प्रकाशित - 27 Jun 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
खरीफ फसलों की बुवाई का सीजन शुरू हो गया है। जुलाई का महीना आने वाला है। ऐसे में किसानों को जुलाई माह में उगाई जाने वाली फसलों की जानकारी होना बेहद जरूरी है ताकि सही समय पर फसल की बुवाई करके उससे बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सके और अच्छा मुनाफा कमाया जा सके। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको जुलाई माह में बोई जाने वाली फसलों व उनकी उन्नत किस्मों की जानकारी दे रहे हैं।
जुलाई माह में मानसून के साथ ही धान की बुवाई शुरू हो जाती है। धान की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए बारिश के समय धान की बुवाई करना अच्छा रहता है। जिन जगहों पर पानी की कमी है वहां धान की सिंचाई के लिए पानी व्यवस्था करनी जरूरी है। ऐसी जगहों पर धान की सीधी बुवाई को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि धान की सीधी बुवाई करने पर कम पानी लगता है।
अब बात करते हैं इसकी किस्म की तो इसकी उन्नत किस्मों में पूसा 1460, डब्ल्यूजीएल 32100, पूसा सुगंध 3, एमटीयू 1010, आईआर 64, डीआरआर 310, डीआरआर 45 आदि किस्में अच्छी किस्में हैं। किसान अपने क्षेत्र की जलवायु और भौगोलिक स्थिति के अनुसार किस्मों का चयन करें।
इस सीजन में मक्का की खेती भी की जा सकती है। धान के बाद जो फसल अधिक मुनाफा देने वाली है उनमें मक्का का नाम आता है। मक्का से बहुत सारी खाने की चीजें बनाई जाती है। इसके अलावा इसका करीब 65 प्रतिशत उपयोग मुर्गी एवं पशु आहार के रूप मे किया जाता है। साथ ही इससे पौष्टिक चारा प्राप्त होता है। भुट्टे काटने के बाद बची हुई कडवी पशुओं को चारे के रूप में खिलाते हैं। औद्योगिक दृष्टि से मक्का का उपयोग प्रोटिनेक्स, चॉक्लेट पेन्ट्स, स्याही लोशन, स्टार्च कोका-कोला के लिए कॉर्न सिरप आदि बनाने के लिए किया जाता है। मक्का से प्राप्त होने वाले बिना परागित भुट्टों को बेबीकार्न कहा जाता है। बेबीकार्न का मूल्य अन्य सब्जियों से अधिक होता है। इसलिए मक्का की खेती किसानों के लिए लाभ का सौंदा साबित हो सकती है। इससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
मक्का की उन्नत किस्मों में पूसा सुपर स्वीट कॉर्न -1 (संकर), पूसा सुपर स्वीट कॉर्न-2, पूसा विवेक क्यू पी एम 9 इम्प्रूव्ड (संकर),पूसा एच एम 4 इम्प्रूव्ड (संकर), पूसा एच एम 8 इम्प्रूव्ड (संकर),पूसा एच एम 9 इम्प्रूव्ड (संकर),पूसा जवाहर हाइब्रिड मक्का-1 (संकर),पूसा विवेक हाइब्रिड 27 इम्प्रूव्ड (संकर),पूसा एच क्यू पी एम 5 इम्प्रूव्ड आदि प्रमुख किस्में हैं।
अरहर दलहन फसलों के अंतर्गत आने वाली फसल है। इसकी खेती भी इस माह की जा सकती है। दलहन फसलों के बाजार में अच्छे दाम मिलते हैं। इसमें अरहर की दाल की काफी बाजार मांग रहती है। अरहर की खेती बारिश के मौसम में काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। इस मौसम में अरहर की खेती करने से किसानों को फसल के लिए पर्याप्त मात्रा में वर्षा जल उपलब्ध हो जाता है जिससे अरहर के लिए सिंचाई हेतु पानी की व्यवस्था हो जाती है और किसान इसकी सफलतापूर्वक खेती कर सकता है। इसकी खेती करके किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
अरहर की उन्नत किस्मों में उपास-120, आई.सी.पी.एल.-87, ट्राम्बे जवाहर तुवर-501, जे.के.एम.-7, जे.के.एम.189, आई.सी.पी.-8863, जवाहर अरहर-4 , आई.सी.पी.एल.-87119, बी.एस.एम.आर.-853, बी.एस.एम.आर.-736, विजया आई.सी.पी.एच.-2671 आदि इसकी उन्नत किस्में हैं।
बाजरा एक ऐसी फसल है जो विपरीत परिस्थितियों एवं सीमित वर्षा वाले क्षेत्रों तथा बहुत कम उर्वरकों की मात्रा के साथ आसानी से उगाई जा सकती है। इसी के साथ जहां अन्य फसलें अच्छा उत्पादन नहीं दे पाती वहां बाजरे की खेती करके किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं। बाजरें की खेती शुष्क एवं अर्द्शुष्क क्षेत्रों में मुख्य रुप से उगाई जाती है, यह इन क्षेत्रों के लिए दाने एवं चारे का मुख्य स्त्रोत माना जाता है। सूखा सहनशील एवं कम अवधि (मुख्यत: 2-3 माह) की फसल है जो कि लगभग सभी प्रकार की भूमियों में उगाई जा सकती है। जहां पर 500-600 मि.मी. वर्षा प्रति वर्ष होती है वहां बाजरे की खेती आसानी से की जा सकती है।
बाजरे की उन्नत किस्मों में के.वी.एच. 108 (एम.एच. 1737), जी.वी.एच. 905 (एम.एच. 1055), 86 एम 89 (एम एच 1747),एम.पी.एम.एच 17 (एम.एच.1663), कवेरी सुपर वोस (एम.एच.1553),86 एम. 86 (एम. एच. 1684),86 एम. 86 (एम. एच. 1617),आर.एच.बी. 173(एम.एच. 1446), एच.एच.बी. 223(एम.एच. 1468),एम.वी.एच. 130 आदि बाजरे की उन्नत किस्में हैं।
ग्वार खरीफ सीजन में उगाई जाने वाली एक बहु-उपयोगी फसल है। ग्वार कम बारिश और विपरीत परिस्थितियों वाली जलवायु में भी आसानी से उगाई जा सकती है। ग्वार की एक खासियत यह है कि यह उन प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है जहां दूसरी फसलें उगाना कठिन होता है। वहीं कम सिंचाई वाली परिस्थितियों में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। यह सूखा सहन करने के अलावा अधिक तापक्रम को भी सह लेती है। ग्वार के दानों और ग्वार चूरी को पशुओं के खाने और प्रोटीन की आपूर्ति के लिए भी प्रयोग किया जाता है। ग्वार की फसल वायुमंडलीय नाइट्रोजन का भूमि में स्थिरीकरण करती है। अत: ग्वार जमीन की ताकत बढ़ाने में भी उपयोगी है। इसकी बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह या मानसून शुरू होने के बाद की जा सकती है।
ग्वार की उन्नत किस्मों में बुन्देल ग्वार-1, बुन्देल ग्वार-2, बुन्देल ग्वार-3, आर.जी.सी.-986, आर.जी.सी.-1002 एवं आर.जी. सी.-1003 आदि इसकी उन्नत किस्में हैं।
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