Published - 25 Sep 2020 by Tractor Junction
मसाला फसलों में धनिया भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसकी खुशबू और स्वाद के कारण इसे सब्जी में मसालों के साथ प्रयोग में लाया जाता है। यही नहीं ताजा धनिये की पत्तियां हर सब्जी में पकने बाद डाली जाती है जो सब्जी के स्वाद को और बढ़ा देती हैं। धनिये की खेती कई तरीके से की जा सकती है। इसे खेत में तो उगाया ही जाता है। वहीं इसे घर के गमले में भी उगाया जा सकता है। कई घरों में बगीचे में लोग धनिया उगा लेते हैं। इस तरह देखा जाए तो इसका उत्पादन छोटे स्तर से लेकर बड़े पैमाने पर किया जा सकता है।
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धनिये की खेती करने से पहले हमें इसकी उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके। इसके लिए जरूरी है कि किसानों को इसकी उन्नत किस्म के बारे में जानकारी हो। हम आपको धनिया की खेती का तरीका तो बताएंगे ही साथ ही इसकी अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की जानकारी भी देंगे। तो आइए जानते हैं धनिया की खेती के बारे में उपयोगी जानकारी जो आपको धनिये का गुणवत्तापूर्ण अधिक उत्पादन करने में मदद करेगी।
धनिया अम्बेली फेरी या गाजर कुल का एक वर्षीय मसाला फसल है। इसका हरा धनिया सिलेन्ट्रो या चाइनीज पर्सले कहलाता है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते है। धनिया बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण होने के कारण कुलिनरी के रूप में, कार्मिनेटीव और डायरेटिक के रूप में उपयोग में आते है।
भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कनार्टक और उत्तर प्रदेश में अधिक की जाती है। इनमें मध्यप्रदेश में धनिया की खेती 1,16,607 हेक्टेयर में होती है जिससे लगभग 1,84,702 टन उत्पादन प्राप्त होता है। भारत धनिया का प्रमुख निर्यातक देश है।
धनिये की अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में हिसार सुगंध, आर सी आर 41, कुंभराज, आर सी आर 435, आर सी आर 436, आर सी आर 446, जी सी 2 (गुजरात धनिया 2), आरसीआर 684, पंत हरितमा, सिम्पो एस 33, जे डी-1, एसी आर 1, सी एस 6, जे डी-1, आर सी आर 480, आर सी आर 728 शामिल हैं।
वैसे तो इसकी बुवाई जून-जुलाई, बारिश के मौसम में की जा सकती है लेकिन इसकी बुवाई का उचित समय अक्टूबर से नंबवर का होता है। इस समय इसकी बुवाई करने से अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है।
शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए अनुकूल होता है। बीजों के अंकुरण के लिए 25 से 26 सेंटीग्रेट तापमान अच्छा होता है। धनिया शीतोष्ण जलवायु की फसल होने के कारण फूल एवं दाना बनने की अवस्था पर पाला रहित मौसम की आवश्यकता होती है। धनिया को पाले से बहुत नुकसान होता है। धनिया बीज की उच्च गुणवत्ता एवं अधिक वाष्पशील तेल के लिये ठंडी जलवायु, अधिक समय के लिये तेज धूप, समुद्र से अधिक ऊंचाई एवं ऊंचहन भूमि की आवश्यकता होती है ।
धनिया की सिंचित फसल के लिए अच्छा जल निकास वाली अच्छी दोमट भूमि सबसे अधिक उपयुक्त होती है और असिंचित फसल के लिए काली भारी भूमि अच्छी होती है। धनिया क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नहीं करता है। अच्छे जल निकास एवं उर्वरा शक्ति वाली दोमट या मटियार दोमट भूमि उपयुक्त होती है। मिट्टी का पी.एच. 6.5 से 7.5 होना चाहिए। सिंचित क्षेत्र में अगर जुताई के समय भूमि में पर्याप्त जल न हो तो भूमि की तैयारी पलेवा देकर करनी चाहिए। बारानी फसल के लिये खरीफ फसल की कटाई के बाद दो बार आड़ी-खड़ी जुताई करके तुरन्त पाटा लगा देना चाहिए।
सिंचित अवस्था में 15-20 कि.ग्रा./हेक्टेयर बीज तथा असिंचित में 25-30 कि.ग्रा./हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। भूमि एवं बीज जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को कार्बेंन्डाजिम+थाइरम (2:1) 3 ग्रा./कि.ग्रा. या कार्बोक्जिन 37.5 प्रतिशत+थाइरम 37.5 प्रतिशत 3 ग्रा./कि.ग्रा.+ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। बीज जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को स्टे्रप्टोमाईसिन 500 पीपीएम से उपचारित करना लाभदायक रहता है।
असिंचित धनिया की अच्छी पैदावार लेने के लिए गोबर खाद 20 टन/हेक्टेयर के साथ 40 कि.ग्रा. नत्रजन, 30 कि.ग्रा. स्फुर, 20 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से तथा 60 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. स्फुर, 20 कि.ग्रा.पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित फसल के लिए उपयोग में लाया जाना चाहिए।
बोने के पहले धनिया बीज को सावधानीपूर्वक हल्का रगडक़र बीजों को दो भागों में तोड़ कर दाल बना लें। धनिया की बोनी सीड ड्रील से कतारों में करें। कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से. मी. रखें। भारी भूमि या अधिक उर्वरा भूमि में कतारों की दूरी 40 से.मी. रखना चाहिए। धनिया की बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिए। कूड में बीज की गहराई 2-4 से.मी. तक होना चाहिए। बीज को अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण कम प्राप्त होता है। इसलिए उचित गहराई का ध्यान रखते हुए इसकी बुवाई करनी चाहिए।
धनिये में शुरुआती बढ़वार धीमी गति से होती हैं इसलिए निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को निकलना चाहिए। सामान्यत: धनिये में दो निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है। पहली निराई-गुड़ाई के 30-35 दिन में तथा दूसरी 60 दिन बाद करनी चाहिए। इससे बढ़वार अच्छी होने के साथ उत्पादन बढ़ता है। इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथालीन 1 लीटर प्रति हेक्टेयर 600 लीटर पानी में मिलाकर अंकुरण से पहले छिडक़ाब करना चाहिए।
धनिया में पहली सिंचाई 30-35 दिन बाद (पत्ती बनने की अवस्था), दूसरी सिंचाई 50-60 दिन बाद (शाखा निकलने की अवस्था), तीसरी सिंचाई 70-80 दिन बाद (फूल आने की अवस्था) तथा चौथी सिंचाई 90-100 दिन बाद (बीज बनने की अवस्था ) करना चाहिए। हल्की जमीन में पांचवी सिंचाई 105-110 दिन बाद (दाना पकने की अवस्था) करना लाभदायक है। इसके अलावा यदि जरूरत हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई की जानी चाहिए।
जब धनिया दाना दबाने पर मध्यम कठोर तथा पत्तियां पीली पडऩे लगे, धनिया डोड़ी का रंग हरे से चमकीला भूरा/पीला होने पर तथा दानों में 18 प्रतिशत नमी रहने पर कटाई करना चाहिए। कटाई में देरी करने से दानों का रंग खराब हो जाता है। जिससे बाजार में उचित कीमत नहीं मिल पाती है।
सिंचित फसल की वैज्ञानिक तकनीकि से खेती करने पर 15-18 क्विंटल बीज एवं 100-125 क्विंटल पत्तियों की उपज तथा असिंचित फसल की 5-7 क्विंटल/हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।
धनिया प्रसंस्करण द्वारा 97 प्रतिशत धनिया बीजों की पिसाई कर पावडर बनाया जाता है। जो मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है। शेष तीन प्रतिशत धनिया बीज, धनिया दाल एवं वाष्पशील तेल बनाने में उपयोग होता है। धनिया की ग्रेडिंग करने में 15-16 रुपए प्रति किलो का खर्च आता है। इसका बाजार भाव देखें तो धनिये का मई 2021 वायदा भाव 7380 रुपए प्रति क्विंटल है। बता दें कि इन भावों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।
अनुमानित कुल लागत- 20,000 रुपए /हेक्टेयर
धनिये की उपज- 15.00 क्विंटल/ हेक्टेयर
कुल आमदनी- 97,500 रुपए
शुद्ध आय- 77,500 रुपए
प्रचलित बाजार मूल्य- 65.00 रुपए/ किलोग्राम
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