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नवंबर माह में करें इन 5 फसलों की खेती, होगी बंपर पैदावार

प्रकाशित - 02 Nov 2022

जानें, इस माह किन फसलों की बुवाई से किसानों को होगा लाभ

देश में खरीफ की प्रमुख फसल धान की कटाई का काम अपने अंतिम चरण में हैं। किसान खरीफ की फसलों की कटाई का काम पूरा करके रबी फसलों की बुवाई की तैयारी शुरू कर चुके हैं। ऐसे में किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या होती है सही फसल का चुनाव करना। किसान रबी सीजन में कौन सी फसल की बुवाई करें जिससे फसल का सही उत्पादन प्राप्त हो और किसान बेहतर मुनाफा प्राप्त कर सके। किसान भाइयों आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से नवंबर के महीने में बोई जाने वाली प्रमुख फसलों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

भारत में बोई जाने वाली रबी सीजन की प्रमुख फसलें

रबी की फसल भारत में अक्टूबर और नवंबर माह के दौरान बोई जाती है जो कम तापमान में बोई जाती है, फसल की कटाई फरवरी और मार्च महीने में की जाती है। आलू, मसूर, गेहूं, जौ, तोरिया (लाही), मसूर, चना, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें हैं। वहीं बात करें रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलों की तो इसमें टमाटर, बैगन, भिन्डी, आलू, तोरई, लौकी, करेला, सेम, फूलगोभी, पत्ता-गोभी, गाठ-गोभी, मूली, गाजर, शलजम, मटर, चुकंदर, पालक, मेंथी, प्याज, आलू, शकरकंद आदि सब्जियां उगाई जाती हैं।

नवंबर माह में करें इन फसलों की बुवाई

नवंबर महीना में समान्यत: रबी सीजन की फसलों व सब्जियों की बुवाई होती हैं, आज हम रबी सीजन की 5 अधिक मुनाफा देने वाली फसलों व सब्जियों की बात करेंगे। नवंबर माह में प्रमुख रूप से बोई जाने वाली फसलें निम्नलिखित हैं-

1. गेहूं

गेहूं भारत में रबी सीजन में बोई जाने वाली एक मुख्य फसल है। गेहूं का उपयोग मनुष्य अपने जीवनयापन हेतु मुख्यत रोटी के रूप में करते हैं, गेहूं में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, एवं हरियाणा गेहूं के मुख्य उत्पादक राज्य हैं। गेहूं की फसल में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए हमें कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं। वो बाते निम्नलिखित हैं

  • गेहूं की बुवाई का उपयुक्त समय मध्य अक्टूबर से नवंबर तक का हैं। 
  • गेहूं की फसल में बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों के बीज का प्रयोग करना चाहिए। गेहूं की करण नरेन्द्र, करण वंदना, पूसा यशस्वी, करण श्रिया और डीडीडब्ल्यू 47 आदि उन्नत किस्में हैं।
  • गेहूं की बुआई करते समय कम तापमान और फसल के पकते समय शुष्क और गर्म वातावरण की जरूरत होती हैं।
  • गेहूं की खेती करते समय अच्छे फसल उत्पादन के लिए मटियार दोमट भूमि को सबसे सर्वोत्तम माना जाता है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 तक का होना चाहिए।
  • गेहूं की खेती करते समय बीज की बुआई से पहले बीज की अंकुरण क्षमता की जांच ज़रूर करनी चाहिए अगर गेहूं का बीज उपचारित नहीं है तो बुआई से पहले बीज को किसी फफूंदी नाशक दवा से उपचार अवश्य करना चाहिए।
  • गेहूं की फसल में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए सही मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए।
  • गेहूं की फसल बुवाई के 20 से 25 दिन के बाद पहली सिंचाई करना चाहिए। गेहूं की फसल में 3 से 4 सिंचाई की आवश्यकता होती हैं।
  • फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना आवश्यक होता हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए आप रसायन का भी छिड़काव कर सकते हैं।

2. चना

चना रबी सीजन की महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। चना के 100 ग्राम दाने में औसतन 11 ग्राम पानी, 21.1 ग्राम प्रोटीन, 4.5 ग्राम वसा, 61.65 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 149 मि.ग्रा. कैल्शियम, 7.2 मिलीग्राम लोहा, 0.14 मिलीग्राम राइबोफ्लेविन तथा 2.3 मिलीग्राम नियासिन जैसे पोषक तत्व पाए जाते है। हमारे देश में चना की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा बिहार है। मध्य प्रदेश में सबसे अधिक क्षेत्रफल में चना की खेती की जाती है व देश में चना का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला राज्य भी मध्य प्रदेश ही है। चना की फसल में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए हमें कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं। वो बाते निम्नलिखित हैं

  • चना की बुवाई करने के लिए मध्य अक्तूबर से नवंबर महीना सबसे उपयुक्त होता हैं।
  • चना की खेती करने के लिए मध्यम वर्षा (60-90 सेटीमीटर वार्षिक वर्षा) और सर्दी वाले क्षेत्र सबसे उपयुक्त है।
  • चना की खेती करने के लिए दोमट व मटियारा मिट्टी में सफलता पूर्वक किया जा सकता है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 तक का उपयुक्त रहता है।
  • चना की खेती करने के लिए कम और ज्यादा तापमान दोनों ही फसल के लिए हानिकारक है। चना की बुवाई गहरी काली और मध्यम मिट्टी में करें।
  • चना की खेती करते समय अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों की बीजों की ही बुवाई करें। चना की पूसा-256, केडब्लूआर-108, डीसीपी 92-3, केडीजी-1168, जेपी-14, जीएनजी-1581, गुजरात चना-4, के-850, आधार (आरएसजी-936), डब्लूसीजी-1 और डब्लूसीजी-2 आदि प्रमुख उन्नत किस्में हैं।खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के 30 से 35 दिन बाद निराई-गुड़ाई अवश्य करना चाहिए।
  • चना की फसल में अधिक उपज प्राप्त करने के लिए सही मात्रा में खाद का प्रयोग करना चाहिए।
  • चना के खेत में पानी का जमाव ना होने दे, अगर पानी जमा हो रहा हो तो उचित जल निकास की व्यवस्था करें।
  • कीड़ों व रोगों से फसल के बचाव हेतु समय-समय पर रासायनिक छिड़काव अवश्य करें।

3. सरसों

सरसों रबी सीजन की मुख्य तिलहनी फसल हैं। सरसों की खेती भारत के सभी स्थानों पर की जाती है। मुख्य रूप् से सरसों की खेती हरियाणा, राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, उत्‍तर प्रदेश और महाराष्‍ट्र में की जाती है। सरसों की खेती की खास बात यह है की यह सिंचित और असिंचित, दोनों ही तरह के खेतों में उगाई जा सकती है। सोयाबीन और पाम के तेल के बाद विश्व में यह तीसरी सब से ज्यादा महत्तवपूर्ण तिलहन फसल है। मुख्य तौर पर सरसों के तेल के साथ-साथ सरसों के पत्ते का उपयोग सब्जी बनाने में होता हैं और सरसों की खली भी बनती है जो कि दुधारू पशुओं को खिलाने के काम आती है। सरसों की फसल में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए हमें कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं। वो बाते निम्नलिखित हैं

  • सरसों की खेती करने के लिए 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान होना चाहिए, सरसों की खेती करने के लिए दोमट भूमि सर्वोतम होती है।
  • सरसों की खेती करने के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 होना चाहिए
  • सरसों की उन्नत किस्मों में पूसा बोल्ड, क्रान्ति, पूसा जयकिसान (बायो 902), पूसा विजय आदि हैं।    
  • सरसों की बुवाई करते समय उन्नत किस्मों के बीजों का ही प्रयोग करना चाहिए
  • सरसों की फसल में पहली सिंचाई 25 से 30 दिन के बाद करना चाहिए। इसकी खेती में 2 से 3 सिंचाई करना आवश्यक होता हैं। ध्यान रहें सरसों की फसल में फलियों में दाना भरने की अवस्था में सिंचाई नहीं करना चाहिए। फलियों में दाना भरने की अवस्था में सिंचाई करने से फसल उत्पादन प्रभावित होता हैं। 
  • सरसों की खेती करते समय अधिक मात्रा में उपज प्राप्त करने के लिए खाद व उर्वरक का सही मात्रा में प्रयोग करना आवश्यक होता हैं।
  • सरसों की खेती करते समय खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करना आवश्यक होता हैं।

4. आलू

आलू का भारत में पैदा होने वाली सब्जियों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान हैं। इसीलिए आलू को सब्जियों का राजा कहां जाता हैं। आलू में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। आलू की खेती वैसे तो सभी क्षेत्रों में होती हैं लेकिन भारत में आलू की खेती सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश में होती है। आलू की फसल में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए हमें कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं। वो बाते निम्नलिखित हैं

  • आलू की बुवाई करने का उपयुक्त समय अक्तूबर से नवंबर का हैं
  • आलू की खेती करने के लिए समतल और मध्यम ऊंचाई वाले खेत ज्यादा उपयुक्त होते हैं। साथ ही अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी जिसकी पीएच मान 5.5 से 5.7 के बीच का होना चाहिए। 
  • आलू की फसल में सबसे पहले कल्टीवेटर की मदद से 2 से 3 बार खेत की जुताई करें। खेत की जुताई करने के बाद पाटा जरूर लगाए ताकि मिट्टी भुरभूरी और खेत समतल हो जाए। पाटा लगाने से आलू के कंदो के विकास में आसानी होती है।
  • आलू की खेती में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों की बीजों का चयन करना चाहिए। आलू की उन्नत किस्मों में राजेन्द्र आलू, कुफरी कंच और कुफरी चिप्ससोना आदि मुख्य है।
  • आलू की बुआई करते समय कतार से कतार की दूरी 50 से 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखे।
  • आलू की खेती करते समय 20 से 25 दिन बाद खरपतवार नियंत्रण करने के लिए निराई-गुड़ाई अवश्य करें और निराई के दौरान आलू पर मिट्टी चढ़ाकर नालियों को व्यवस्थित करें जिससे आलू के पौधे का विकास सही तरीके से होता हैं।
  • आलू की खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई आलू की फसल की बुवाई के 10 से 20 दिनों के अंदर कर देनी चाहिए। इसके बाद 10 से 15 दिन के अंतराल में थोड़ी-थोड़ी सिंचाई करते रहने चाहिए।
  • आलू के खेत की सिंचाई करते समय इस बात का ख्याल रखें कि मेड़ 2 से 3 इंच से ज्यादा नहीं डूबे।

5. मटर

भारत में रबी फसलों में मटर का महत्वपूर्ण स्थान है। मटर का इस्तेमाल सब्जी व दाल के रुप में होता हैं। मटर में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, और विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। मटर एक ऐसी फसल है जिसका उपयोग कई प्रकार की सब्जियों के साथ किया जाता है। भारत में मटर का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश हैं। इसके अलावा कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार और उड़ीसा में भी मटर की खेती की जाती हैं। मटर की फसल में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए हमें कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं। वो बाते निम्नलिखित हैं

  • मटर की खेती करने के लिए उपयुक्त समय मध्य अक्टूबर से नवंबर तक का समय सबसे उपयुक्त होता हैं
  • मटर की खेती करते समय मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 होना चाहिए
  • मटर की खेती में अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों की बीजों का ही प्रयोग करें मटर की आर्केल,लिंकन,बोनविले, मालवीय मटर,पंजाब 89,पूसा प्रभात,पंत 157 आदि प्रमुख उन्नत किस्में हैं।
  • मटर की बुवाई में खेत की तैयारी करते समय 2 से 3 बार कल्टीवेटर की मदद से जुताई करें व भूमि को समतल करने के लिए पाटा अवश्य लगायें।
  • मटर की बुवाई करने के लिए देशी हल जिसमें पोरा लगा हो या सीड ड्रिल से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर बुआई करनी चाहिए। बीज की गहराई 5 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
  • मटर की खेती में 1 से 2 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई फूल आने के समय और दूसरी सिंचाई फसल में फलियां बनने के समय करनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हल्की सिंचाई करें और खेत में पानी जमा ना होने दे इसके लिए खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था अवश्य करें।
  • मटर की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई अवश्य करें। जरुरत पड़ने पर खरपतवार नियंत्रण के लिए आप रसायन का भी छिड़काव कर सकते हैं। 


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