Published - 03 Mar 2021 by Tractor Junction
फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सरकार किसानों को सहायता प्रदान करती है। इसके बाद भी हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने का सिलसिला जारी है। पराली जलाने से किसानों को रोकने के लिए सरकार की ओर से हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। यहां तक की सरकार ने पराली की जलाने की समस्या पर सख्त होते हुए इसे जलाने वाले किसानों पर दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्णय लिया है। बता दें कि हरियाणा व पंजाब में पराली जलाने वाले किसानों के लिए पहले से ही सरकार सख्त है और वहां पहले से ही पराली जलाने पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। अब बिहार सरकार भी पराली जलाने वाले किसानों पर सख्त रूख अपना रही है।
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मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार हाल ही में बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह ने राज्य में खेतों में फसल अवशेषों को जलाए जाने की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने वाले लोगों के खिलाफ सरकार दंडात्मक कार्रवाई करेगी। खेतों में फसल अवशेष जलाये जाने से मिट्टी की उत्पादक क्षमता कम होती है। बिहार विधानसभा में वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए कृषि विभाग के 3,335.47 करोड़ों रुपये के बजटीय मांग पर हुई चर्चा के बाद जवाब देते हुए सिंह ने कहा कि राज्य के कई जिलों में फसल अवशेष जलाए जाने की समस्या बड़ी होती जा रही है और ऐसा किए जाने के कारण मिट्टी की घटती उत्पादकता को देखते हुए सरकार ने किसानों के बीच जागरूकता पैदा करने की पहल की है। बता दें कि हरियाणा और पंजाब में धान की फसल की कटाई के बाद जो फसल अवशेष बच जाते हैं उन्हें ही पराली कहा जाता है।
कृषि मंत्री ने बताया कि मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा है कि वे हेलीकॉप्टरों के जरिए हवाई निरीक्षण करें और अगर जरूरत पड़ी तो वे किसानों को फसल अवशेष को जलाने के दुष्प्रभाव के बारे में समझने का प्रयास करेंगे। मंत्री ने कहा कि यहां के किसानों ने भी पंजाब की तर्ज पर फसल अवशेष को खेतों में जलाना शुरू कर किया है। अगर किसान नहीं माने तो राज्य सरकार उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करेगी। उन्होंने कहा कि अन्न देने वाली धरती माता को इस तरह जलाने की अनुमति हम नहीं देंगे।
धान की पराली जलाना देश के उत्तरी क्षेत्र की प्रमुख समस्याओं में से एक है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। रबी फसल की बुवाई हेतु खेतों को साफ करने के लिए वर्तमान में पंजाब और हरियाणा में बड़े पैमाने पर पराली जलाई जाती है क्योंकि धान की फसल की कटाई और अगली फसलों की बुवाई के बीच बहुत कम समय (2 से 3 सप्ताह) मिलता है। इस क्षेत्र के किसानों को फसल अवशेष जलाने से रोकने के लिए कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2018 में सीआरएम योजना (फसल अवशेष प्रबंधन) की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत किसानों को सीएचसी (कस्टम हायरिंग सेंटर) की स्थापना के माध्यम से फसल अवशेषों के तुरंत प्रबंधन के लिए मशीनरी उपलब्ध कराई जाती है। किसानों को व्यक्तिगत रूप से मशीनरी खरीदने के लिए सब्सिडी भी उपलब्ध कराई जाती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश राज्यों और एनसीटी को वर्ष 2018-19 और 2019-20 में कुल 1178.47 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध कराई गई। वर्ष 2020-21 में योजना के लिए 600 करोड़ रुपये का बजट उपलब्ध कराया गया है और तत्संबंधी गतिविधियों की अग्रिम रूप से शुरुआत सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को 548.20 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। बता दें कि इस फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी योजना के तहत कृषि उपकरण खरीदने पर राज्य सरकार द्वारा किसानों को अधिकतम 80 प्रतिशत तक का अनुदान देने का प्रावधान रखा गया है।
एनजीटी के आदेशानुसार पराली जलाने पर 2500 रुपए का जुर्माना 2 से 5 एकड़ जमीन पर और 5 एकड़ से ज्यादा जमीन पर पराली जलाने पर 5 हजार रुपए का जुर्माना है। एनजीटी यह फाइन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए लिया जा रहा है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पराली की मदद से बेहतर खाद तैयार किया जा सकता है। ऐसा करने से किसानों को यूरिया डालने की आवश्यकता भी खत्म होगी। जिससे किसान का पैसा बचेगा और उसे हर समय खाद खेत पर ही उपलब्ध हो जाएगी। वहीं पशु चारे के रूप में भी पराली का इसका उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा पराली को मशीन से काटकर खेत में बिखेर दे ताकि वे मिट्टी में मिलकर खाद का रूप ले सके। इससे खेत की उत्पादकता क्षमता में वृद्धि होगी और पराली को जलाने की समस्या से भी मुक्ति मिलेगी।
खेत के किसी कोने में गड्ढे बना लें। इसके बाद पराली को इसी में डाल दें। यदि खेत में ओर दूसरे खरपतवार भी है, तो उनको भी उखाडक़र इसी में भर दें। गोबर आदि है, तो वह भी इसी में डाला जा सकता है। करीब छह महीने के बाद ये पूरी तरह से गलकर खाद का रूप तैयार हो जाएगा। इस प्रकार से किसान फसलों के अवशेष से ही खाद तैयार वर्ष भर का यूरिया का खर्च बचा सकते है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार धान की कटाई के बाद इनके ठूंठ जलाने की आवश्यकता नहीं है। किसान धान की कटाई के बाद सीधे बगैर खेत की जुताई किए, जीरो टिलेज मशीन से गेहूं की बिजाई कर सकते है। इससे एक ओर पानी की बचत होगी। वहीं दूसरी ओर पराली जलाने की जरूरत नहीं होगी। इसके लिए किसानों को जागरूक करना जरूरी है तभी पराली की समस्या का समाधान समाधान हो सकता है।
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