प्रकाशित - 30 Dec 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
भारत में लगभग सभी प्रकार की खेती की जाती है। भारत के हर राज्य व क्षेत्र में अलग-अलग जलवायु होने से मिट्टी में अंतर देखने को मिलता है जिस कारण से अलग-अलग समय पर अलग-अलग फसलों की खेती की जाती है। इसी कड़ी में किसान शकरकंद की खेती करके अधिक उत्पादन व लाभ कमा सकते हैं। आलू की तरह दिखने वाला शकरकंद भारत समेत पूरी दुनिया में खाने के लिए पसंद किया जाता है। शकरकंद निर्यातक देश की सूची में भारत छठे नंबर पर है। भारत में शकरकंद की खेती अब कई राज्यों में जबरदस्त तरीके से हो रही है और किसान इसकी फसल से बढ़िया मुनाफा भी कमा रहे हैं। शकरकंद की मांग अपने देश के साथ-साथ पूरे विश्व में बनी रहती है। जिसके कारण किसान इसकी खेती करके बंपर मुनाफा कमा सकते हैं। किसान भाईयों आज ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से शकरकंद की खेती करने का तरीका, शकरकंद की खेती कब और कैसे करें, आपको शकरकंद की खेती का समय तथा शकरकंद की खेती से जुड़ी सभी जानकारियां आपके साथ साझा करेंगे।
शकरकंद की खेती वैसे तो पूरे भारत में की जा सकती है, लेकिन मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार और महाराष्ट्र कुछ ऐसे राज्य हैं, जहां पर शकरकंद का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है। इसकी खेती करने के लिए समुद्र तल से 1600 मीटर की ऊंचाई उपयुक्त होती है। पूरे विश्व में शकरकंद की सबसे ज्यादा खेती व उत्पादन करने वाला देश चीन है।
आज के समय में शकरकंद की कई उन्नत किस्मों को भारत में उगाया जा रहा है। फसल उत्पादन के आधार पर इसकी 3 प्रजातियों की खेती भारत में की जाती हैं। शकरकंद के कंद लाल, पीले और सफ़ेद रंग के होते हैं।
इस किस्म की शकरकंद के कंद में पानी की मात्रा काफी कम होती है तथा इसके कंद में विटामिन ए की मात्रा अधिक पायी जाती है।
इस किस्म के कंदों का छिलका और गुदा पीले रंग का होता है। इस किस्म की खेती भारत के दक्षिण राज्यों में अधिक की जाती है तथा इसके पौधों में 14 प्रतिशत तक बीटा केरोटीन की मात्रा पायी जाती है। शकरकंद की इस किस्म में प्रति एक एकड़ 20 टन से अधिक का उत्पादन प्राप्त होता है।
इस क़िस्म के पौधे 105 से 110 दिन में खुदाई करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस शकरकंद के कंदों का बाहरी रंग पीला तथा अंदर से यह हरे रंग के होते हैं। इस किस्म में एक एकड़ से 15 से 20 टन का उत्पादन आसानी से प्राप्त होता है।
शकरकंद की यह किस्म खुरखुरी होती है। इसी वजह से इस प्रजाति की कंद को अधिक सहनशील और शक्तिशाली माना जाता है।
शकरकंद की इस क़िस्म की कंद का बाहरी रंग पीला मटियारा होता है। लेकिन इसके अंदर निकलने वाला गुदा लाल रंग का होता है। भारत के दक्षिण राज्यों में इसकी खेती अधिक की जाती है। शकरकंद की इस क़िस्म को केंद्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान, तिरुवनंतपुरम द्वारा विकसित की गई है। इसकी एक एकड़ की खेती से 18 टन तक का उत्पादन प्राप्त होता है।
इस प्रजाति की शकरकंद के कंद में पानी की मात्रा अधिक पायी जाती है। सफ़ेद प्रजाति के कंदो को आमतौर पर भूनकर खाने के लिए ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
शकरकंद की इस किस्म की खेती सबसे अधिक पंजाब में की जाती है। इसकी फसल को तैयार होने में 140 से 145 दिन का समय लग जाता है तथा इसके कंदों में सफेद रंग का गुदा पाया जाता है। इस क़िस्म की खेती से किसान एक एकड़ में आसानी से 22 टन तक का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
शकरकंद की इस क़िस्म के पौधों को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है, इसकी फसल पौधे की रोपाई करने के 100 दिन बाद से ही पैदावार देना शुरु कर देती है। सेंट्रल ट्यूब क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट, श्रीकरियम में इस किस्म को विकसित किया गया है। इसमें शकरकंद के कंद का बाहरी रंग गुलाबी तथा गुदा क्रीम रंग का होता है। इस किस्म की खेती करने से किसान प्रति एकड़ 30 टन से अधिक तक का उत्पादन प्राप्त कर सकते है।
इसके अतिरिक्त भी शकरकंद की कई उन्नत किस्में जिनकी खेती करके किसान भाई अच्छा मुनाफा कमा सकते है व अलग-अलग राज्यों के अनुसार अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है। जो हैः श्री रतना, सीओ- 1, 2, श्री वर्धिनी, श्री नंदिनी, कलमेघ, भुवन संकर, एच- 41, क्लास 4, एच- 268, जवाहर शकरकंद- 145, वर्षा, पूसा सुहावनी, पूसा रेड, राजेंद्र शकरकंद, अशवनी और श्री वरुण, कोनकन आदि किस्में प्रमुख हैं।
शकरकंद की खेती करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती करने के लिए भूमि अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए। किसी अन्य तरह की भूमि जैसे कठोर, पथरीली और जल भराव वाली भूमि में इसकी खेती नहीं करें, क्योंकि ऐसी भूमि में इसकी खेती करने से कंद का विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता जिससे फसल का उत्पादन भी प्रभावित होता है। इसकी खेती करने के लिए खेत की मिट्टी का पीएच मान 5.8 से 6.8 के बीच का होना चाहिए।
शकरकंद की खेती कब करें या शकरकंद की खेती कैसे करें? इस सवाल का सही जवाब सभी किसान जानना चाहते हैं। यहां आपको इस संदर्भ में जानकारी दी जा रही है। शकरकंद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला पौधा होता है तथा भारत में इसकी खेती तीनों ही मौसम में की जाती है। अगर आप शकरकंद की खेती व्यापारिक तौर पर करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको इसे गर्मियों के मौसम में उगाना उपयुक्त होता है। क्योंकि गर्मी और बारिश के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकसित होते हैं।
शकरकंद के पौधों को बुवाई के बाद अंकुरित होने के लिए 22 डिग्री तक के तापमान की आवश्यकता होती है। पौधे का अंकुरण हो जाने के बाद पौधे को सही ढंग से विकास करने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। तापमान 35 डिग्री से ऊपर होने पर पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।
शकरकंद की खेती करने के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसके लिए खेत को मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर की मदद से खेत की 3 से 4 बार गहरी जुताई कर दें। इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दें। इससे खेत की मिट्टी में सूरज की धूप अच्छे से लगती है । शकरकंद की खेती में अच्छे उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत में खाद की अच्छी मात्रा देनी होती है।
इसके लिए खेत की पहली जुताई करने के बाद एक एकड़ में 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डाल दें। गोबर की खाद के अलावा आप चाहे तो जैविक खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। खाद को खेत में डालने के बाद मिट्टी में मिलाने के लिए 2 से 3 बार खेत को कल्टीवेटर की मदद से जुताई करें। इससे पूरे खेत की मिट्टी में खाद अच्छी तरह से मिल जाती है। इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है। पलेव हो जाने के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है, उस समय खेत की मिट्टी को भूरभूरी बनाने के लिए 2 से 3 बार रोटावेटर से जुताई कर दी जाती है। मिट्टी के भुरभुरा होने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर देना चाहिए। इससे खेत के समतल हो जाने के बाद खेत में जल भराव की समस्या नहीं देखने को मिलती है। शकरकंद के पौधों की रोपाई मेड़ों पर होती है, इसके लिए खेत में सही दूरी रखते हुए मेड़ो को तैयार करना चाहिए। जिसमें एक मेड से दूसरी मेड़ के बीच की दूरी दो से तीन फ़ीट की रखी जाती है।
शकरकंद की खेती करने के लिए यदि आप रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको प्रति एकड़ के हिसाब से 70 किलो फास्फोरस, 60 किलो पोटाश और 40 किलो नाइट्रोजन यानी की एनपीके खाद की मात्रा का छिड़काव खेत की आखिरी जुताई के समय करना आवश्यक होता है। इसके अलावा 40 किलो यूरिया खाद की मात्रा को पौधों की सिंचाई करने दें।
शकरकंद के पौधों की रोपाई नर्सरी में तैयार किए गए कटिंग को लगाकर की जाती है। रोपाई करने के लिए पौधे को एक महीने पहले ही तैयार कर लिया जाता है। इसके अलावा यदि किसान भाई चाहे तो किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी पौधों को खरीद सकते हैं। इसके बाद इन पौधों की रोपाई तैयार की गई मेड़ों पर कर दी जाती है।
इसके प्रत्येक पौधे की रोपाई करते वक्त एक फ़ीट की दूरी रखी जाती है तथा कटिंग को 20 सेटीमीटर की गहराई में खेत में लगाया जाता है। पौधे की रोपाई करने के बाद उसे चारों तरफ से मिट्टी से अच्छी तरह से ढक देना चाहिए। शकरकंद के पौधों की रोपाई समतल भूमि में भी का जा सकती है, इसके लिए उन्हें क्यारियों में तैयार करके कतारों में लगाया जाता है। जिससे प्रत्येक कतार के बीच दो फ़ीट की दूरी रखी जाती है। इसके बाद पौधों को 40 सेटीमीटर की दूरी पर लगा दिया जाता है।
शकरकंद के पौधों की सिंचाई रोपाई के मौसम के अनुसार की जाती है। यदि इसके पौधों की रोपाई गर्मी के मौसम में की है, तो पौधे की रोपाई करने के तुरंत बाद उन्हें पानी देना चाहिए। इसके बाद इसके पौधों की सिंचाई सप्ताह में एक बार की जाती है। इस अंतराल पर सिंचाई करने से खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी बनी रहती है और इसके कंदों का विकास अच्छे से होता है। यदि आपने इसके पौधों की रोपाई बारिश के मौसम में की है, तो उन्हें ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
शकरकंद की खेती करते समय फसल में खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए आप प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही विधियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। रासायनिक विधि से खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए कंद के अंकुरण से पहलेपूर खेत में मेट्रीबिउज़ाइन और पैराकुए की उचित मात्रा का छिड़काव कर दिया जाता है।
इसके अलावा यदि आप प्राकृतिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण करना चाहते है, तो उसके लिए आपको पौधों की समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना चाहिए। जब इसके पौधों का अंकुरण होने लगे तब इसके पौधों की पहली गुड़ाई अंकुरण के 20 दिन बाद ही करनी चाहिए। इसके बाद 25 दिन के अंतराल में पौधों की दूसरी और तीसरी निराई-गुड़ाई करना आवश्यक होता है।
शकरकंद की उन्नत किस्मों को तैयार होने में लगभग 110 से 120 दिन तक का समय लग जाता है। जब इसके पौधों पर लगी पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगे उस समय इसके कंदों की खुदाई कर लेना चाहिए। कंदों की खुदाई से पहले खेत में हल्का पानी लगा देना चाहिए, इससे खेत की मिट्टी नम हो जाती और कंद आसानी से निकाले जा सकते है। कंदों की खुदाई के बाद उन्हें अच्छी तरह से साफ कर करके अच्छे से सुखा लिया जाता है। एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 25 से 30 टन की पैदावार किस्म के अनुसार प्राप्त हो जाती है। शकरकंद का बाज़ार में भाव 20 से 50 रुपये प्रति किलो तक का होता है, जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से एक से 2 लाख रुपये से अधिक की कमाई आसानी से कर सकते हैं।
शकरकंद को स्वीट पोटैटो के नाम से भी जाना जाता है और इसको खाने से शरीर को पोषक तत्वों के साथ-साथ और भी इसके कई फायदे हैं
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