प्रकाशित - 06 Sep 2023
खरीफ फसल का सीजन (Kharif crop season) चल रहा है। इसके तहत अधिकांश राज्यों के किसानों ने धान की रोपाई की है। अब धान बड़ी हो गई है। ऐसे समय में धान की फसल को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। यदि धान की फसल की इस समय सही से देखभाल कर ली जाए तो इससे काफी बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। यही वह समय होता है, जब धान में खरपतवार बढ़ती है और कई तरह के कीट भी धान के पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे इसकी पैदावार में कमी आ जाती है। ऐसे में सितंबर माह में धान की फसल को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। धान की फसल का यह बढ़वार का समय होता है और ऐसे में हम कुछ तरीके अपनाकर धान की फसल से काफी अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको धान की फसल में इस माह के महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो धान की खेती (Paddy farming) के तहत बेहतर पैदावार प्राप्त करने में सहायक होंगे, तो आइये जानते हैं, इसके बारे में।
धान की बेहतर पैदावार के लिए सितंबर माह में किसान भाई यह चार महत्वपूर्ण काम कर सकते हैं, जो इस प्रकार से हैं
सितंबर के महीने में धान की फसल पर कई प्रकार के कीटों का प्रकोप बना रहता है। इसमें धान ब्लास्ट रोग (rice blast disease) का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है। यह रोग फसल के फुटाव के समय आता है। इस रोग का पहचान यह है कि इसकी बालियों में काले धब्बे बनने लगते हैं और दाना नहीं बनता है। यदि आपको अपनी धान की फसल में इस रोग से लक्षण दिखाई दे तो इसकी तुरंत रोकथाम करें। इस रोग की रोकथाम के लिए 200 ग्राम कार्वेंडाजिम या हिप्नोसान या 120 ग्राम वीम 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
धान का झुलसा रोग (rice blight) इसकी पत्तियों से फैलता है। यह एक जीवाणु जनित रोग है। यह रोग पौधों की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक कभी भी हो सकता है। इसलिए रोग के लिए समय-समय पर धान के पौधे की निगरानी रखना जरूरी है। इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं। इस दौरान सूखे पीले पत्ते दिखाई देने लगते हैं। साथ ही इसमें राख के रंग जैसे चकत्ते भी नजर आने लगते हैं। संक्रमण अधिक हो तो पौधे की पूरी पत्ती सूख जाती है। इससे फसल को काफी हानि होती है। ऐसे में बुवाई के समय उपचारित बीज का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन, 25 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड प्रति 10 लीटर पानी के घोल में बीज को 12 घंटे तक डुबाए रखें और फिर इसे छाया में सुखाकर बुवाई करनी चाहिए।
धान में झुलसा रोग (rice blight) का प्रकोप दिखाई दें तो जल्द ही इसके बचाव के उपाय करने चाहिए ताकि इसकी सही समय पर रोकथाम कर फसल को बर्बाद होने से बचाया जा सकें। धान के झुलसा रोग से बचाव के लिए आप निम्नलिखित उपाय अपना सकते हैं
धान की फसल के पकते समय नसवार जैसे दाने, धान के दानों के साथ लग जाते हैं। इससे फसल की उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस रोग को “फाल्स स्मट” के नाम से जाना जाता है। रोगग्रस्त दाने आकार में सामान्य दानों से दोगुने या 5-6 गुना होते हैं। रोग को कम करने के लिए 500 ग्राम मैंन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
भूरा धब्बा नामक रोग होने पर इसकी रोकथाम के लिए जिंक मैग्जीन कार्बोनेट 75 प्रतिशत की 2 किलोग्राम मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।
गंधीबग कीट का आक्रमण होने पर धान की फसल को भारी नुकसान हो सकता है। इस कीट के आक्रमण से धान के खेत से दुर्गंध आने लगती है। इसके व्यस्क एवं शिशु कीट दोनों दूधिया अवस्था में दानों से रस चूसकर उन्हें खोखला कर देते हैं। ऐसे में उन पर काले धब्बे बन जाते हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए मैलाथियान धूल 5 डी/ 1-5 ग्राम प्रति हैक्टेयर या एफीसेट 75 एस.पी/1-5 ग्राम प्रति लीटर पानी या डी.डी.वी.पी. 76 ई.सी./1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या क्यूनालफॉस 25 ई.सी./ 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
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