Published - 05 May 2020
ट्रैक्टर जंक्शन पर किसान भाइयों का स्वागत है। किसान भाइयों, आज हम बात करते हैं कपास की उन्नत खेती की। कपास भारत में महत्वपूर्ण कृषि उपज में से एक है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है। पहले नंबर पर चीन आता है। प्राकृतिक रेशा प्रदान करने वाली कपास भारत की सबसे महत्वपूर्ण रेशेवाली नकदी फसल है। जिसका देश की औद्योगिक व कृषि अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान है। विश्व में निरंतर बढ़ती खपत और विविध उपयोग के कारण कपास की फसल को सफेद सोने के नाम से जाना जाता है। किसान भाइयों मई माह में बुवाई का उचित समय शुरू हो चुका है। कपास की खेती सिंचित और असिंचित क्षेत्र दोनों में की जा सकती है। किसान भाई कपास के साथ सहफसली खेती करके अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं।
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यदि पर्याप्त सिंचाई सुविधा उपलब्ध हैं तो कपास की फसल को मई माह में ही लगाया जा सकता है। सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता न होने पर मानसून की उपयुक्त वर्षा होते ही कपास की फसल लगा सकते हैं। कपास की उत्तम फसल के लिए आदर्श जलवायु का होना आवश्यक है। फसल के उगने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेंटीग्रेट और अंकुरण के लिए आदर्श तापमान 32 से 34 डिग्री सेंटीग्रेट होना उचित है। इसकी बढ़वार के लिए 21 से 27 डिग्री तापमान चाहिए। फलन लगते समय दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तथा रातें ठंडी होनी चाहिए। कपास के लिए कम से कम 50 सेंटीमीटर वर्षा का होना आवश्यक है। 125 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा का होना हानिकारक होता है।
कपास के लिए अच्छी जलधारण और जल निकास क्षमता वाली भूमि होनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है, वहां इसकी खेती अधिक जल-धारण क्षमता वाली मटियार भूमि में की जाती है। जहां सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हों वहां बलुई एवं बलुई दोमट मिटटी में इसकी खेती की जा सकती है। यह हल्की अम्लीय एवं क्षारीय भूमि में उगाई जा सकती है। इसके लिए उपयुक्त पी एच मान 5.5 से 6.0 है। हालांकि इसकी खेती 8.5 पी एच मान तक वाली भूमि में भी की जा सकती है।
उत्तरी भारत में कपास की खेती मुख्यत: सिंचाई आधारित होती है। इन क्षेत्रों में खेत की तैयारी के लिए एक सिंचाई कर 1 से 2 गहरी जुताई करनी चाहिए एवं इसके बाद 3 से 4 हल्की जुताई कर, पाटा लगाकर बुवाई करनी चाहिए। कपास का खेत तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत पूर्णतया समतल हो ताकि मिट्टी की जलधारण एवं जलनिकास क्षमता दोनों अच्छे हों। यदि खेतों में खरपतवारों की ज्यादा समस्या न हो तो बिना जुताई या न्यूनतम जुताई से भी कपास की खेती की जा सकती है।
दक्षिण व मध्य भारत में कपास वर्षा-आधारित काली भूमि में उगाई जाती है। इन क्षेत्रों में खेत तैयार करने के लिए एक गहरी जुताई मिटटी पलटने वाले हल से रबी फसल की कटाई के बाद करनी चाहिए, जिसमें खरपतवार नष्ट हो जाते हैं और वर्षा जल का संचय अधिक होता है। इसके बाद 3 से 4 बार हैरो चलाना काफी होता है। बुवाई से पहले खेत में पाटा लगाते हैं, ताकि खेत समतल हो जाए।
देश में वर्तमान में बी.टी. कपास अधिक प्रचलित है। जिसकी किस्मों का चुनाव किसान भाई अपने क्षेत्र व परिस्थिति के अनुसार कर सकते हैं। लेकिन कुछ प्रमुख नरमा, देशी और संकर कपास की अनुमोदित किस्में क्षेत्रवार विवरण नीचे दिया गया है।
उत्तरी क्षेत्र के लिए अनुमोदित किस्में
राज्य | नरमा (अमरीकन) कपास | देशी कपास | संकर कपास |
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पंजाब | एफ- 286, एल एस- 886, एफ- 414, एफ- 846, एफ- 1861, एल एच- 1556, पूसा- 8-6, एफ- 1378 | एल डी- 230, एल डी- 327, एल डी- 491, पी एयू- 626, मोती, एल डी- 694 | फतेह, एल डी एच- 11, एल एच एच- 144 |
हरियाणा | एच- 1117, एच एस- 45, एच एस- 6, एच- 1098, पूसा 8-6 | डी एस- 1, डी एस- 5, एच- 107, एच डी- 123 | धनलक्ष्मी, एच एच एच- 223, सी एस ए ए- 2, उमा शंकर |
राजस्थान | गंगानगर अगेती, बीकानेरी नरमा, आर एस- 875, पूसा 8 व 6, आर एस- 2013 | आर जी- 8 | राज एच एच- 116 (मरू विकास) |
पश्चिमी उत्तर प्रदेश | विकास | लोहित यामली | --- |
राज्य | नरमा (अमेरिकन) कपास | देशी | संकर |
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मध्य प्रदेश | कंडवा- 3, के सी- 94-2 | माल्जरी | जे के एच वाई 1, जे के एच वाई 2 |
महाराष्ट्र | पी के वी- 081, एल आर के- 516, सी एन एच- 36, रजत | पी ए- 183, ए के ए- 4, रोहिणी | एन एच एच- 44, एच एच वी- 12 |
गुजरात | गुजरात कॉटन- 12, गुजरात कॉटन- 14, गुजरात कॉटन- 16, एल आर के- 516, सी एन एच- 36 | गुजरात कॉटन 15, गुजरात कॉटन 11 | एच- 8, डी एच- 7, एच- 10, डी एच- 5 |
दक्षिण क्षेत्र हेतु अनुमोदित किस्में-
राज्य | नरमा (अमेरिकन) कपास | देशी | संकर |
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आंध्र प्रदेश | एल आर ए- 5166, एल ए- 920, कंचन | श्रीसाईंलम महानदी, एन ए- 1315 | सविता, एच बी- 224 |
कर्नाटक | शारदा, जे के- 119, अबदीता | जी- 22, ए के- 235 | डी सी एच- 32, डी एच बी- 105, डी डी एच- 2, डी डी एच- 11 |
तमिलनाडु | एम सी यू- 5, एम सी यू- 7, एम सी यू- 9, सुरभि | के- 10, के- 11 | सविता, सूर्या, एच बी- 224, आर सी एच- 2, डी सी एच- 32 |
अन्य प्रमुख प्रजातियां : पिछले 10 से 12 वर्षों में बी टी कपास की कई किस्में भारत के सभी क्षेत्रों में उगाई जाने लगी हैं। जिनमें मुख्य किस्में इस प्रकार से हैं, जैसे- आर सी एच- 308, आर सी एच- 314, आर सी एच- 134, आर सी एच- 317, एम आर सी- 6301, एम आर सी- 6304 आदि है।
संकर तथा बी.टी. के लिए चार किलो प्रमाणित बीज प्रति हैक्टेयर डालना चाहिए. देशी और नरमा किस्मों की बुवाई के लिए 12 से 16 किलोग्राम प्रमाणित बीज प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें. बीज लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर डालें.
स्वत: गिरने वाली पुष्प कलियों और टिंडों को बचाने के लिए एन ए ए 20 पी पी एम (2 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) का घोल बनाकर पहला छिडक़ाव कलियां बनते समय एवं दूसरा टिंडों के बनना शुरू होते ही करना चाहिए। नरमा कपास की फसल में पूर्ण विकसित टिंडे खिलाने हेतु 50 से 60 प्रतिशत टिंडे खिलने पर 50 ग्राम ड्राप अल्ट्रा (थायाडायाजुरोन) को 150 लीटर पानी में घोल कर प्रति बीघा की दर से छिडक़ाव करने के 15 दिन के अन्दर करीब-करीब पूर्ण विकसित सभी टिंडे खिल जाते हैं। ड्राप अल्ट्रा का प्रयोग करने का उपयुक्त समय 20 अक्टूबर से 15 नवंबर है। इसके प्रयोग से कपास की पैदावार में वृद्धि पाई गई है। गेहूं की बिजाई भी समय पर की जा सकती है।
कपास में टिंडे पूरे खिल जाये तब उनकी चुनाई करना चाहिए। प्रथम चुनाई 50 से 60 प्रतिशत टिंडे खिलने पर शुरू करें और दूसरी शेष टिंडों के खिलने पर करें।
उपरोक्त उन्नत विधि से खेती करने पर देशी कपास की 20 से 25, संकर कपास की 25 से 32 और बी टी कपास की 30 से 50 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर पैदावार ली जा सकती है।
किसान भाई कपास की फसल के साथ सह फसली खेती करके अतिरिक्त लाभ अर्जित कर सकते हैं। कपास एक लंबी अवधि वाली फसल है और प्रारंभिक अवस्था में इसके पौधों में बढ़वार की धीमी गति से होती है। इसके अलावा कपास की पंक्तियों के मध्य खाली स्थान भी अधिक होता है। कपास की दो पंक्तियों के मध्य मूंग,उड़द, मूंगफली, सोयाबीन आदि फसलों की बुवाई कर अतिरिक्त मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। सहफसली खेती से कपास में खरपतवार, कीट रोग का प्रकोप भी कम होता है। कपास के साथ दलहनी फसलों की सह फसली खेती भूमि की उर्वरा शक्ति में इजाफा करने और नमीं सरंक्षण में सहायक होती है।
कपास एक नकदी फसल है। भारत विश्व में नंबर वन कपास उत्पादक देश बन गया है। 360 लाख गांठ कपास उत्पादन के साथ भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। भारत में वैश्विक उत्पादन का 25 प्रतिशत हिस्सा पैदा होता है। इससे पहले चीन में सबसे ज्यादा कपास की खेती होती थी। दुनिया का 38 फीसदी कपास उत्पादक क्षेत्र भारत में ही है। भारत की लगभग 9.4 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की जाती है। भारत में प्रमुख कपास उत्पादक राज्य गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, उड़ीसा आदि हैं।
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