती के रूप में की जाती है। इसके पौधे एक बार पूर्ण विकसित हो जाने पर कई वर्षो तक पैदावार देते हैं। पौध लगाने के बाद केवल इन्हे देखरेख की आवश्यकता होती है। इसकी पैदावार भी प्रति वर्ष बढ़ती जाती है। इसके एक पेड़ में 20 से 30 किलों तक नींबू मिल जाते है जबकि मोटे छिलके वाले नींबू की उपज 30 से 40 किलों तक हो सकती है। नींबू की बाजार में मांग साल भर बनी रहती है। नींबू का मंडी भाव 40 से 70 रूपए किलो के हिसाब से होता है। इस हिसाब से किसान को एक एकड़ नींबू के खेती से लगभग 4 से 5 लाख रूपये सालाना कमाई आसानी से हो सकती है।
पिछले कई दिनों से लगातार गर्मी बढ़ने के साथ नींबू की मांग बढ़ी है। गर्मी में नींबू की पैदावार बढ़ने के साथ ही उसकी डिमांड भी बढ़ जाती है। लोकल मंडियों के सब्जी विक्रेताओं का कहना है कि आमतौर पर गर्मियों के मौसम में सब्जियों की कीमतों में उछाल देखने को मिलता है। लेकिन इस बार नींबू के दाम बढ़ने के पीछे गर्मी के अलावा भी कई दूसरे कारण हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा माना जा रहा है। इससे ट्रांसपोर्ट का खर्च बढ़ने के कारण सब्जियों की कीमतों में भी इजाफा देखने को मिल रहा है। इन दिनों दिल्ली समेत एनसीआर के कई इलाकों में नींबू की कीमतें 300 रूपये प्रति किलो के पार पहुंच गई है। नींबू की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी की रसोई का बजट बिगाड़ दिया है। दो सप्ताह पहले तक 140-150 रुपये प्रति किलो में बिकने वाले नींबू का रेट 220 से 240 रुपये हो गया है। एक महीने में ही नींबू 70 रूपए से 400 रूपए तक पहुंच गया है।
देश में कई जगहों पर नींबू 300 रूपए प्रति किलो के पार हो गया है। कई जगहों पर 10 रूपए में सिर्फ एक ही नींबू मिल रहा है। नींबू अलग अलग दामों में बिक रहा है, इसमें 240 रूपए से लेकर 280 रूपये प्रति किलो तक के भाव शामिल है। बीते हफ्ते जो नींबू 200 रूपए प्रति किलो बिक रहा था वो अब 250 प्रति किलों के पार चला गया है। दिल्ली की आईएनए मार्केट में नींबू के दाम 350 रूपए प्रति किलो तो वहीं नोएडा के बाजार में 80 रूपये के ढाई सो ग्राम बिक रहा है। गाजीपुर स्थिति सब्जी मंडी से दुकानदारों को 230 रूपये किलो दिया जा रहा है, इसके बाद ग्राहकों को बाजार में 280 रूपए प्रति किलो मिल रहा है। हरा नींबू जिसके दाम 280 और दूसरा पीला नींबू जो कि 360 रूपये प्रति किलो बिक रहा है।
देश के प्रमुख शहरों में नींबू की कीमत | शहर भाव (रूपए/किलोग्राम) |
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दिल्ली | 350 से 400 रूपए |
भोपाल | 300 से 400 रूपए |
जयपुर | 350 से 400 रूपए |
लखनऊ | 250 रूपए |
मुंबई | 300 से 350 रूपए |
रायपुर | 200 से 250 रूपए |
इसकी कई किस्में होती हैं, जो प्रायः प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके उत्पादन के स्थान मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर प्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा प्रमुख हैं।
कागजी नींबू : इस किस्म के नींबू को भारत में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। कागजी नींबू से 52 प्रतिशत रस की मात्रा प्राप्त हो जाती है। इस किस्म को व्यापारिक रूप में नहीं उगाया जाता है। फल 50 से 55 किग्रा प्रति पौधा होता है।
बारामासी : इस वैरायटी में साल में 2 बार नींबू का फल आता है। फल पकने का समय जुलाई से अगस्त, फरवरी से मार्च तक का होता है। इस जाति के नींबू में प्रति पौधा 55 से 60 किलोग्राम नींबू का फल आता है।
मीठा नींबू : इस फल की कोई विशेष किस्म नही होती। इसमें नए पौधे तैयार करते समय उन्हीे पौधों का चश्मा लिया जाता है जिन पर अधिक फल आते हों। फल उत्पादन 300 से 500 किलोग्राम प्रति पौधा।
प्रमालिनी : प्रमालिनी किस्म को व्यापारिक रूप में उगाया जाता है। इस किस्म के नींबू गुच्छो में तैयार होते है, जिसमे कागजी नींबू की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। इसके एक नींबू से 57 प्रतिशत तक रस प्राप्त हो जाता है। फल 40 से 50 किलोग्राम प्रति पौधा
विक्रम किस्म का नींबू : नींबू की इस किस्म को अधिक पैदावार के लिए उगाया जाता है। विक्रम किस्म के पौधों में निकलने वाले फल गुच्छे के रूप में होते है, जिसके एक गुच्छे से 7 से 10 नींबू प्राप्त हो जाते है। इस किस्म के पौधों पर पूरे वर्ष ही नींबू देखने को मिल जाते है। पंजाब में इसे पंजाबी बारहमासी के नाम से भी जानते है।
इसके अलावा नींबू की चक्रधर, विक्रम, पी के एम-1, साई शरबती, अभयपुरी लाइम, करीमगंज लाइम ऐसी किस्में है, जिन्हे अधिक रस और पैदावार के लिए उगाया जाता है।
नीबू अधिकांशतः उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है। इसका आदिस्थान संभवतः भारत ही है। यह हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से 4,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है। नींबू के पौधे के लिए बलुई, दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी गयी है। इसके अलावा लाल लेटराईट मिट्टी में भी नीबू उगाया जा सकता है। नीबू की खेती अम्लीय या क्षारीय मिट्टी में भी की जा सकती है। इसे पहाड़ी क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। नीबू के पौधे को सर्दी और पाला से बचाने की जरूरत होती है। 4 से 9 पीएच मान वाली मृदा में नीबू की खेती की जा सकती है।
नींबू के पौधे के लिए अर्ध शुष्क जलवायु सबसे अच्छी होती है। जहां पर सर्दियां अधिक पड़तीं हैं या पाला पड़ता है, वहां पर नीबू की खेती में पैदावार कम होती है, क्यों अधिक सर्दी पड़ने से नीबू के पौधे का विकास रुक जाता है। इसलिये भारत में नीबू की सबसे अधिक खेती उष्ण जलवायु वाले दक्षिण भारत के प्रदेशों में होती है। उत्तर भारत के पंजाब,हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार,राजस्थान में नीबू की खेती की जाती है लेकिन जिस वर्ष सर्दियों में अधिक सर्दी पड़ती है, उस सीजन में नीबू की पैदावार बहुत कम होती है।
नींबू की बिजाई यानी बीज की बुआई भी की जा सकती है। नींबू के पौधों की रोपाई भी की जा सकती है। नींबू की खेती के लिए दोनों ही विधियों से बुआई की जा सकती है। पौधों रोपकर नींबू की खेती जल्दी और अच्छी होती है तथा इसमें मेहनत भी कम लगती है, जबकि बीज बोकर बुआई करने से समय और मेहनत दोनों अधिक लगते हैं। नींबू के पौधों की रोपाई करने के लिए आप इसके पौधों को नर्सरी से खरीद लेना चाहिए। खरीदे गए पौधे एक महीने पुराने और बिलकुल स्वस्थ होने चाहिए। खेत में उन्नत किस्म की फसल लेनी हो और उसकी पौध न मिल रही हो तब आपको बीज बोकर ही खेती करनी चाहिये।
पौधों की रोपाई के लिए जून और अगस्त का महीना उचित माना जाता है। यह मौसम ऐसा होता है जिसमें नींबू का पौधा सबसे तेजी से बढ़ता है। बारिश के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है। इस दौरान बारिश का पानी भी पौधे को मिलता है। दूसरा पौधे की बढ़वार के लिए सबसे उपयुक्त तापमान इस समय होता है। पौध रोपाई के बाद इसके पौधे तीन से चार वर्ष बाद उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते है। नींबू के पौधों को लगाने के लिए खेत में तैयार किये गए गड्डो के मध्य 10 फीट की दूरी रखी जाती है, जिसमे गड्डो का आकार 70 से 80 सेमी. चौड़ा और 60 सेमी. गहरा गड्ढा खोदकर उसमें मिट्टी में बराबर गोबर की खाद आदि मिक्स करके फिर पौधे की रोपाई करनी चाहिए। नींबू खेती के लिए एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 600 पौधों की आवश्यकता होती है।
नींबू के पौधों को खेत में लगाने के बाद गोबर की खाद देनी होती है। पहले साल गोबर की खाद प्रति पौधे के हिसाब से 5 किलो देनी चाहिये। दूसरे साल 10 किलो पौधा गोबर की खाद देना चाहिये। इसी अनुपात में गोबर की खाद को तब तक बढ़ाते रहना चाहिये जब तक उसमें फल न आने लगे। इसी तरह खेत में यूरिया भी पहले साल 300 ग्राम देनी चाहिये। दूसरे साल 600 ग्राम देनी चाहिये। इसी अनुपात में इसको भी बढाते रहना चाहिये। यूरिया की खाद को सर्दी के महीने में देना चाहिये तथा पूरी मात्रा को दो या तीन बार में पौधें में डालें।
नींबू के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि नींबू की रोपाई या बीजाई जनू से अगस्त माह में की जाती है। यह मौसम बारिश का होता है। इसलिए इन्हें इस दौरान अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। वर्षाकाल में बारिश न हो तो 15 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिये लेकिन यह सिंचाई हल्की होनी चाहिये जिससे भूमि में 6-8 प्रतिशत तक नमी बनी रहे। सर्दियों में पाला व सर्दी से बचाने के लिए एक सप्ताह मे एक बार पानी अवश्य देना चाहिये। इसके अलावा पौधे में कलियां आती दिखाई दें तब पानी देने की जरूरत है। उसके बाद पानी को रोक देना चाहिये। जड़ों में अधिक पानी होने के कारण फूल हल्के किस्म के आते हैं और वे झड़ जाते हैं। जिससे पैदावार पर सीधा असर पड़ता है। इसके पौधों की सिंचाई नियमित अंतराल में ही करे। अधिक पानी देने पर खेत में जलभराव की समस्या हो सकती है, जो पौधों के लिए काफी हानिकारक भी है।
कीट रोग नियंत्रण : कीटों से होने वाले रोगों पर नियंत्रण के लिए एन्थ्रेकनोज के मिश्रण का छिड़काव करने से नियंत्रण होता है। इसके छिड़काव से मुख्य रोगों के अलावा अन्य कई तरह के कीट रोग पर भी काबू पाया जा सकता है।
गोंद रिसाव रोग : गोंद रिसाव का रोग खेत में पानी भर जाने के कारण होता है। जड़ें गलने लगतीं हैं और पौधा पीला पड़ने लगता है। सबसे पहले तो खेत से पानी को निकाला जाना चाहिये। उसके बाद मिट्टी में 0.2 प्रतिशत मैटालैक्सिल, एमजेड-72 और 0.5 प्रतिशत ट्राइकोडरमा विराइड मिलाकर पौधों में डालने से लाभ मिलता है।
कैंकर रोग : इस रोग के संकेत मिलने पर पौधों पर स्ट्रेप्टोमाइसिल सल्फेट का छिड़काव 15 दिन में दो बार करना चाहिये। इससे काफी फायदा मिलता है।
काले धब्बे का रोग : इस रोग का असर फल पर देखनों को मिलता है। इस रोग से प्रभावित होने पर नींबू के ऊपर काले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है। आरम्भ में पानी से साफकर इस रोग को बढ़ने के रोक सकते है। सफेद तेल और कॉपर कोमिक्स करके पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिये।
रस चूसने वाले कीट : नींबू के पेड़ की शाखाओं और पत्तियों का रस चूसकर खत्म करने वाले कीट सिटरस सिल्ला, सुरंगी, चेपा को नियंत्रण के लए मोनोक्राटोफॉस का छिड़काव पौधों पर करना चाहिये। पौधों की शाखाएं रोग से सूख गई हों तो उन्हें तत्काल काटकर जला दें ताकि यह रोग और न बढ़ सके।
सफेद धब्बे का रोग : इस रोग में पौधों के ऊपरी भाग में रुई जैसी जमी दिखाई देती है। इससे पत्तियां मुड़कर टेढ़ी-मेढ़ी होने लगतीं हैं। बाद में इसका सीधा असर फल पर पड़ता है। इसलिये जैसे ही इस रोग का पता चले तभी प्रभावित पत्तियों को हटाकर जला दें। रोग बढ़ने पर कार्बेनडाजिम का छिड़काव महीने में तीन या चार बार करें।
आयरन व जिंक की कमी को नियंत्रण करें : कभी कभी मिट्टी में जिंक व आयरन की कमी के कारण पौधों की बढ़वार रुक जाती है और पत्तियां पीलीं पड़कर गिरने लगतीं हैं। इस रोग के लगने पर गोबर की खाद दें तथा दो चम्मच जिंक 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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