Published - 01 Mar 2022
किसानों को अपनी आय में बढ़ोतरी के लिए गेहूं, धान, मक्का आदि फसलों के साथ ही सब्जियों और फलों की खेती पर विशेष ध्यान देने की आवश्कयता है। सब्जियों और फलों की खेती से किसान अपनी आय में इजाफा कर सकते हैं। किसानों को चाहिए बाजार की मांग और महीने के अनुसार सब्जियों की खेती करें ताकि उन्हें बेहतर लाभ मिल सके। इसी को ध्यान में रखते हुए हम किसान भाइयों को ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से मार्च माह के दौरान उगाई जाने वाली सब्जियों की जानकारी दें रहे हैं। आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपके लिए लाभकारी साबित होगी।
इस मौसम में खीरा, लौकी, तोरई, फूलगोभी, भिंडी जैसी सब्जियों की बुवाई करनी चाहिए। इन फसलों की बुवाई मार्च तक चलती है। इस समय बोने पर ये फसलें अच्छी पैदावार देती हैं।
खीरे को भोजन के साथ सलाद के रूप में कच्चा खाया जाता है। ये हमारे शरीर में पानी की कमी को भी पूरा करता है। खीरे की भारतीय किस्में में स्वर्ण अगेती, स्वर्ण पूर्णिमा, पूसा उदय, पूना खीरा, पंजाब सलेक्शन, पूसा संयोग, पूसा बरखा, खीरा 90, कल्यानपुर हरा खीरा, कल्यानपुर मध्यम और खीरा 75 आदि प्रमुख है। वहीं इसकी संकर किस्मों की बात करें तो पंत संकर खीरा- 1, प्रिया, हाइब्रिड- 1 और हाइब्रिड- 2 आदि अच्छी किस्में हैं। इसी के साथ ही इसकी विदेशी किस्में भी होती हैं जिनमें जापानी लौंग ग्रीन, चयन, स्ट्रेट- 8 और पोइनसेट आदि प्रमुख है। इसके अलावा नवीनतम किस्मों में पीसीयूएच-1, पूसा उदय, स्वर्ण पूर्णा और स्वर्ण शीतल आदि अच्छी किस्में मानी जाती हैं। किस्मों का चुनाव क्षेत्रीय जलवायु और मिट्टी की प्रकृति के अनुसार करना चाहिए।
वैसे तो खीरे की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसकी बंपर ज्यादा अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए अच्छे जल निकास वाली हैं, दोमट मिट्टी या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। खीरे की खेती नदी या तालाब के किनारे भी हो सकती है। इसके लिए जमीन का पीएच 5.5 से लेकर 6.8 तक उपयुक्त माना जाता है।
प्रति हेक्टेयर बुवाई हेतु 2 से 2.5 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है। इसकी बुवाई लाइन में करते हैं। ग्रीष्म के लिए लाइन से लाइन की दूरी 1.5 मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 775 सेमी. रखते है। बारिश वाली फसल में इसकी दूरी बढ़ा देना चाहिए इसमें लाइन से लाइन की दूरी 1.5 मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 1.0 मीटर रखना चाहिए।
लौकी की खेती भी इस मार्च माह में की जा सकती है। इसके लिए लौकी की किस्में में कोयम्बटूर‐1, अर्का बहार, पूसा समर प्रोलिफिक राउंड, पंजाब गोल, पूसा समर प्रोलेफिक लाग, नरेंद्र रश्मि, पूसा संदेश, पूसा हाईब्रिड‐3, पूसा नवीन आदि उन्नत किस्मों का चयन करें ताकि अधिक उत्पादन मिल सके।
लौकी की खेती जायद और खरीफ दोनों मौसमों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। बीज के अंकुरण के लिए उच्चतम तापमान 30 से 33 डिग्री सेंटीग्रेड और पौधे के विकास के लिए 32 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होना जरूरी है। लौकी की अच्छी पैदावार गर्म वातावरण में प्राप्त की जा सकती है। अब बात करें इसके लिए भूमि की तो इसकी अच्छी खेती के लिए उच्च जल धारण क्षमता वाली सैंडी दोमट और बलुई मिट्टी जिसका पीएम मान 6 से 7 तक हो बेहतर रहती है।
लौकी की मार्च माह की फसल बुवाई के लिए 4‐6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होगी। वहीं जून से जुलाई वाली फसल के लिए 3‐4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि लौकी के बीजों को पंक्तियों में बोएं और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.5 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 1.0 मीटर रखें।
मार्च माह में तोरई की खेती भी कर सकते हैं। इसके लिए उन्नत किस्मों में तोरई की पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी, फुले प्रजतका आदि को उन्नत किस्मों मानी गई हैं।
तोरई की बुवाई के लिए करीब 3-5 किलोग्राम बीज प्रति एक हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है। तोरई की बुवाई के लिए नाली विधि अधिक उपयुक्त मानी जाती है। यदि किसान इस विधि से बुवाई कर रहे हैं, तो खेत की तैयारी के बाद सबसे पहले करीब 2.5-3.0 मी. की दूरी पर 45 सेंटीमीटर चौड़ी और 30-40 सेंटीमीटर गहरी नालियां बनाकर तैयार कर लें। इसके बाद नालियों की मेड़ों पर लगभग 50-60 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज की बुवाई करें। इस बात का ध्यान रखें कि एक जगह पर कम से कम 2 बीज लगाएं, क्योंकि बीज अंकुरण के बाद एक पौधा निकाल देता है।
तोरई की खेती में किसान इस बात का ध्यान रखे कि तोरई की बुवाई के लिए लगभग एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 3-5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। तोरई की बुवाई के बाद खेत में पलवार का उपयोग करना चाहिए। इससे मिट्टी का तापमान और नमी संरक्षित होती है, जिससे बीजों का जमाव भी अच्छा होता है। खास बात है कि इससे खेत में खरपतवार नहीं उग पाते हैं, जिसकी फसल की उपज पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
फूलगोभी की खेती भी इस माह कर सकते हैं। इसकी कई उन्नत किस्में हैं जिन्हें समय के अनुसार लगाया जाना चाहिए। इसकी अगेती किस्मों में अर्ली कुंआरी, पूसा कतिकी, पूसा दीपाली, समर किंग, पावस, इम्प्रूब्ड जापानी आदि आती हैं। वहीं पंत सुभ्रा, पूसा सुभ्रा, पूसा सिन्थेटिक, पूसा स्नोबाल, के.-1, पूसा अगहनी, सैगनी, हिसार नं.-1 इसकी मध्यम किस्में हैं। वहीं फूल गोभी की पिछेती किस्में पूसा स्नोबाल-1, पूसा स्नोबाल-2, स्नोबाल -16 हैं।
वैसे तो फूलगोभी की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है लेकिन अच्छी जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट भूमि जिसमें जीवांश की प्रचुर मात्रा उपलब्ध हो इसके लिए काफी अच्छी रहती है। इसकी खेती के लिए अच्छी तरह से खेत को तैयार करना चाहिए। इसके लिए खेत को 3-4 जुताई करके पाटा मारकर समतल कर लेना चाहिए।
फूलगोभी की अगेती किस्मों की बीज की मात्रा 600-700 ग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। वहीं मध्यम एवं पिछेती किस्मों की बीज दर 350-400 ग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए। ध्यान रहे फूलगोभी के बीज सीधे खेत में नहीं बाए जाते हैं इसलिए सबसे पहले इसकी नर्सरी तैयार करें। इसके लिए एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्रतिरोपण के लिए 75-100 वर्ग मीटर में पौध उगाना पर्याप्त होता है। पौधों को खेत में प्रतिरोपण करने के पहले एक ग्राम स्टेप्टोसाइक्लिन का 8 लीटर पानी में घोलकर 30 मिनट तक डुबाकर उपचारित कर लें। उपचारित पौधे की खेत में लगाना चाहिए। अगेती फूलगोभी किस्मों का रोपण करते समय कतार से कतार की दूरी 40 सेंमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंमी. रखनी चाहिए। वहीं मध्यम एवं पिछेती किस्मों में कतार से कतार 45-60 सेंमी. एवं पौधे से पौधे कि दूरी 45 सेंमी. रखना चाहिए।
भिंडी की फसल भी इस मौसम में उगाना लाभकारी है। इसके लिए भिंडी की उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए। भिंडी की उन्नत किस्मों में परभन क्रांति, पूसा सावनी, पंजाब पद्मनी, पूजा ए-4, अर्का भय, अर्का अनामिका, पंजाब-7, पंजाब-13 भिंडी की उन्नत किस्में मानी जाती है। इसकी अन्य किस्मों में वर्षा, उपहार, वैशाली, लाल हाइब्रिड, ई.एम.एस.-8 (म्यूटेंट), वर्षा, विजय, विशाल आदि हैं।
भिंडी के बीजों को बुवाई से पहले इसके पानी में 24 से 36 घंटे के लिए भिगो दिया जाता है। इसके बाद छाया वाले स्थान पर सूखने के लिए रख देते हैं। बुवाई से पूर्व बीज को 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से किसी भी फफूंदीनाशक में अच्छी प्रकार से मिला देना चाहिए। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार दूरी 25-30 सेमी और कतार में पौधे की बीच की दूरी 15-20 सेमी रखनी चाहिए।
भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने हेतु प्रति हेक्टेर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद एवं नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश की क्रमश: 80 कि.ग्रा., 60 कि.ग्रा. एवं 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में दी जानी चाहिए। वहीं नत्रजन की आधी मात्रा स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर दी जानी चाहिए।
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