प्रकाशित - 13 May 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
किसान अनाज, दलहन व तिलहन फसलों के अलावा सब्जियों की खेती से भी काफी अच्छा लाभ प्राप्त कर रहे हैं। किसान कई तरह की सब्जियों की खेती करते हैं। इसमें एक करेला भी है। इसकी मांग बाजार में काफी रहती है। करेले में विटामिन ए, बी और सी पाया जाता है। इसके अलावा इसमें कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, जिंक, पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयरन, मैग्नीज आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं जो कई प्रकार के रोगों को दूर करने में सहायक होते हैं। शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए तो यह रामबाण औषधी के रूप में काम करता है। शुगर के मरीजों को डॉक्टर रोज करेला खाने की सलाह देते हैं। करेला खून को साफ करने में सहायक है। इसके सेवन से पाचन क्रिया सुधरती है। करेला औषधीय गुणों से युक्त एक ऐसी सब्जी है जिसका सेवन शरीर के लिए काफी फायदेमंद माना गया है। इसके बाजार भाव भी बेहतर मिल जाता है। यदि किसान वर्टिकल तरीके से करेले की खेती (bitter gourd cultivation) करते हैं तो उन्हें इससे काफी अच्छी मुनाफा हो सकता है।
वर्टिकल फार्मिंग (What is vertical farming) से तात्पर्य कम जगह पर अधिक सब्जियों को उगाने से है। वर्टिकल खेती में सब्जियों को परतों में उगाया जाता है। वर्टिकल फार्मिंग के तहत हाइड्रोपोनिक, एरोपोनिक और एक्वापोनिक्स जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। करेले में वर्टिकल तकनीक के प्रयोग के तहत बांस लगाकर तारबंदी के बाद धागे बांधकर उस पर बेल चढ़ाकर खेती की जाती है। एक किसान के अनुसार उसने तीन बीघे में करेले की वर्टिकल फार्मिंग की है। यह पूरी तरह से ऑर्गेनिक है। इसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरक का प्रयोग नहीं किया गया है। करेले की ऑर्गेनिक खेती (Organic cultivation of bitter gourd) करने से उसे काफी लाभ हो रहा है। इसके बाजार में उसे बेहतर भाव मिल रहे हैं जिससे करेले की खेती उसके लिए बड़ी लाभकारी साबित हाे रही है।
करेले की खेती (bitter gourd cultivation) के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त है। इसके अलावा नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी भी इसकी खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। करेले की खेती गर्म जलवायु में अच्छी होती है। इसकी खेती के लिए 25 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान अच्छा माना जाता है।
करेले की खेती (Bitter gourd cultivation) जायद और खरीफ दोनों सीजन में की जा सकती है। जायद के सीजन में करेले की खेती में लागत अधिक आती है लेकिन मुनाफा भी ज्यादा होता है। जायद सीजन में इसकी बुवाई का समय फरवरी से मार्च तक होता है जिसकी पैदावार मई-जून में मिलती है। वहीं खरीफ सीजन में इसकी बुवाई जून से जुलाई में की जाती है जिसकी फसल अगस्त से सितंबर तक तैयार हो जाती है। इस तरह किसान साल में दो बार इसकी खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं।
करेले की बहुत सी ऐसी किस्में है जो अधिक पैदावार देती है जिनकी खेती करके किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। करेले की उन्नत किस्मों में पूसा विशेष, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, कल्याणपुर बारहमासी, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब- 14, सोलर हरा, सोलर सफेद, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर 1, प्रिया को- 1, एसडीयू- 1 आदि शामिल हैं।
करेले की खेती (Bitter gourd cultivation) से पूर्व खेत की तैयारी करते समय खेत में गोबर की खाद डाल दें। इसके बाद कल्टीवेटर की सहायता से खेत की अच्छी तरीके से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। इसके बाद पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लें। करेले के बीजों की बुवाई से पूर्व खेत में नालियां बना लें। यह नालियां खेत के दोनों तरफ बनाई जाती हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि खेत में जलभराव न हो। एक एकड़ में करेले की बुवाई के लिए करीब 600 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। करेले के बीजों को 2 से 3 इंच की गहराई पर बोना चाहिए। वहीं नाली से नाली की दूरी करीब 2 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 70 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बेल निकलने के बाद में मचान पर उसे सही तरीके से चढ़ा दें।
करेले की खेती (Bitter gourd cultivation) के लिए जाल विधि का प्रयोग करना चाहिए। यह करेले के उत्पादन की सबसे बेहतर विधि मानी जाती है। खास बात यह है कि इस विधि से करेले की खेती करने पर अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इस विधि में पूरे खेत में जाल बनाकर करेले की बेल को फैला दिया जाता है। इस विधि का सबसे अधिक फायदा यह है कि फसल को पशु नष्ट नहीं कर पाते हैं और दूसरा, यह सब्जी जाल में अच्छे से फैल जाती है जिससे नीचे क्यारियों में खाली जगह का उपयोग धनिया और मैथी जैसी सब्जियों को उगाने के लिए किया जा सकता है। ऐसे में किसान करेले के साथ ही अन्य दो तरह की सब्जियां उगाकर उससे अच्छा लाभ ले सकते हैं।
यदि किसान भाई अपने खेत में एक एकड़ में करेले की खेती करते हैं तो उन्हें करीब 30 हजार रुपए की लागत आएगी। यदि किसान ऊपर बताई गई तकनीक का इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें प्रति एकड करीब 3 लाख रुपए तक की कमाई हो सकती है। ऐसे में किसान करेले की खेती से 10 गुना तक मुनाफा कमा सकते हैं।
सरकार की ओर से एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत बागवानी फसलों के लिए अनुदान दिया जाता है। इसमें सब्जियों की खेती के लिए भी सब्सिडी (subsidy) दी जाती है। योजना में किसी विशेष सब्जी फसल का नाम नहीं है। इसलिए करेले की खेती के लिए कोई अलग से प्रावधान नहीं किया गया है। किसान चाहे तो सरकार जो पैसा सब्जियों की खेती के लिए अनुदान के रूप में देती है उसमें हाइब्रिड करेले की खेती भी कर सकते हैं। सरकार की ओर से हाइब्रिड सब्जियों की खेती के लिए प्रति हैक्टेयर 50 हजार रुपए लागत निर्धारित की गई है जिसका लाभ लाभार्थी को अधिकतम दो हैक्टेयर तक दिया जाता है। इसमें सामान्य क्षेत्रों में किसानों को इस लागत का 40 प्रतिशत और पूर्वोत्तर एवं हिमालयी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। इस तरह सामान्य क्षेत्रों में किसानों को 20,000 रुपए और पहाड़ी एवं पूर्वी राज्यों के किसानों को 25,000 रुपए प्रति हैक्टेयर तक अनुदान दिया जाता है।
ट्रैक्टर जंक्शन हमेशा आपको अपडेट रखता है। इसके लिए ट्रैक्टरों के नये मॉडलों और उनके कृषि उपयोग के बारे में एग्रीकल्चर खबरें प्रकाशित की जाती हैं। प्रमुख ट्रैक्टर कंपनियों जॉन डियर ट्रैक्टर, महिंद्रा ट्रैक्टर आदि की मासिक सेल्स रिपोर्ट भी हम प्रकाशित करते हैं जिसमें ट्रैक्टरों की थोक व खुदरा बिक्री की विस्तृत जानकारी दी जाती है। अगर आप मासिक सदस्यता प्राप्त करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करें।
अगर आप नए ट्रैक्टर, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण बेचने या खरीदने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार और विक्रेता आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु को ट्रैक्टर जंक्शन के साथ शेयर करें।