धान की फसल में इस माह करें ये 4 काम, पैदावार में होगी बढ़ोतरी

Share Product प्रकाशित - 06 Sep 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

धान की फसल में इस माह करें ये 4 काम, पैदावार में होगी बढ़ोतरी

जानें, धान की फसल में इस माह किए जाने वाले काम और इसके लाभ

खरीफ फसल का सीजन (Kharif crop season) चल रहा है। इसके तहत अधिकांश राज्यों के किसानों ने धान की रोपाई की है। अब धान बड़ी हो गई है। ऐसे समय में धान की फसल को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। यदि धान की फसल की इस समय सही से देखभाल कर ली जाए तो इससे काफी बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। यही वह समय होता है, जब धान में खरपतवार बढ़ती है और कई तरह के कीट भी धान के पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे इसकी पैदावार में कमी आ जाती है। ऐसे में सितंबर माह में धान की फसल को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। धान की फसल का यह बढ़वार का समय होता है और ऐसे में हम कुछ तरीके अपनाकर धान की फसल से काफी अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। 

आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको धान की फसल में इस माह के महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो धान की खेती (Paddy farming) के तहत बेहतर पैदावार प्राप्त करने में सहायक होंगे, तो आइये जानते हैं, इसके बारे में।

धान की फसल में इस माह करें यह 4 महत्वपूर्ण काम

धान की बेहतर पैदावार के लिए सितंबर माह में किसान भाई यह चार महत्वपूर्ण काम कर सकते हैं, जो इस प्रकार से हैं

  • धान में जल प्रबंधन की उचित व्यवस्था रखें, खेत में ज्यादा पानी खड़ा नहीं होने दें। इसके लिए पानी को खेत में बाहर निकालें, लेकिन इतना पानी खेत में अवश्य हो जिससे भूमि में नमी बनी रहे। इसके लिए आप 2 इंच से अधिक गहरा पानी न रखें।
  • यदि आपकी धान की फसल 20 दिन की हो गई है तो इसमें पाटा अवश्य चलाएं। इससे कल्ले अच्छे निकलेंगे और उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। पाटा चलाते समय खेत में पानी भरा होना जरूरी है।
  • बालियां और फूल निकलने के समय खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखना बेहद जरूरी है। इसके लिए आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहें। यहां सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि एक सिंचाई से दूसरी सिंचाई में अंतराल होना चाहिए। ऐसे में खेत का पानी सूखने के 2 से तीन दिन बाद दूसरी सिंचाई करें।धान में यदि नत्रजन की तीसरी किस्त नहीं दी है तो आप इसे इस माह अवश्य दें। इसके लिए आप तीन या चार बोरी यूरिया खेत में शाम के समय बिखेर दें। वहीं धान में नाइट्रोजन की दूसरी मात्रा ड्रेसिंग के रूप में 50-55 दिन बाद जब पौधे में बालियां बनने लगे तब उन्नतशील प्रजातियों के लिए 30 किलोग्राम नाईट्रोजन की मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें। वहीं सुगंधित प्रजातियों के लिए 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें।

धान की फसल को ब्लास्ट रोग से बचाने के लिए क्या करें किसान

सितंबर के महीने में धान की फसल पर कई प्रकार के कीटों का प्रकोप बना रहता है। इसमें धान ब्लास्ट रोग (rice blast disease) का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है। यह रोग फसल के फुटाव के समय आता है। इस रोग का पहचान यह है कि इसकी बालियों में काले धब्बे बनने लगते हैं और दाना नहीं बनता है। यदि आपको अपनी धान की फसल में इस रोग से लक्षण दिखाई दे तो इसकी तुरंत रोकथाम करें। इस रोग की रोकथाम के लिए 200 ग्राम कार्वेंडाजिम या हिप्नोसान या 120 ग्राम वीम 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

धान को झुलसा रोग से होता है बहुत नुकसान

धान का झुलसा रोग (rice blight) इसकी पत्तियों से फैलता है। यह एक जीवाणु जनित रोग है। यह रोग पौधों की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक कभी भी हो सकता है। इसलिए रोग के लिए समय-समय पर धान के पौधे की निगरानी रखना जरूरी है। इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं। इस दौरान सूखे पीले पत्ते दिखाई देने लगते हैं। साथ ही इसमें राख के रंग जैसे चकत्ते भी नजर आने लगते हैं। संक्रमण अधिक हो तो पौधे की पूरी पत्ती सूख जाती है। इससे फसल को काफी हानि होती है। ऐसे में बुवाई के समय उपचारित बीज का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन, 25 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड प्रति 10 लीटर पानी के घोल में बीज को 12 घंटे तक डुबाए रखें और फिर इसे छाया में सुखाकर बुवाई करनी चाहिए।

धान की फसल को झुलसा रोग से बचाने के लिए क्या करें

धान में झुलसा रोग (rice blight) का प्रकोप दिखाई दें तो जल्द ही इसके बचाव के उपाय करने चाहिए ताकि इसकी सही समय पर रोकथाम कर फसल को बर्बाद होने से बचाया जा सकें। धान के झुलसा रोग से बचाव के लिए आप निम्नलिखित उपाय अपना सकते हैं

  • जिस खेत में रोग लगा हो उसका पानी दूसरे खेत में नहीं जाने दें। इससे रोग फैलने की संभावना होती है।
  • खेत में रोग को फैलने से रोकने के लिए खेत में समुचित जल निकास की व्यवस्था की जानी चाहिए तभी इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
  • इस दौरान नाईट्रोजन उर्वरक का प्रयोग कम कर दें।झुलसा रोग की रोकथाम के लिए रासायनिक उपायों में आप 74 ग्राम एग्रीमाइसीन-100 ग्राम और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से तीन से चार बार छिड़काव कर सकते हैं। इसमें पहला छिड़काव रोग प्रकट होने पर करें। इसे बाद आवश्यकतानुसार 10 दिन के अंतराल में इस छिड़काव को दोहराया जा सकता है। 
  • इसके अलावा आप 74 ग्राम एग्रीमाइसीन-100 और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से तीन-चार बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव रोग प्रकट होने पर तथा उसके पश्चात आवश्यकतानुसार 10 दिनों के अन्तराल पर किया जा सकता है। 

धान में फाल्स स्मट रोग के नियंत्रण के लिए क्या करें

धान की फसल के पकते समय नसवार जैसे दाने, धान के दानों के साथ लग जाते हैं। इससे फसल की उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस रोग को “फाल्स स्मट” के नाम से जाना जाता है। रोगग्रस्त दाने आकार में सामान्य दानों से दोगुने या 5-6 गुना होते हैं। रोग को कम करने के लिए 500 ग्राम मैंन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।

धान में भूरा धब्बा नामक रोग की ऐसे करें रोकथाम

भूरा धब्बा नामक रोग होने पर इसकी रोकथाम के लिए जिंक मैग्जीन कार्बोनेट 75 प्रतिशत की 2 किलोग्राम मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।

गंधीबग कीट से सुरक्षा के लिए के लिए इस दवा का करें छिड़काव

गंधीबग कीट का आक्रमण होने पर धान की फसल को भारी नुकसान हो सकता है। इस कीट के आक्रमण से धान के खेत से दुर्गंध आने लगती है। इसके व्यस्क एवं शिशु कीट दोनों दूधिया अवस्था में दानों से रस चूसकर उन्हें खोखला कर देते हैं। ऐसे में उन पर काले धब्बे बन जाते हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए मैलाथियान धूल 5 डी/ 1-5 ग्राम प्रति हैक्टेयर या एफीसेट 75 एस.पी/1-5 ग्राम प्रति लीटर पानी या डी.डी.वी.पी. 76 ई.सी./1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या क्यूनालफॉस 25 ई.सी./ 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

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