Published - 03 Jul 2021
भारतीय कृषि में खरीफ की फसलों में धान का एक महत्वपूर्ण स्थान है। लेकिन धान की खेती में सबसे अधिक पानी की आवश्कता होती है। इस लिहाज से धान की खेती अब कई राज्यों के किसानों के लिए करना मुश्किल होता जा रहा है। जल का अंधाधुंध दोहन के फलस्वरूप आज भूजल स्तर गिरता जा रहा है। इसे देखते हुए कई राज्यों में किसानों को धान की खेती की जगह अन्य कम पानी वाली फसलों को बोने की सलाह दी जा रही है। यह सच है कि पृथ्वी पर पानी कम होता जा रहा है जिसका मूल कारण साल दर बारिश का कम होना है। वहीं हमारी जल को बर्बाद करने की प्रवृति भी इसके लिए जिम्मेदार है। बहरहाल हम बात कर रहे हैं धान की खेती की। धान की खेती को अधिक पानी की आवश्यकता होती है लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो कम पानी में भी धान की खेती करना आसान हो सकता है। इसके लिए आज हम आपको धान रोपाई की एरोविक विधि के बारे में चर्चा करेंगे कि किस तरह इस विधि से धान की रोपाई करने पर पानी की बचत होती है और उत्पादन भी बेहतर मिलता है।
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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और फिलिपींस स्थित अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) ने संयुक्त रूप से धान की एरोबिक तकनीक ईजाद की है, इसे कुछ दौर की सिंचाई के जरिए ही उगाया जा सकता है। इस परियोजना में कटक स्थित केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) की भी भागीदारी है। धान की खेती के लिए एरोबिक विधि में न तो खेत में पानी भरना पड़ता है और न ही रोपाई करनी पड़ती है। इस विधि से बुवाई करने के लिए बीज को एक लाइन में बोया जाता है। इस विधि से बुवाई करने में खेत भी तैयार नहीं करना होता है और पलेवा भी नहीं करना होता है। इसमें दूसरी विधियों के मुकाबले 40 से 50 प्रतिशत तक पानी की बचत हो जाती है। क्योंकि दूसरी विधि में पहले तो नर्सरी में ज्यादा पानी लगता है उसके बाद जब नर्सरी तैयार हो जाती है तो रोपाई के समय भी पानी भरना पड़ता है, जबकि इस विधि में कम पानी लगता है।
धान की एरोबिक विधि में सामान्यत: गेहूं या मक्का जैसे ही इसकी बुवाई की जाती है। इसमें हम सामान्य रूप से धान की सूखी सीधे बोवनी करते हैं। सर्वप्रथम 2 या 3 जुताई कर खेत को समतल कर मिट्टी को भुरभुरा करते हैं इसके बाद खेत में हल्की नमी हो तब हम सीडड्रिल-फर्टिड्रिल के माध्यम से 2-3 सेमी की गहराई में बुवाई करते हैं यदि काली मिट्टी है तो बुवाई 1-2 सेमी की गहराई पर करते है कतार से कतार की दूरी 22 से 25 सेमी रखी जाती है।
अगर मई में बुवाई करते हैं तो 12 किलो प्रति एकड़ बीज लगता है और वहीं अगर जून-जुलाई में करते हैं तो बीज और कम 10 किलो के करीब ही लगता है। ज्यादा बीज बोने से पौधे कमजोर हो जाते हैं। बीजों को बुवाई से पहले उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को पहले फफूंद नाशक दवा से उपचारित करना चाहिए उसके बाद जैविक कल्चर से उपचार करना चाहिए, उपचारित बीज को तुरंत बुवाई में प्रयोग करना चाहिए।
एरोबिक विधि से खेती करने वाले किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों के बताए अनुसार इस विधि से धान की बुवाई करते समय जिन बातों का ध्यान रखना चाहिए वे इस प्रकार से हैं-
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