प्रकाशित - 04 Nov 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
रबी सीजन में दलहनी फसलों की खेती के तहत मसूर की खेती (Masoor Ki Kheti) भी की जाती है। मसूर जिसे लाल दाल भी कहा जाता है। यह दाल शरीर के लिए काफी पौष्टिक मानी जाती है। वहीं इसके भाव भी बाजार में अच्छे मिल जाते हैं। यदि किसान मसूर की मिश्रित खेती (mixed cultivation of lentils) करें तो काफी अच्छा लाभ कमा सकते हैं। मसूर को आप सरसों (Mustard) या जौ (barley) की फसल के साथ बुवाई कर सकते हैं। इस तरह किसान पानी, खाद व उर्वरक की बचत करके कम लागत में मसूर की खेती (Lentil cultivation) कर सकते हैं। क्योंकि यदि आप सरसों के साथ इसे उगाते हैं तो सरसों में दिए गए पानी, खाद व उर्वरक का लाभ मसूर की फसल को भी अपने आप मिल जाएगा। ऐसे में आप कम खर्च में सरसों या जौ की फसल के साथ मसूर की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। बुवाई के लिए मसूर की उन्नत किस्मों का ही चयन करना चाहिए। वैसे तो मसूर की बहुत सी किस्में हैं लेकिन हम यहां आपको उनमें से चुनिंदा टॉप 5 किस्मों की जानकारी दे रहे हैं जो अधिक पैदावार देती है।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको मसूर की टॉप 5 बेहतर पैदावार देने वाली किस्मों की जानकारी दे रहे हैं।
मसूर की बुवाई अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक की जा सकती है, लेकिन इसकी बुवाई का उचित समय 20 अक्टूबर से लेकर 15 नवंबर तक माना जाता है।
मसूर की पंत एल- 639 किस्म 130 से 140 दिन की अवधि में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से आप 18 से लेकर 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। खास बात यह है कि यह किस्म उकठा रोग प्रतिरोधी किस्म है जिसमें दाने कम झड़ते हैं।
मसूर की मलिका (के 75) किस्म 120 से लेकर 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के बीज गुलाबी रंग और आकार में बड़े होते हैं। इस किस्म से औसत पैदावार 4.8 से लेकर 6 क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है। मसूर की यह किस्म उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, बिहार के लिए उपयुक्त पाई गई है।
मसूर की पूसा शिवालिक (एल 4076) किस्म करीब 120 से लेकर 125 दिन की अवधि में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार प्रति एकड़ 6 क्विंटल तक प्राप्त की जा सकती है। इसकी खेती बारानी क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है। यह किस्म राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के लिए उपयुक्त है।
मसूर की यह किस्त 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से औसत पैदावार 12 से लेकर 13 क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है। खास बात यह है कि मसूर की यह किस्म रस्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्म है। इस किस्म की खेती देश के उत्तर, पूर्व एवं पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में की जाती है।
मसूर की इस किस्म में आयरन की मात्रा अन्य किस्मों से अधिक होती है। इसका दाना आकार में छोटा होता है। इस किस्म की खेती सिंचित व बारानी दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है। इस किस्म से प्रति एकड़ ओसत पैदावार 7 से 8 क्विंटल तक प्राप्त की जा सकती है।
मसूर की खेती के लिए 30 से 35 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। इसके अलावा देरी से बुवाई के लिए करीब 40 से लेकर 60 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की दर से लिया जा सकता है। बुवाई से पहले बीजों को 3 ग्राम थीरम या बाविस्टिन से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। इसके अलावा बीजों को 5 ग्राम राइजोबियम कल्चर (rhizobium culture) और 5 ग्राम स्फुर घोलक जीवाणु पीएसबी कल्चर से 10 किलोग्राम बीजों का उपचारित करना चाहिए। इसके बाद बीजों को किसी छायादार स्थान पर सुखाना चाहिए और अगले दिन सीड ड्रिल मशीन (seed drill machine) की सहायता से उपचारित किए गए बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
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