प्रकाशित - 16 Oct 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
Mustard varieties : देश के किसान रबी फसलों में गेहूं, चना, सोयाबीन, सरसों आदि की खेती करते हैं। जो किसान सरसों की अगेती खेती करना चाहते हैं, उनके लिए यह सही समय है। सरसों की कई किस्में ऐसी है जिनकी अगेती बुवाई करके बेहतर पैदावार के साथ ही तेल की भी अच्छी मात्रा प्राप्त की जा सकती है। अक्टूबर माह में बोई जाने वाली सरसों की किस्मों (Mustard varieties) में से हम आज आपको चुनिंदा उन टॉप 5 किस्मों की जानकारी दे रहे हैं जिनसे अधिक पैदावार के साथ ही तेल की भी अधिक मात्रा पाई जाती है, तो आइये जानते हैं, अक्टूबर माह में बुवाई के लिए सरसों की इन टॉप पांच किस्मों के बारे में।
पूसा ज्वालामुखी सरसों की एक अधिक पैदावार देने वाली किस्म है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पूसा संस्थान की ओर से विकसित किया गया है। यह रोग प्रतिरोधक किस्म है। इस किस्म की बुवाई किसान अक्टूबर से नवंबर माह में कर सकते हैं। इस किस्म का तेल बेहतर गुणवाला होता है। खास बात यह है कि यह किस्म जलवायु परिवर्तन के प्रति भी सहनशील है। यह किस्म 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म को उत्तर भारत, पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के लिए उपयुक्त माना गया है। सरसों की ज्वालामुखी किस्म से प्रति एकड़ 25 से 30 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 42 से 45 प्रतिशत पाई जाती है।
सरसों की पूसा बोल्ड किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पूसा संस्थान ने विकसित किया है। यह किस्म भी अधिक पैदावार देने वाली सरसों की किस्म में से एक है। इस किस्म की खास बात यह है कि यह किस्म कम लागत में अधिक उत्पादन देती है। इसमें तेल की मात्रा भी अच्छी पाई जाती है। इससे किसानों को अच्छी आय हो सकती है। यह किस्म भी जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील है। सरसों की यह किस्म 120 से 130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म 20 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार देती है। इस किस्म में 40 से 42 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है।
सरसों की पूसा अग्रनी किस्म की पैदावार अच्छी होने के साथ ही यह रोग प्रतिरोधक भी है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पूसा संस्थान ने विकसित किया है। यह किस्म भी जलवायु परिवर्तन के इस दौर के लिए काफी अच्छी है। इसकी बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक की जा सकती है। सरसों की यह किस्म 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 22 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इसमें तेल की मात्रा 40 से 42 प्रतिशत तक होती है। यह किस्म उत्तर भारत, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के लिए विशेष रूप से उपयुक्त मानी गई है।
सरसों की पीएल 501 किस्म अधिक उत्पादन के साथ ही रोग प्रतिरोधी किस्म है। इस किस्म को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से विकसित किया गया है। इस किस्म के सरसों का तेल बेहतर क्वालिटी का होता है। यह किस्म जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील है। सरसों की यह किस्म 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 25 से 30 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म में तेल की मात्रा 42 से 45 प्रतिशत पाई जाती है।
सरसों की आरएलसी-1 किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आरसीएआर) द्वारा विकसित किया गया है। यह अधिक पैदावार देने वाली किस्म है। यह किस्म जलवायु परिवर्तन के इस दौर में अच्छी बताई गई है। सरसों की यह किस्म 120-125 दिन में पककर तैयार होती है। इसमें तेल की मात्रा 42 से 45 प्रतिशत होती है। इस किस्म से 25 से 30 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म रोग प्रतिरोधी किस्म है। इसे उत्तरी भारत, पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के लिए विशेष रूप से उपयुक्त माना गया है।
किसान सरसों की खेती (Mustard cultivation) करने से पूर्व सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें। इसके लिए ट्रैक्टर (Tractors) और रोटवेटर (Rotavators), कल्टीवेटर (Cultivators) से खेत की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। सरसों की बुवाई के लिए एक एकड़ में एक किलोग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त रहती है। किसान अपनी सहुलियत के हिसाब से छिड़कवां विधि या कतार विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं। वैसे कतार विधि से सरसों की बुवाई करने से सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसमें निराई गुड़ाई काम आसानी से किया जा सकता है। अब देसी हल या सीड ड्रिल (Seed Drill) से सरसों की बुवाई करें। सरसों की कतार विधि से बुवाई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 से 12 सेंटीमीटर रहे। अच्छे अंकुरण के लिए बीज की बुवाई 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए। वैसे जैविक विधि से तैयार सरसों के बाजार भाव काफी अच्छे मिलती है। मिट्टी की जांच के आधार पर 100 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 35 किलोग्राम यूरिया व 25 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल गोबर की खाद के साथ किया जा सकता है।
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