प्रकाशित - 04 Jun 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
भारत के पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ व तेलंगाना आदि राज्यों में प्रमुखता से धान की खेती (Paddy farming) की जाती है। मानसून की बारिश के साथ ही लाखों किसान अपने खेतों में खरीफ की प्रमुख फसल धान की बुवाई करेंगे। ऐसे में बेहतर पैदावार के लिए किसानों को बेहतर किस्म के बीजों की आवश्यकता होगी। ऐसी कई धान की किस्में हैं तो बहुत अच्छा उत्पादन देती हैं। खासकर पूसा बासमती खास 3 किस्में ऐसी हैं जिनकी खेती करके किसान अपनी आमदनी को 4,000 रुपए प्रति एकड़ तक बढ़ा सकते हैं। यह किस्में काफी अच्छी पैदावार देती है और इसके बाजार में बेहतर भाव मिल जाते हैं। खास बात यह है कि पूसा बासमती की इन किस्मों की सीधी बिजाई करके किसान 35 से 40 प्रतिशत तक पानी की बचत कर सकते हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) पूसा संस्थान की ओर से पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती-1979 और पूसा बासमती-1985 विकसित की गई खास किस्में हैं जो कम पानी में अधिक पैदावार देती हैं। हालांकि इन किस्मों की बुवाई में किसान को सीधी बिजाई तकनीक का उपयोग करना होगा। यदि किसान इन तीन किस्मों की बुवाई करते हैं तो प्रति एकड़ उन्हें 4000 रुपए अधिक तक की आमदनी हो सकती है।
धान की पूसा बासमती 1121 किस्म अर्ध-बौनी किस्म है। इसके पौधों की ऊंचाई 110 से 120 सेमी तक होती है। इस किस्म को संस्थान ने 2003 में पूसा 1121 जिसे पूसा सुगंध 4 के रूप में जारी किया गया था और बाद में साल 2008 में पूसा बासमती 1121 के रूप में अधिसूचित किया गया। यह किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर राज्यों के लिए अनुशंसित है। इस किस्म के चावल के दाने लंबे पतले और सुगंधित होते हैं। धान की यह किस्म 145 दिन में पककर तैयार हो जाती है। धान की पूसा बासमती 1121 किस्म की उपज क्षमता करीब 4.5 टन प्रति हैक्टेयर है।
धान की पूसा बासमती किस्म को पूसा बासमती-1121 को अपग्रेड करके तैयार किया गया है। यह किस्म बिजाई के करीब 130-133 दिन बाद तैयार हो जाती है। पूसा बासमती की 1979 किस्म हार्बिसाइड इमाजेथापियर 10 प्रतिशत एसएल के प्रति सहनशील है। सिंचित रोपाई में इस किस्म से औसत पैदावार 45.77 क्विंटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती है।
धान की पूसा बासमती 1985 किस्म को पूसा बासमती- 1509 को सुधार करके विकसित किया गया है। यह किस्म 115 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म हर्बिसाइड इमाजेथापियर 10 प्रतिशत एसएल के प्रति सहनशील है। इस किस्म की औसत उपज 22 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ है।
उपरोक्त तीनों प्रकार की किस्मों की बुवाई के लिए आप सीधी बुवाई तकनीक अपनाकर पानी की बचत के साथ ही पैदावार में भी बढ़ोतरी कर सकते हैं। धान की सीधी बुवाई की दो विधियां हैं। इसमें पहली विधि को तरबतर कहा जाता है। इसमें गेहूं की कटाई के बाद जुताई करके पानी लगाकर तीन दिनों तक छोड़ दिया जाता है। इसके बाद लेबलग करके बुवाई करते हैं। धान में खरपतवार की समस्या से निपटने के लिए धान की बुवाई के 20 दिन बाद खरपतवार नाशक दवा का छिड़काव किया जाता है। इससे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं लेकिन फसल पर कोई विपरित असर नहीं पड़ता है। वहीं दूसरी विधि में गेहूं काटने के बाद खेत में पहले धान के बीजों की बुवाई की जाती है। बुवाई के 15 से 20 दिन बाद दुबारा पानी लगाकर 48 घंटे के भीतर दवा का छिड़काव करना होता है। इससे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
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