प्रकाशित - 10 Jan 2024
भारत में रबी सीजन में सरसों व गेहूं की खेती (Mustard and wheat cultivation) प्राथमिकता से की जाती है। गेहूं की खेती (wheat cultivation) में चार से छह सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। ऐसे किसानों को गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए गेहूं की निर्धारित समय सिंचाई करनी चाहिए। यदि किसान भाई गेहूं की समय पर सिंचाई करते हैं तो उससे काफी अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसी के साथ ही सिंचाई करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए इसकी भी जानकारी किसानों के लिए जरूरी है।
अक्सर देखा गया है कि कई किसान गेहूं की बुवाई करते हैं लेकिन उनको इतना अच्छा उत्पादन नहीं मिल पाता है। जबकि जो किसान गेहूं की बुवाई के साथ ही सिंचाई पर भी विशेष रूप से ध्यान देते हैं उन्हें बेहतर पैदावार प्राप्त होती है। गेहूं एक ऐसी फसल है जिसमें अधिक पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन सिंचाई की उन्नत विधियों का प्रयोग करके इसमें पानी की बचत की जा सकती है, साथ ही बेहतर पैदावार भी प्राप्त की जा सकती है।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको गेहूं में कब और किस समय सिंचाई करनी चाहिए, गेहूं में सिंचाई करते समय पानी की बचत कैसे कर सकते हैं। गेहूं में सिंचाई करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी हो सके आदि जरूरी बातों की जानकारी दे रहे हैं।
गेहूं की फसल (wheat crop) की कब सिंचाई की जाए यह बात मिट्टी की नमी की मात्रा पर निर्भर करती है। यदि मौसम ठंडा है और भूमि में नमी बनी हुई है तो सिंचाई देरी से की जा सकती है। इसके विपरित यदि भूमि सूखी पड़ी है तो तुरंत सिंचाई की आवश्यकता होती है। यदि मौसम गर्म है तो पौधों को सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है। ऐसे में समय-समय पर सिंचाई की जानी चाहिए ताकि भूमि में नमी की मात्रा बनी रहे और पौधे सही तरीके से बढ़ोतरी कर सके। गेहूं के बेहतर उत्पादन के लिए इसकी फसल को 35 से 40 सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति किसान अलग-अलग निर्धारित समय पर कर सकते हैं।
आम तौर पर गेहूं की फसल में 4 से 6 सिंचाई करना पर्याप्त रहता है। इसमें रेतीली भूमि में 6 से 8 सिंचाई की आवश्यकता होती है। रेतीली मिट्टी में हल्की सिंचाई की जानी चाहिए जिसके लिए 5 से 6 सेंटीमीटर पानी की जरूरत होती है। वहीं भारी मिट्टी में गहरी सिंचाई की जरूरत होती है, इसमें किसान को 6-7 सेंटीमीटर तक सिंचाई करनी चाहिए। यह सभी सिंचाई गेहूं के पौधे की अलग-अलग अवस्था में करनी चाहिए जिससे अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।
यदि आपके पास सिंचाई की बेहतर सुविधा उपलब्ध है तो आप गेहूं की फसल की 4 से 6 बार तक सिंचाई कर सकते हैं। यह सिंचाई गेहूं की विभिन्न अवस्थाओं में की जा सकती है। गेहूं की विभिन्न अवस्थाओं में सिंचाई करने को लेकर जो क्रम है व इस प्रकार से है
ऐसे किसान जिनके पास सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की उपलब्धता नहीं हैं वे किसान उपलब्ध पानी की मात्रा के अनुसार गेहूं की फसल में सिंचाई कर सकते हैं। यदि किसान के पास तीन सिंचाइयों की सुविधा ही उपलब्ध है तो किसान को ताजमूल अवस्था यानि की 20-25 दिनों पर, गांठ बनने की अवस्था यानी 65-70 दिनों पर और दुग्धावस्था यानी की 105-110 दिनों पर आवश्यक रूप से करनी चाहिए। वहीं यदि किसान के पास केवल दो सिंचाई के लिए ही पानी उपलब्ध है तो किसानों को ताजमूल अवस्था तथा जब फसल में फूल आ रहे हों यानी की 90 से 95 दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए। वहीं यदि किसान के पास केवल एक ही सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो तो ताजमूल अवस्था पर सिंचाई करनी चाहिए।
गेहूं की फसल की सिंचाई में सतही क्यारी विधि के उपयोग से अधिक पानी खर्च होता है। ऐसे में किसानों को आधुनिक सिंचाई की नवीन विधियों का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि पानी की बचत की जा सके। इसके लिए किसान बूंद-बूंद सिंचाई जिसे ड्रिप सिंचाई भी कहते हैं इसका उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा फव्वारा सिंचाई तकनीक का इस्तेमाल करके पानी की बचत की जा सकती है। एक अनुमान के मुताबिक ड्रिप सिंचाई का उपयोग करके किसान 50 से 70 प्रतिशत तक पानी की बचत कर सकते हैं। जबकि फव्वारा तकनीक के उपयोग से 60 प्रतिशत तक जल की बचत की जा सकती है। ऐसे में सिंचाई की यह दोनों तकनीकें अपनाकर किसान पानी की बचत करते हुए गेहूं की बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। बता दें कि ड्रिप सिंचाई व फव्वारा सिंचाई के लिए सरकार की ओर से सब्सिडी भी दी जाती है। इसमें ड्रिप सिंचाई सिस्टम के लिए सरकार की ओर से लघु एवं सीमांत किसानों को 55 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है, जबकि अन्य वर्ग के किसानों को 45 प्रतिशत तक सब्सिडी दिए जाने का प्रावधान है।
फसलों की सिंचाई करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए जिससे पैदावार बेहतर मिल सके। फसल में सिंचाई का कार्य करते समय जिन बातों का ध्यान रखना चाहिए, वे प्रमुख बातें इस प्रकार से हैं
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