प्रकाशित - 03 May 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
गेहूं की कटाई के बाद किसानों के खेत खाली हो गए हैं। ऐसे में किसान रबी और खरीफ के बीच के समय में भिंडी की खेती (okra cultivation) करके काफी बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं। खास बात यह है कि भिंडी के बाजार भाव (market price of okra) भी अच्छे मिल जाते हैं। भिंडी की कई ऐसी किस्में हैं जिनकी खेती करके किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
भिंड़ी में पोषक तत्व की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसमें विटामिन ए, बी, सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें प्रोटीन व खनिज लवण भी पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। भिंडी में कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, आयरन जैसे मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं। इसका सेवन स्वास्थ्य व सेहत के लिए काफी लाभकारी माना गया है। भिंडी की बाजार मांग को देखते हुए किसानों के लिए भिंडी की खेती लाभ का सौदा साबित हो सकती है। जो किसान भिंडी की खेती से बेहतर उत्पादन प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें ग्रीष्मकाल में बोई जाने वाली भिंडी की किस्मों की जानकारी होनी जरूरी है।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको ग्रीष्मकालीन या जायद सीजन में उगाई जाने वाली भिंडी की टॉप 5 किस्मों की जानकारी दे रहे हैं जिनकी खेती करके आप बेहतर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
भिंडी की पूसा ए-4 किस्म (Pusa A-4 variety of okra) को 1995 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया। यह किस्म एफिड और जैसिड के प्रति सहनशील है। इसके अलावा यह पीतरो येलो वेन मौजैक विषाणु रोधी किस्म है जिसके फल मध्यम आकार के गहरे, कम लस वाले होते हैं जिनकी लंबाई 12.15 सेमी होती है। यह दिखने में आकर्षक लगते हैं। इस किस्म की बुवाई के करीब 15 दिन बाद फल आना शुरू हो जाते है तथा इसकी पहली तुड़ाई करीब 15 दिनों के बाद शुरू की जा सकती है। भिंडी की इस किस्म से औसत पैदावार ग्रीष्म में 10 टन और खरीफ सीजन में 15 टन प्राप्त की जा सकती है।
भिंडी की पंजाब -7 किस्म (Punjab-7 variety of okra) को पंजाब विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा विकसित की गई है। इसके फल हरे और मध्यम आकार के होते हैं। यह किस्म बुवाई के करीब 55 दिन बाद फल देना शुरू कर देती है। यह किस्म पीतरोग रोधी किस्म है। भिंडी की इस किस्म से करीब 8.12 टन प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
भिंडी की परभनी क्रांति किस्म (Parbhani Kranti variety of Ladyfinger) को 1885 में मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय परभनी द्वारा विकसित किया गया। यह किस्म बुवाई के करीब 50 दिन बाद फल देना शुरू कर देती है। इसके फल गहरे हरे होते हैं। फलों की लंबाई 15.18 सेमी तक होती है। भिंडी की इस किस्म से करीब 9.12 टन प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
भिंडी की अर्का अनामिका किस्म को भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा विकसित किया गया है। भिंडी की यह किस्म येलोवेन मोजेक विषाणु रोगरोधी है। इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 120 से 150 सेमी होती है। इसके पौधे सीधे व अच्छी शाखायुक्त होते हैं। इसके फल रोमरहित मुलायम गहरे हरे रंग के होते हैं और उनमें 5 से 6 धारियां होती है। भिंडी की इस किस्म का डंठल लंबा होने के कारण तोड़ने में सुविधा होती है। भिंडी की यह किस्म ग्रीष्मकाल व वर्षाकाल दोनों में उगाई जा सकती है। इस किस्म से करीब 12.15 टन प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
भिंडी की हिसार उन्नत किस्म (Hisar improved variety of ladyfinger) को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा विकसित किया गया है। इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई 90 से 120 सेमी के होते है और इनके इंटरनोड पास पास होते हैं। इस किस्म के पौधे में 3 से 4 शाखाएं प्रत्येक नोड से निकलती हैं। इसकी पत्तियों का रंग हरा होता है। इसके फल 15 से 16 सेमी लंबे हरे और आकर्षक होते हैं। इसकी पहली तुड़ाई 46-47 दिन में शुरू की जा सकती है। इस किस्म की औसत पैदावार करीब 12 से 13 टन प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है। भिंड़ी की यह प्रजाति भी गर्मियों व बारिश दोनों समय में उगाई जा सकती है।
भिंडी की ग्रीष्म ऋतु में बुवाई के लिए करीब 18 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त रहता है। यदि आप भिंडी की संकर किस्म की बुवाई कर रहे हैं तो इसके लिए 5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर के हिसाब से बीज दर रखें। बीजों की बुवाई से पहले खेत को भली-भांति तैयार कर लें। इसके लिए खेत की 2 से 3 बार जुताई करें। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। इसमें कतार से कतार की दूरी 25 से 30 सेमी और कतार में पौधों से पौधे के बीच की दूरी 15 से 20 सेमी रखनी चाहिए। बीज को 2 से 3 सेमी गहराई में बोना चाहिए। बुवाई से पहले भिंडी के बीजों को 3 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
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