मूंग की खेती : जानें रोग एवं कीट नियंत्रण के उपाय

Share Product प्रकाशित - 15 Sep 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

मूंग की खेती : जानें रोग एवं कीट नियंत्रण के उपाय

जानें, मूंग की खेती में रोग और कीट के बारे में पूरी जानकारी

भारत में दलहनी फसलों में मूंग का अपना एक विशिष्ट स्थान है। देश में मूंग का उत्पादन खरीफ, रबी के अलावा आजकल जायद सीजन में भी होने लगा है। मूंग में काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जो हमारे लिए स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ ही खेत की मिट्टी के लिए भी बहुत फायदेमंद है। मूंग की फसल से फलियों को तोड़ने के बाद हल से फसल को पलटकर मिट्टी में दबा देने से ये हरी खाद का काम करती है। मूंग की खेती करने से मिट्टी की उर्वरक शक्ति में वृद्धि होती है। मूंग की खेती यदि सही तरीके से की जाए तो इससे काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। मूंग की फसल में विभिन्न च्रक में अनेक प्रकार के रोग लगने की संभावना बनी रहती है| यदि इन रोगों की सही पहचान करके उचित समय पर नियंत्रण कर लिया जाए तो फसल को खराब होने से बचाया जा सकता है |  

मूंग की फसल में होने वाले प्रमुख रोग  

1.पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस) 
2.पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) 
3. चूर्णी फफूंद रोग  
4.ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग) 

1. पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस)

पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस) मूंग की फसल में लगने वाला रोग है। पीत चितेरी रोग में पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है और वह झड़ने लगती हैं। पीत चितेरी रोग के कारण मूंग की फलियां पूरी नहीं आ पाती हैं, जिसके कारण मूंग का उत्पादन कम हो जाता है। संक्रमित पौधों में फूल एवं फलियां देर से व कम लगते हैं। पीत चितेरी रोग के लक्षण पौधे व फलियों एवं दोनों पर भी दिखाई देते हैं। यह रोग सफेद मक्खी से फैलता है |  

पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस) नियंत्रण के उपाय 

  • पीत चितेरी रोग के लक्षण दिखते ही आक्सीडेमेटान मेथाइल 0.1% या डायमेथोएट 0.3% प्रति हेक्टेयर 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर 3 से 4 बार छिडकाव करें।  
  • खेत से एवं मेड़ों से पूर्ण फसल अवशेष, खरपतवार एवं संक्रमित पौधे को निकालकर अलग कर लें व संक्रमित पौधे को नष्ट करें।
  •  रोग अवरोधी मूंग प्रजातियों का प्रयोग करें जैसे- एलजीपी – 407, एमएल – 267 इत्यादि   

2. पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल)

पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) एक महत्वपूर्ण विषाणु जनित रोग है, पर्ण व्यांकुचन रोग बीज द्वारा फैलता है व कुछ क्षेत्रो में ये रोग सफेद मक्खी द्वारा भी फैलता है। इसके लक्षण सामान्यत: फसल बोने के 3 से 4 सप्ताह में दिखने लगते हैं। इस रोग में दूसरी पत्ती बड़ी होने लगती है, पत्तियों में झुर्रियां व मरोड़पन आने लगता है। संक्रमित पौधों को खेत में दूर से ही देखकर ही पहचाना जा सकता है। इस रोग के कारण पौधे का विकास रुक जाता है, जिससे पौधे में नाम मात्र की फलियां आती हैं । यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में अपनी चपेट में ले सकता है। 

पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) नियंत्रण के उपाय 

  • ये रोग पौधे के बीज द्वारा फैलता हैं इसलिए रोगी पौधों को उखाड़ कर जला कर नष्ट कर देना चाहिए। 
  • पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) से फसल को बचाने के लिए बुवाई के 15 दिन बाद या रोग के लक्षण दिखने पर  इमिडाक्रोपिरिड का छिड़काव करे।      

3. चूर्णी फफूंद रोग

इस रोग में पौधे की पत्तियों के निचले हिस्से में छोटे-छोटे सफेद धब्बे पड़ जाते हैं, जो बाद में एक बड़ा सफेद धब्बा बना लेते हैं। रोग के बढ़ने के साथ ही ये सफेद धब्बे पत्तियों के साथ-साथ तना, शाखाओं व फलियों पर फैल जाते हैं। समान्तयःचूर्णी फफूंद रोग गर्म व शुष्क मौसम में ज्यादा होते हैं।  

चूर्णी फफूंद रोग नियंत्रण के उपाय

  • रोग प्रतिरोधी प्रजातियों की मूंग का प्रयोग करें। जैसे-एलवीजी-17,एलबीजी–402, इत्यादि तथा मूंग की टीएआरएम-1, पूसा-9072 इत्यादि का प्रयोग करें।
  •  चूर्णी फफूंद रोग के प्रकोप से पौधों को बचाने के लिए घुलनशील गंधक का इस्तेमाल करें।
  • चूर्णी फफूंद रोग का प्रकोप ज्यादा होने पर आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम या केराथेन को पानी में घोलकर मूंग की फसल पर छिड़काव करें। 

4. ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग)

ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग) इस रोग के कारण फसल की पैदावार व गुणवत्ता में कमी आती है, उत्पादन में लगभग 20 से 60 प्रतिशत की कमी आती है। 26 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान व बादल युक्त मौसम इस रोग का प्रमुख कारण होता है। 

ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग) नियंत्रण के उपाय 

  • ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग) के नियंत्रण के लिए स्वस्थ व प्रमाणित बीजों का चयन करें।
  •  बुवाई से पहले बीजों को थीरम अथवा कैप्टान द्वारा 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज अथवा कार्बेन्डाजिम 0.5 से 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें। 
  • ऐंथ्राक्नोज रोग के लक्षण दिखने पर 0.2 प्रतिशत जिनेब अथवा थीरम का छिडकाव करें। आवश्यकता अनुसार व 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।    

मूंग की फसल में होने वाले प्रमुख कीट रोग 

मूंग की फसल (Moong ki kheti) में कीट प्रबंधन के लिए खेत के आसपास की मेड़ों, नालियों इत्यादि में खरपतवारों का उचित प्रबंधन करना चाहिए। साथ ही समय पर सिंचाई का ध्यान रखें। मूंग की कीट अवरोधी प्रजातियां ही उगानी चाहिए। जैविक खेती में फफूंद जैसे रोगों के नियंत्रण के लिए ट्राइको पावर प्लस 6 से10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करें। कीटों के नियंत्रण हेतु नीम से युक्त जैव कीटनाशक एज़ा पावर प्लस 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। यह कीटनाशक जैविक खेती में कीटों और फफूंद जनित रोगों की रोकथाम के लिए उपयोगी है।  

सफेद मक्खी और और माहुं

सफेद मक्खी और माहुं पौधे की पत्तियों एवं फूलों से रस चूसते हैं। यह कीट पत्तों पर हनीडिउ उत्सर्जित करते हैं, जिससे पौधो की पत्तियों पर एक काली परत वन जाती हैं जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया नहीं हो पाती। सफेद मक्खी पीले मोज़ेक वायरस को भी फैलाती है। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए रोगर (डाइमोथोएट 30 ई.सी.) को 1.7 मिली/ लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। माहुं के नियंत्रण के लिए एज़ा पावर प्लस को 5 मिली /लीटर पानी या रोगर (डाइमेथोएट 30 ई.सी.) को 1.7 मि.ली./लीटर पानी या इसोगाशी (इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस.एल.) को 0.2 मिली/ प्रति लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करें। 

जैसिड (हरा फुदका)

जैसिड कीट व उसके बच्चे पत्तियों से रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियां पीली पड़ने और सूखने लगती हैं। 

थ्रिप्स

इस कीट के बच्चे एवं बड़े दोनों पत्तियों एवं फूलों से रस चूसते है। भारी प्रकोप होने पर पत्तियों से रस चूसने के कारण वे मुड़ जाती हैं तथा फूल गिर जाते हैं जिससे उत्पादन पर भी इसका असर पड़ता है।


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