परवल की खेती : कृषि वैज्ञानिकों के सुझाव से करें परवल की खेती, होगी अधिक पैदावार

Share Product Published - 18 Apr 2022 by Tractor Junction

परवल की खेती : कृषि वैज्ञानिकों के सुझाव से करें परवल की खेती, होगी अधिक पैदावार

खेती किसानी : ज्यादा कमाई के लिए इस प्रकार करें परवल की खेती 

आपने कई सब्जियों के नाम सुने होंगे और इनका जायका भी लिया होगा? उन्हीं में से एक है परवल। परवल का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। यह सब्जी देखने में तो छोटी है, लेकिन सेहत के लिए इसके बड़े फायदे हैं। परवल भारत की बहुत ही प्रचलित सब्जी है। परवल की खेती गर्म एवं तर जलवायु वाले क्षेत्रो में अच्छी तरह से की जाती है। इसको ठंडे क्षेत्रो में बहुत कम उगाया जाता है। परवल की उपज एक वर्ष में 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से होती है। इसकी उपज इसके बोने के तरीके पर निर्भर है। यदि परवल को वैज्ञानिक सुझावों के साथ इसके पौधों का ध्यान रखा जाये तो लगभग चार साल तक 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्राप्त होती है। वर्तमान समय में किसान परवल की उन्नत खेती करके काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। आप भी परवल की उन्नत खेती कर सकते हैं। परवल बहुवार्षिक सब्जी होने के कारण इसकी खेती वर्ष भर की जाती हैं। परवल को बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल में सामान्य तौर पर उगाया जाता है। इनके अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश, असम, महाराष्ट, गुजरात में भी ये कुछ क्षेत्रों में परवल की खेती की जाती है। परवल में विटामिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। स्थानीय बाजार में इसकी मांग वर्ष भर अधिक रहती है। किसान भाई परवल की खेती कर अच्छी कमाई कर सकतें है। आइए, ट्रैक्टरजंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से जानते हैं, कि परवल की खेती कैसे होती है? इसकी खेती से कितना मुनाफा कमाया जा सकता है। 

परवल क्या है?

परवल का वैज्ञानिक नाम ट्राइकोसेन्थेस डायोइका रोक्सब है। इसे पॉइंटिड गोल्ड के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधों के कुकुरबिटास परिवार से संबंध रखता है। यह एक बेल वाली सब्जी की फसल है। परवल का सब्जियों में विशिष्ट स्थान है। इसके फल सुपाच्य होते हैं। शरीर के परिसंचारण तंत्र को बबल प्रदान करते है। कई शोधों में पाया गया कि परवल में कई औषधीय गुण पाये जाते हैं। परवल के औषधीय गुण में एंटीहाइपरग्लाइसेमिक (रक्त में ग्लूकोज के स्तर को कम करने वाला गुण), एंटीहाइपरलिपिडेमिक (कोलेस्ट्रॉल कम करने वाला गुण), एंटीट्यूमर, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीडायरियल (दस्त के लक्षणों से राहत देने वाला गुण) शामिल हैं। ये सभी गुण सेहत के लिए कई प्रकार से फायदेमंद हो सकते हैं और कई बीमारियों के लक्षण को भी कम कर सकते हैं।

परवल की प्रमुख उन्नतशील किस्में 

वर्तमान समय में बाजारों में परवल की कई उन्नत किस्में मौजूद हैं। किसान भाई समय और जगह के हिसाब से परवल की इन उन्नत किस्मों का चयन कर परवल की अधिक पैदावार को प्राप्त कर सकते हैं। ये किस्में इस प्रकार हैं- 

  • स्वर्ण अलौकिक : इस किस्म के परवल के फलों का रंग हरा और आकार अंडाकार होता है। ये 5 से 8 से.मी लम्बे होते हैं। ये सब्जी तथा मिठाई बनाने हेतु उपयुक्त हैं।
  • स्वर्ण रेखा :  इसके फलों की लम्बाई 8 से 10 से.मी. होती है। इनका उपयोग  सब्जी और मिठाई बनाने के लिए किया जाता है। 
  • राजेन्द्र परवल-1 :  यह किस्म मुख्य रूप से बिहार के दियारा क्षेत्र में उगाई जाती है।
  • राजेन्द्र परवल-2 :   ये किस्म यू.पी. एवं बिहार के लिए उपयुक्त है।
  • एफ. पी-1 : इसके फल गोल एवं हरे रंग के होते हैं,इसे मुख्य रूप से यू.पी और बिहार प्रदेश में उगाया जाता है। 
  • एफ. पी-3 :  इस प्रजाति के फल पर्वल्याकार के होते हैं तथा इन पर हरे रंग की धारियां होती हैं। ये पूर्वी एवं पश्चिमी यू.पी के लिए उपयुक्त हैं। 

इनके अलावा कुछ अन्य लोकप्रिय परवल की उन्नत प्रजातियां होती हैं जैसे- बिहार शरीफ, हिल्ली, डंडाली, नरेंद्र परवल 260, नरेंद्र परवल 307, फैजाबाद परवल 1, 2, 3, 4,  स्वर्ण रेखा, स्वर्ण अलौकिक, निमियां, सफेदा, सोनपुरा, संतोखबा, तिरकोलबा, गुथलिया इत्यादि परवल की उन्नत प्रजातियां है।

परवल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Parwal Farming)

परवल की खेती के लिए गर्म एवं अधिक आर्द्रता वाली जलवायु उपयुक्त होती है। परवल की खेती वहां अच्छी पैदावार देती है जहां औसत वार्षिक वर्षा 100 से 120 सेंमी. हो। इसके अलावा तापक्रम 5 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए। लेकिन जहां सिंचाई की सुविधा न हो, वहाँ भी परवल की खेती सफलतापूर्वक होती है। इसके अलावा सर्दियों के मौसम में इसकी खेती को नहीं किया जा सकता है, क्योकि इसके पौधे सर्दियों में गिरने वाले पाले को सहन नहीं कर सकते। 

परवल की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी एवं तापमान

परवल की खेती के लिए गर्म जलवायु अच्छी मानी जाती है। परवल की खेती गर्म एवं तर जलवायु वाले क्षेत्रो में अच्छी तरह से की जाती है। परवल की खेती के लिए उचित जल निकास वाली जीवांशयुक्त रेतीली या दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी गई हैं क्योंकि इसकी लताएँ पानी के रुकाव को सहन नही कर पाती हैं।  इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान भी सामान्य होना चाहिए। अत: ऊंचे स्थानों पर जहाँ जल निकास की उचित व्यवस्था हो वहीं पर इसकी खेती करनी चाहिए। इसके बीजो को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है। परवल के फलों के बीज, शल्क और जड़ो के ठीक तरह से अंकुरण के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। अधिकतम व न्यूनतम तापमान पैदावार को प्रभावित करता है।

परवल की पौध रोपण व बुवाई विधि

खेत बुवाई बीज एवं तना कलम के द्वारा कर सकते हैं। बीजों द्वारा उत्पन्न पौधे कमजोर होते हैं तथा उनमे लगभग 50 प्रतिशत नर एवं इतनी ही मादा लताये होती है। परवल की व्यापारिक खेती के लिए परवल के तने के टुकडो का प्रयोग करते हैं। इसमें अधिकांश कलम मादा लताओं से लेते हैं। 5 से 10 प्रतिशत कलम नर लता से लेते है, ताकि परागकण अच्छे से हो सके। इस विधि में सितम्बर-अक्टूबर में बेलों के टुकड़े नर्सरी में लगाते है। उनके द्वारा जड़ पकड़ लेने पर उन्हें फरवरी-मार्च में खेतों में लगा देते हैं। इस विधि में पौधे जल्द बढ़ते हैं तथा फलन अगेती होती है परन्तु कठिनाई यह है कि बड़े पैमाने पर परवल की रोपाई के लिए अत्यधिक संख्या में जड़ वाली कलमों का उपलब्ध होना एक प्रमुख समस्या भी है। परवल की कलम को दो प्रकार से लगाया जाता है। 

  • सीधी लता वाली विधि : इस विधि में खेत में 30 से.मी. गहरी नाली खोद कर उसे कम्पोस्ट खाद एवं मिट्टी के मिश्रण से भर देते है। इसमें 50 से.मी. लम्बी कलम को छोर से दो मीटर के अंतर पर 10 से.मी. की गहराई पर रख देते हैं।
  • छल्ला विधि : इसमें 8 से 10 पर्व वाली और 1 से 1.5 मीटर लम्बी कलम का अंग्रेजी के आठ के आकार का छल्ला सा बनाते हैं।  उसे दो मीटर के अंतर पर लगाते हैं। एक बार लगाई हुई लताएँ 4 से 5 वर्ष तक अच्छी फसल देती हैं। इस विधि से यह फायदा है कि प्रति वर्ष नई लता नहीं रोपनी पड़ती है। परवल की कलम को इस प्रकार लगाते हैं कि 8 से 10 मादा लताओं की कलम के बाद एक नर लता की कलम लगा देते हैं। एक हेक्टेयर के लिये 6000 से 7500 कलम की आवश्यकता होती है। 

परवल की खेती में उर्वरक की मात्रा (Parwal ki Kheti)

परवल की बुवाई कलम एवं बीजों द्वारा होती है। परवल वर्षानुवार्शी लता होने के कारण इनकों काफी मात्रा में तत्वों की अवश्यकता होती है। परवल की खेती के लिए 200 से 250 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। इसके साथ ही 90 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस  और पोटाश की पूरी मात्रा गड्ढों  या नालियों में खेत तैयारी के समय देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा फूल आने की अवस्था में देना चाहिए। इसके बाद भी दूसरे एवं तीसरे साल भी सड़ी गोबर की खाद प्रति वर्ष खड़ी फसल में फल आने की अवस्था पर देना चाहिए। साथ ही अच्छी पैदावार के लिए आवश्यकतानुसार नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश का मिश्रण भी प्रयोग करना चाहिए। 

परवल के पौधों की सिंचाई

परवल के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें कलम या तना की रोपाई के बाद नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। इसमें प्रथम सिंचाई कलम  रोपाई के तुरंत बाद कर देना चाहिए। इसके बाद आवश्यकता पड़े तो 8 से 10 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए, लेकिन ठंड के दिनों में 15 से 20 दिनों के अंतराल में तथा गर्मियों में 10 से 12 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें। मेड़ पर लगाए गए पौधो की सिंचाई को ड्रिप सिंचाई विधि द्वारा करना चाहिए। बारिश के मौसम में इसके पौधो को जरूरत पडऩे पर ही पानी देना चाहिए।

परवल में होने वाले रोग एवं इनका नियंत्रण

  • चूर्णिल आसिता रोग : इस रोग के लग जाने से पौधो की पत्तियां सफेद रंग की दिखाई देने लगती हैं। पौधा पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है। 
  • नियंत्रण : कैराथेन,सल्फेक्स या टोपाज का उचित मात्रा में घोल बना कर पौधो पर छिडक़ाव करना चाहिए ।
  • लाल भृंग कीट रोग : लाल भृंग कीट रोग पौधों पर अंकुरण के बाद दिखाई देता है। इस तरह का कीट रोग पौधो की पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है। 
  • नियंत्रण : सुबह के समय पौधो पर राख का छिडक़ाव करें।
  • फल मक्खी रोग : इस रोग का लार्वा फलों के अंदर सुरंग बनाकर घुस जाता है, फल को पूरी तरह से नष्ट कर देता है। 
  • नियंत्रण : इंडोसल्फान या मेलाथियान का उचित मात्रा में पौधों पर छिडक़ाव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।

इसके अतिरिक्त भी परवल के पौधों पर कई तरह के रोग देखने को मिल जाते हैं, जैसे  रू-फल सडऩ, डाउनी मिल्डयू, मोजैक आदि।

परवल के फलो की तुड़ाई, पैदावार/लाभ

बुवाई या रोपाई के बाद परवल के पौधे तीन से चार माह में पैदावार देना आरम्भ कर देते हैं। परवल के पौधे प्रथम वर्ष में 70 से 90 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर के दर से पैदावार देते हैं। लेकिन पूर्ण रूप से विकसित हो जाने के बाद यह उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार हो जाती है। पूर्ण रूप से विकसित परवल के पौधे 4 वर्ष तक पैदावार देते हैं। परवल की विभिन्न प्रकार की किस्मों में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से तकरीबन 150 से 200 क्विंटल की पैदावार पाई जाती है। इसका बाजारी भाव 40 रुपए किलो के आसपास होता है। इस तरह से किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत में परवल की खेती कर लगभग 8 लाख रुपए सालाना तक की कमाई कर सकते हैं। 

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