प्रकाशित - 20 Jun 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
देश के अधिकांश राज्यों में मानसून ने अपनी दस्तक दे दी है। इसी के साथ किसान खरीफ फसल की बुवाई की तैयारी में जुट गए हैं। अधिकांश किसान धान, मक्का, कपास, सोयाबीन की खेती में लगे हुए है। मानसून की उपस्थिति के साथ ही खरीफ फसलों की बुवाई के काम में तेजी आई है। इसी के साथ कई किसान ऐसे भी हैं जो परंपरागत फसलों की बुवाई के साथ औषधीय फसलों की खेती करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं।
बता दें कि ये समय औषधीय फसलों की खेती के लिए भी काफी अच्छा है। किसान भाई कुछ चुनिंदा औषधीय फसलों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। खास बात ये हैं कि इन फसलों की खेती में लागत कम आती है और मुनाफा अधिक होता है। इसके अलावा इन औषधीय फसलों की खेती को सरकार की ओर से प्रोत्साहन भी जा रहा है। राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की ओर से इन औषधीय फसलों की खेती पर 30 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। आज ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से हम आपको उन 5 औषधीय फसलों की खेती के बारे में जानकारी दे रहे हैं जिनसे अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
औषधीय फसलों में सतावर का अपना एक विशिष्ट स्थान है। इस फसल की खेती में काफी मुनाफा होता है। सतावर की मांग बाजार में बहुत है। ये एक ऐसी फसल है जो कम लागत में अधिक कमाई दे सकती है। इस फसल के लिए लैटेराइट, लाल दोमट मिट्टी जिसमें उचित जल निकासी सुविधा हो अच्छी रहती है। इसकी फसल 18 महीने में तैयार होती है। इससे 18 महीने बाद गिली जड़ प्राप्त होती हैं। इसके बाद जब इनको सुखाया जाता है तो इसमें वजन करीब एक तिहाई रह जाता है। यानि अगर आप 10 क्विंटल जड़ प्राप्त करते हैं तो सुखाने के बाद यह केवल 3 क्विंटल ही रह जाती हैं। फसल का दाम जड़ों की गुणवत्ता पर ही निर्भर करता है। सतावर की उपज को आयुर्वेदिक दवा कंपनियों को डायरेक्ट बेचा जा सकता है या फिर आप इसे हरिद्वार, कानपुर, लखनऊ, दिल्ली, बनारस जैसे बाजारों में बेच सकते हैं। ऐसे में अगर आप बेहतर क्वालिटी की 30 क्विंटल जड़ें भी बेच पाते हैं तो आपको 7 से 9 लाख रुपए आसानी से मिल जाएंगे।
कौंच एक आयुर्वेदिक औषधी पौधा है जिसका हर भाग किसी न किसी औषधी के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। कौंच का उपयोग च्यवनप्राश, धातु पौष्टिक चूर्ण तथा शक्तिवर्धक औषधि बनाने में किया जाता है। इसकी खेती करके भी किसान अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं। कौंच, बीज से बोया जाता है और बारिश से पहले इसकी खेती सबसे उपयुक्त मानी जाती है। कौंच की खेती के लिए एक साल पहले सहारा के पेड़ लगाने चाहिए। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि एक पेड़ की मदद से कौंच की लताएं तेजी से बढ़ सकें। कौंच खरीफ में उगाई जाने वाली फसल है, जिसके लिए अनुकूल समय 15 जून से 15 जुलाई तक है। बिजाई के लिए 6 से 8 किलो प्रति एकड़ की दर से बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले सड़ी हुई गोबर की खाद डालने से पौधे तेजी से बढ़ते हैं। इसकी खेती में कम श्रम और लागत लगती है। अगर इसकी सही तरीके से खेती की जाए तो एक एकड़ में तीन लाख रुपए तक की कमाई की जा सकती है।
आयुर्वेद में ब्राह्मी को ब्रेन बूस्टर माना जाता है। इसका प्रयोग बाल बढ़ाने वाले केश तेलों के अलावा स्मरण शक्ति तेज करने वाली दवाओं में किया जाता है। इस पौधे से लाखों रुपए की कमाई आसानी से की जा सकती है। इसकी बाजार में काफी मांग रहती है। कई आयुर्वेेदिक कंपनियां इसे खरीदती हैं। ब्राह्मी की खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान सबसे उपयुक्त होता है। प्राय: ब्राह्मी के पौधे को जंगल में तालाबों, नदियों, नहरों और जलाशयों के किनारे उगाया जाता है। भारत में लगभग सभी राज्यों में इसकी खेती की जाती है। बता दें कि ब्राह्मी की खेती धान की तरह की जाती है। यानी पहले नर्सरी लगाकर पौध तैयार की जाती है। इसके बाद इसे पहले से तैयार खेत में रोप दिया जाता है। किसानों का कहना है कि चार महीने की रोपाई के बाद पहली कटाई के लिए ब्राह्मी की फसल तैयार हो जाती है। इस फसल से किसानों को साल में तीन से चार साल बाद उपज मिलती है। इस कारण से ये बड़ी कमाई का जरिया बन जाता है। ब्राह्मी के पत्ते और जड़ें बिकती हैं।
एलोवेरा की खेती से किसान काफी अच्छा पैसा कमा सकते हैं। मार्केट में एलोवेरा का ज्यूस और इससे बने उत्पादों की काफी डिमांड है। कई कंपनियां तो एलोवेरा की कॉन्ट्रैक्ट खेती भी करवाती हैं। यदि एलोवेरा की सही तरीके से व्यवसायिक रूप से खेती की जाए तो इससे सालाना 8-10 लाख रुपए तक की कमाई की जा सकती है। सबसे बड़ी बात ये हैं कि आप सिर्फ एक बार इसके पौधे लगाकर इससे 5 साल तक मुनाफा कमा सकते हैं। इसे कम पानी की आवश्यकता होती है। इसकी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। एलोवेरा के पौधे जुलाई-अगस्त में लगाना अच्छा रहता है। एलोवेरा की खेती सर्दियों के महीनों को छोडक़र पूरे साल की जा सकती है। आयुर्वेद मेंं एलोवेरा को चर्म रोग, पीलिया, खांसी, बुखार, पथरी, सांस आदि रोगों में काफी उपयोगी बताया गया है। यदि एक एकड़ में एलोवेरा की खेती की जाए तो हर साल करीब 20 हजार किलो एलोवेरा का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
लेमनग्रास एक पतली-लंबी घास वाला औषधीय पौधा है जिसकी पत्तियों और तेल से दवाइयां बनाई जाती हैं। इसका वैज्ञानिक नाम सिम्बोपोगोन है। लेमनग्रास की सबसे बड़ी पहचान यह है कि, इसकी पत्तियों को हाथ में लेकर मसलने पर नींबू जैसी महक आती हैं। इसकी सूखी पत्तियों से बनने वाले पाउडर से हर्बल चाय बनाई जाती है। इसके अलावा लेमन ग्रास के तेल की आयुर्वेदिक दवा बनाने की कंपनियों में डिमांड रहने से इन दिनों इसकी खेती किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है। इसका उपयोग साबुन, परफ्यूम, कास्मेटिक उत्पादों आदि में किया जाता है। लेमन ग्रास की खासियत यह है कि इसकी रोपाई एक बार करने के बाद पांच साल तक फसल इसकी फसल ली जा सकती है। इसमें सिंचाई को छोडक़र किसी प्रकार की कोई लागत नहीं लगती है। एक वर्ष में लेमन ग्रास की चार से पांच कटाई की जाती है जिससे 35 से 40 क्विंटल तक प्रति बीघा उत्पादन मिल जाता है। एक बीघा की लेमन ग्रास से एक वर्ष 27 से 28 लीटर तेल प्राप्त होता है। इसका औसतन भाव 1350 प्रति लीटर रहता है।
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