प्रकाशित - 10 Dec 2023
इस समय रबी फसलों की बुवाई का काम चल रहा है। रबी की फसलों में चना भी शामिल है। यह एक दलहनी फसल है। इसका दाल के रूप में उपयोग तो किया ही जाता है। इसके अलावा इसे पीसकर बेसन भी बनाया जाता है जिससे बहुत से व्यंजन बनाए जाते हैं। इसकी बाजार मांग अच्छी होने से कई किसान चने की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यदि आपके पास सिंचाई की सुविधा है तो आप दिसंबर में इसकी पिछेती किस्मों की बुवाई कर सकते हैं। जिन किसानों ने चने की बुवाई कर ली है, उनके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की ओर से दिसंबर माह के लिए महत्वपूर्ण सलाह जारी की गई है जो आपके चने की पैदावार को बढ़ाने में सहायक हो सकती है।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से चने की पैदावार बढ़ाने में सहायक चार बातों के बारे में बता रहे हैं जिससे चने का बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
चने की बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए इसकी खेती को खरपतवार से मुक्त रखना जरूरी होता है। इसके लिए किसान चने की बुवाई के 30 दिन के बाद एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें ताकि खरपतवारों को निकालना आसान हो जाए। इससे चने के पौधों की जड़ों की अच्छी बढ़वार होती है और पैदावार भी अधिक मिलती है।
चने की बुवाई के 30 से 40 दिनों बाद शीर्ष कालिका की तुड़ाई से भी अधिक शाखाएं बनने से भी पैदावार ज्यादा मिलती है।
उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में फूल बनते समय एक सिंचाई लाभकारी रहती है। वहीं उत्तर पश्चिमी मैदानी तथा मध्य भारत के क्षेत्रों में दो सिंचाई अधिक लाभकारी होती है जिसमें पहली सिंचाई शाखाएं निकलते समय की जाती है और दूसरी सिंचाई फूल बनते समय करना लाभकारी रहता है।
चने की खेती (gram cultivation)में कीट रोग प्रबंधन करना भी जरूरी होता है। इससे भी चने की पैदावार में काफी असर पड़ता है। चने की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप अधिक होता है। ऐसे में इसके नियंत्रण के लिए प्रति हैक्टेयर 2.0 किलोग्राम जिंक मैगनीज कार्बामेंट को 1000 लीटर पानी में घोलकर 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव किया जा सकता है।
जल की उपलब्धता होने पर मृदा में नमी के अभाव में सर्दी में बारिश नहीं होने पर चने की फसल की पहली सिंचाई बुवाई के 40 से 50 दिन में की जा सकती है। वहीं इसकी दूसरी सिंचाई 70-75 दिन के बाद करना लाभकारी होता है। फूल की अवस्था में सिंचाई नहीं करनी चाहिए अन्यथा फूलों के गिरने की संभावना अधिक रहती है। साथ ही खरपतवारों के पैदा होने की समस्या सामने आती है। चने की सिंचाई स्प्रिंकलर विधि से करना अच्छा रहता है। इससे कम पानी में अधिक क्षेत्र की सिंचाई कर सकते हैं। इसके उपयोग से करीब 40 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है।
चने की पिछेती गई फसल में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करना चाहिए। इसे बुवाई से पहले कुंडों में करना लाभकारी होता है। जिन क्षेत्रों में जस्ता की कमी है, वहां चने की फसल में 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हैक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए। वहीं देरी से बोई गई फसल में शाखा या फली बनते समय 2 प्रतिशत यूरिया अथवा डीएपी के घोल का छिड़काव करने से अच्छी पैदावार मिलती है।
चने की फसल में बहुत से रोगों का प्रकोप होता है। इनमें चने का झुलसा रोग मुख्य है। इसकी रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर 2.0 किलोग्राम जिंक मैगनीज कार्बामेंट को 1000 लीटर पानी में घोलकर 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा क्लोरोथालोनिल 70 प्रतिशत डब्ल्यूपी/ 300 ग्राम प्रति एकड़ या कार्बेंडाजिम 12 प्रतिशत + मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यूपी/ 500 ग्राम प्रति एकड़ या मेटिराम 55 प्रतिशत + पायरोक्लोरेस्ट्रोबिन 5 प्रतिशत डब्ल्यूजी/600 ग्राम/ एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव भी कर सकते हैं। वहीं जैविक उपचार के रूप में ट्राईकोडर्मा विरडी/500 ग्राम प्रति एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस/ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव किया जा सकता है।
चने की बुवाई से पहले खेत को पुरानी फसल के अवशेषों से मुक्त रखना चाहिए। इससे भूमिगत फफूंदी रोग का विकास नहीं होगा। अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए चने की बुवाई उचित दूरी पर करनी चाहिए। बुवाई के लिए प्रमाणिक बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए। बीजों को बोने से पहले उनके अंकुरण क्षमता की जांच अवश्य कर लेनी चाहिए ताकि अच्छी पैदावार मिल सके। इसके लिए 100 बीजों को पानी में आठ घंटे तक भिगोकर रख दें। इसके बाद बीजों को पानी से निकालकर गीले तौलिये या बोरे से ढककर साधारण कमरे के तापमान में रख दें। 4-5 दिन तक बीजों को ऐसे ही रहने दें। इसके बाद अंकुरित बीजों की संख्या गिन लें। यदि 90 से अधिक बीज अंकुरित हुए हैं तो अंकुरण प्रतिशत ठीक मानें। यदि इससे कम बीज अंकुरित होते हैं तो बुवाई के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज का उपयोग करें या बीज की मात्रा बढ़ा दें। इसके बाद सीडड्रिल मशीन से बीजों की बुवाई करें। बुवाई के समय यदि खेत में नमी की मात्रा कम हो तो बीज को नमी के संपर्क में लाने के लिए बुवाई गहराई में करें तथा पाटा लगाएं। पौधों की संख्या 25 से 30 वर्ग मीटर के हिसाब से रखनी चाहिए। पंक्तियों (कूंडों) के बीच की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखनी चाहिए। सिंचित अवस्था में काबुली चने में कूंडों के बीच की दूरी 45 सेमी रखनी चाहिए। चने की पछेती बुवाई में कम बढ़ोतरी के कारण पैदावार में होने वाली कमी की भरपाई के लिए सामान्य बीज दर में 20 से 25 प्रतिशत तक बढ़ाकर बुवाई करनी चाहिए। वहीं देरी से बुवाई की अवस्था में पंक्ति से पंक्ति की दूरी कम करके 25 सेमी रखनी चाहिए। चने के बीज की मात्रा दानों के आकार, बुवाई की समयावधि और भूमि की उर्वराशक्ति पर निर्भर करती है। वैसे सामान्य तौर पर देसी छोटे दानों वाली किस्म के लिए बीज दर 65 से 75 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर, मध्यम दानों वाली किस्म के लिए बीज दर 75-80 किलोग्राम और काबुली चने की किस्मों के लिए बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखी जाती है।
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