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जीरे की खेती कैसे करें : जानें जीरे की किस्में और खेती का तरीका

Published - 04 Nov 2021

जीरे की बुवाई का उचित समय, इन किस्मों की करें बुवाई, होगी अच्छी पैदावार

मसाला फसलों में जीरे का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। कोई भी सब्जी बनानी हो या दाल या अन्य कोई डिश सभी में जीरे का प्रयोग किया जाता है। बिना इसके सारे मसालों का स्वाद फीका सा लगता है। जीरे को भूनकर छाछ, दही आदि में डालकर खाया जाता है। जीरा न केवल आपके स्वाद को बढ़ता है बल्कि स्वास्थ की दृष्टि से भी इसका सेवन काफी फायदेमंद है। इसका पौधा दिखने में सौंफ की तरह होता है। संस्कृत में इसे जीरक कहा जाता है, जिसका अर्थ है, अन्न के जीर्ण होने में (पचने में) सहायता करने वाला। यदि इसकी उन्नत तरीके से खेती की जाए तो इसका बेहतर उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। आइए जानते हैं जीरे की उन्नत खेती का तरीका और इस दौरान ध्यान रखने वाली बातों के बारें में ताकि किसान भाइयों को इसकी खेती से लाभ मिल सके।

 

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जीरे का वानस्पतिक नाम व पौधे की विशेषता

जीरा (वानस्पतिक नाम- क्यूमिनम सायमिनम) एपियेशी परिवार का एक पुष्पीय पौधा है। जीरा इसी नाम (जैविक नाम- क्युमिनम सायमिनम) के जैविक पौधे के बीज को कहा जाता है। यह पौधा पार्स्ले परिवार का सदस्य है। इसका पौधा 30-50 सेमी (0.98-1.64 फीट) की ऊंचाई तक बढ़ता है और इसके फ़लों को हाथ से ही तोड़ा जाता है। यह वार्षिक फसल वाला मुलायम एवं चिकनी त्वचा वाला हर्बेशियस पौधा है। इसके तने में कई शाखाएं होती हैं एवं पौधा 20-30 सेंमी ऊंचा होता है। प्रत्येक शाखा की 2-3 उपशाखाएं होती हैं एवं सभी शाखाएं समान ऊंचाई लेती हैं जिनसे ये छतरीनुमा आकार ले लेता है। इसका तना गहरे हरे रंग का सलेटी आभा लिए हुए होता है। इन पर 5-10 सेमी. की धागे जैसे आकार की मुलायम पत्तियां होती हैं। इनके आगे श्वेत या हल्के गुलाबी वर्ण के छोटे-छोटे पुष्प अम्बेल आकार के होते हैं। प्रत्येक अम्बेल में 5-7 अम्ब्लेट होती हैं।

 


भारत में कहां-कहां होता है जीरे का उत्पादन / जीरे की फसल

देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा गुजरात व राजस्थान राज्य में उगाया जाता है। राजस्थान में देश के कुल उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत जीरे का उत्पादन किया जाता है तथा राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में कुल राज्य का 80 प्रतिशत जीरा पैदा होता है लेकिन इसकी औसत उपज (380 कि.ग्रा.प्रति हे.) पडौसी राज्य गुजरात (550 कि.ग्रा.प्रति हेक्टेयर) के अपेक्षा काफी कम है।


जीरे में पाएं जाने वाले विटामिन व अन्य पोषक तत्व

जीरा एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सिडेंट है और साथ ही यह सूजन को करने और मांसपेशियों को आराम पहुचांने में कारगर है। इसमें फाइबर भी पाया जाता है और यह आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीज, जिंक व मैगनीशियम जैसे मिनरल्स का अच्छा सोर्स भी है। इसमें विटामिन ई, ए, सी और बी-कॉम्प्लैक्स जैसे विटामिन भी खासी मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए इसका उपयोग आयुर्वेद में स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम बताया गया है।


जीरे की उन्नत किस्में और उनकी विशेषताएं

  • आर जेड-19 : जीरे की यह किस्म 120-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे 9-11 क्विंटल तक प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त होता है। इस किस्म में उखटा, छाछिया व झुलसा रोग कम लगता है।
  • आर जेड- 209 : यह भी किस्म 120-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने मोटे होते हैं। इस किस्म से 7-8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है। इस किस्म में भी छाछिया व झुलसा रोग कम लगता है।
  • जी सी- 4 : जीरे की ये किस्म 105-110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके बीज बड़े आकार के होते हैं। इससे 7-9 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह किस्म उखटा रोग के प्रति संवेदशील है।
  • आर जेड- 223 : यह किस्म 110-115 दिन में पककर तैयार हो जाती है। जीरे की इस किस्म से 6-8 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। ये किस्म उखटा रोग के प्रति रोधक है। इसमें बीज में तेल की मात्रा 3.25 प्रतिशत होती है।


जीरे की खेती से पूर्व जानने वाली महत्वपूर्ण बातें

  • जीरे की खेती के लिए उपयुक्त समय नवंबर माह के मध्य का होता है। इस हिसाब से जीरे की बुवाई 1 से लेकर 25 नवंबर के बीच कर देनी चाहिए।
  • जीरे की बुवाई छिडक़ाव विधि से नहीं करते हुए कल्टीवेटर से 30 सेमी. के अंतराल में पंक्तियां बनाकर करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से जीरे की फसल में सिंचाई करने व खरपतवार निकालने में समस्या नहीं होती है।
  • जीरे की खेती के लिए शुष्क एवं साधारण ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। बीज पकने की अवस्था पर अपेक्षाकृत गर्म एवं शुष्क मौसम जीरे की अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक होता है।
  • जीरे की फसल के लिए वातावरण का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक व 10 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर जीरे के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  • अधिक नमी के कारण फसल पर छाछ्या तथा झुलसा रोगों का प्रकोप होने के कारण अधिक वायुमण्डलीय नमी वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए अनुपयुक्त रहते हैं।
  • अधिक पालाग्रस्त क्षेत्रों में जीरे की फसल अच्छी नहीं होती है।
  • वैसे तो जीरे की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन रेतीली चिकनी बलुई या दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थो की अधिकता व उचित जल निकास हो, इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।
  • जीरे की सिंचाई में फव्वारा विधि का उपयोग सबसे अच्छा रहता है। इससे जीरे की फसल को आवश्यकतानुसार समान मात्रा में पानी पहुंचाता है।
  • दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई नहीं करनी चाहिए ऐसा करने से बीज हल्का बनता है।
  • गत वर्ष जिस खेत में जीरे की बुवाई की गई हो, उस खेत में जीरा नहीं बोए अन्यथा रोगों का प्रकोप अधिक होगा।


जीरे की खेती का तरीका / जीरे की खेती कैसे करें?

जीरे की खेती के लिए सबसे पहले खेत की तैयारी करें। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई तथा देशी हल या हैरो से दो या तीन उथली जुताई करके पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। इसके बाद 5 से 8 फीट की क्यारी बनाएं। ध्यान रहे समान आकार की क्यारियां बनानी चाहिए जिससे बुवाई एवं सिंचाई करने में आसानी रहे। इसके बाद 2 किलो बीज प्रति बीघा के हिसाब से लेकर 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा से प्रति किलो बीज को उपचारित करके ही बुवाई करें। बुवाई हमेशा 30 सेमी दूरी से कतारों में करें। कतारों में बुवाई सीड ड्रिल से आसानी से की जा सकती है।


खाद व उर्वरक

बुवाई के 2 से 3 सप्ताह पहले गोबर खाद को भूमि में मिलाना लाभदायक रहता है। यदि खेत में कीटों की समस्या है, तो फसल की बुवाई के पहले इनके रोकथाम हेतु अन्तिम जुताई के समय क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत, 20 से 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला लेना लाभदायक रहता है। ध्यान रहे यदि खरीफ की फसल में 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाली गयी हो तो जीरे की फसल के लिए अतिरिक्त खाद की आवश्यकता नहीं है। अन्यथा 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से जुताई से पहले गोबर की खाद खेत में बिखेर कर मिला देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जीरे की फसल को 30 किलो नत्रजन 20 किलो फॉस्फोरस एवं 15 किलो पोटाश उर्वरक प्रति हेक्टेयर की दर से दें। फॉस्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा एवं आधी नत्रजन की मात्रा बुवाई के पूर्व आखिरी जुलाई के समय भूमि में मिला देनी चाहिए। शेष नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 से 35 दिन बाद सिंचाई के साथ दें।


कब-कब करें सिंचाई

जीरे की बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। जीरे की बुवाई के 8 से 10 दिन बाद दूसरी एक हल्की सिंचाई दे जिससे जीरे का पूर्ण रूप से अंकुरण हो पाए। इसके बाद आवश्यकता हो तो 8-10 दिन बाद फिर हल्की सिंचाई की जा सकती है। इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर दाना बनने तक तीन और सिंचाई करनी चाहिए। ध्यान रहे दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई नहीं करनी चाहिए ऐसा करने से बीज हल्का बनता है।


खरपतवार नियंत्रण के उपाय

जीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद सिंचाई करने के दूसरे दिन पेडिंमिथेलीन खरतपतवार नाशक दवा 1.0 किलो सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से छिडक़ाव करना चाहिए। इसके 20 दिन बाद जब फसल 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कर देनी चाहिए।


फसल चक्र अपनाना है जरूरी

जीरे के बेहतर उत्पादन के लिए फसल चक्र अपनाना बेहद जरूरी है। इसके लिए यदि एक ही खेत में बार-बार जीरे की फसल नहीं बोनी चाहिए इससे उखटा रोग का अधिक प्रकोप होता है। इसके लिए उचित फसल चक्र अपनाना को अपनाना चाहिए। इसके लिए बाजरा-जीरा-मूंग-गेहूं -बाजरा- जीरा तीन वर्षीय फसल चक्र को अपनाया जा सकता है।


कब करें कटाई

जब बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाएं तथा फसल पूरी पक जाए तो तुरंत इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। पौधों को अच्छी प्रकार से सुखाकर थ्रेसर से मंढाई कर दाना अलग कर लेना चाहिए। दाने को अच्छे प्रकार से सुखाकर ही साफ बोरों में इसका भंडारण करना चाहिए।


प्राप्त उपज और लाभ

बात करें इससे प्राप्त उपज की तो जीरे की औसत उपज 7-8 क्विंटल बीज प्रति हेक्टयर प्राप्त हो जाती है। जीरे की खेती में लगभग 30 से 35 हजार रुपए प्रति हेक्टयर का खर्च आता है। जीरे के दाने का 100 रुपए प्रति किलो भाव रहना पर 40 से 45 हजार रुपए प्रति हेक्टयर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

 

 

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