Published - 08 Jun 2022
सरकार की ओर से किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं किसान भी खेती के साथ ही अन्य बिजनेस करके भी अच्छी कमाई कर सकते हैं। मुर्गी पालन की तरह ही किसान टर्की पालन करके अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं। टर्की पालन मुख्य रूप से मांस, अंडा के लिए किया जाता है। इसके अवशिष्ट से खाद भी तैयार की जाती है जो खेती के लिए उपजाऊ होती है। इस तरह से देखा जाए तो किसान खेती के साथ टर्की पालन करके अच्छा लाभ अर्जित कर सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको टर्की पालन की जानकारी दे रहे हैं।
टर्की या पेरू मेलेआग्रिस वंश का एक बड़े आकार का पक्षी है, जो मूल रूप से उत्तर व दक्षिण अमेरिका में पाया जाता था, जहां यह सब से बड़े पक्षियों में से एक है। इस वंश में दो जातियाँ पाई जाती हैं। पहली नेत्रांकित टर्की और दूसरी उत्तर अमेरिका की जंगली टर्की । दोनों जातियों के नर पक्षियों की चोंच के ऊपर एक उभाड़ टंगा हुआ होता है। मादाओं की तुलना में नर बड़े और अधिक रंगदार होते हैं।
हमारे देश में टर्की पालन तेजी से बढ़ रहा है। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के अंतर्गत पशु उत्पादन विभाग द्वारा टर्की की केरी विराट नस्ल का पालन किया जा रहा है। इसके मांस में करीब 25 अंडे में 13 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। इसकी खाद में नाइट्रोजन 5 से 6 प्रतिशत एवं पोटाश 2 से 3 प्रतिशत तक पाई जाती है। टर्की के मांस में कम चर्बी, स्वाद एवं सुगंध के कारण अधिक लोकप्रिय है। टर्की पालन खासकर गांवों में और ग्रामीण लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करने में सक्षम है। यह व्यवसाय छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए भी उपयुक्त है।
टर्की को फ्री रेंज प्रणाली यानि की खुले स्थान खेत/घर पर आसानी से पाला जा सकता है। इसको खाने में दाना या घर/खेत में खुले स्थान पर छोटे कीड़े, घोंघे, दीमक, रसोई अवशिष्ट, केंचुए एवं घास आदि खिलाई जा सकती है जिससे इसके प्रबंधन में कम व्यय होने के कारण लघु एवं सीमांत किसानों द्वारा पाला जा सकता है।
टर्की पक्षी की शरीर वृद्धि तेजी से होती है जिसकी वजह से 7 से 8 माह में इसका वजन 10 से 12 किलो हो जाता है। इसके अंडे का वजन भी मुर्गी के अंडे से अधिक होता है। टर्की से प्रति वर्ष 100 से 120 अंडे प्राप्त किए जा सकते है। टर्की मांस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण मधुमेह रोगी के लिए उपयोगी है। इसके मांस अमीनो अम्ल, नियासिन, विटामिन-बी जैसे विटामिन से परिपूर्ण होता है। टर्की पालन के लिए राजस्थान की जलवायु अनुकूल है। बता दें कि टर्की में अधिक तापमान सहने की क्षमता होती है। इसलिए भारत की जलवायु टर्की पालन के लिए अच्छी बताई जाती है।
भारतीय जलवायु के हिसाब से टर्की पालन के लिए जो किस्में उपयुक्त है, उनमें ब्रोज, हवाइट हाजौड़, बारगोन रेड, नैरेगनसेट, ब्लैक एंड स्बेट, स्माल हवाइट, बेल्टसबिले आदि अच्छी प्रजातियां हैं। इसमें प्रमुख किस्म कगेस्टेट हवाइट भारत में पाली जाने वाली प्रमुख टर्की की किस्म है। इस प्रजाति ब्रेस्टेड ब्रोज तथा सफेद पंख वाली हवाइट हॉलैंड का संकर किस्म है। यह भारतीय जलवायु में सर्वाधिक उपयुक्त है। यह 7-8 माह में 10-12 कि.ग्रा. शरीर भार की हो जाती है। इस प्रजाति के नर 28 से 30 सप्ताह और मादा 18 -20 सप्ताह में बेचने या विपणन के योग्य हो जाते हैं।
फ्री रेंज के अंतर्गत बड़े स्तर पर एक एकड़ बाड़ा लगी हुई भूमि में 250-300 व्यस्क टर्की पाली जा सकती हैं रात्रि विश्राम के लिए 3-4 वर्ग फीट प्रति पक्षी आश्रय प्रदान किया जाता हैं अनाच्छादित भूमि में छायादार वृक्ष लगाकर पक्षी को ठंडा वातावरण उपलब्ध कराया जाता है। लघु स्तर पर पालन के लिए अनाच्छादित 15 वर्ग फीट प्रति पक्षी तथा अनाच्छादित भूमि 3 वर्ग फीट प्रति पक्षी प्रदान कर पालन किया जा सकता है। वहीं सघन प्रणाली में टर्की पालन गहरे कूडे प्रणाली के तहत किया जाता है। जिसमें बिछाली की मोटाई 9-12 इंच रखी जाती है। इस प्रणाली में उच्च स्तरीय प्रबंधन तथा बीमारी नियंत्रण के कारण उत्पादकता अधिक है।
मादा टर्की एक साल में करीब 43 से लेकर 63 चूजे तक देती है। ये 24 सप्ताह बाद अंडा देने के लायक हो जाती है। 14-15 सप्ताह में इसके नर का वजन 7.5 किलोग्राम हो जाता है और ये बेचने योग्य हो जाते हैं। वहीं 17-18 सप्ताह में मादा का वजन 5.5 किलोग्राम हो जाता है और वे बेचने योग्य हो जाते हैं।
टर्की पक्षी के आहार की कोई खास व्यवस्था की जरूरत नहीं पड़ती है। यदि फ्री रेंज में इसका पालन किया जा रहा है तो ये चराई में केचुओं, छोटे कीटे, घोंघा, दीमकों तथा रसोई का बचा हुआ खाना खाती है। इसके आहार में 50 प्रतिशत तक की बचत होती है। इसके अलावा इसके आहार में हरा चारा शामिल किया जाता हैं। शेष बचे आहार की पूर्ती के लिए पूरक आहार प्रदान किया जाता है। चूजों को 4 सप्ताह के बाद आहार में दूब शामिल किया जा सकता है जो चेचक होने के साथ रोग प्रतिरक्षा उत्पन्न करने में सहायक है।
वहीं सघन पालन में टर्की पालन करते समय टर्की का शुरुआती 2 माह काफी महत्वपूर्ण होते हैं। इस समय इनका ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि इस समय इन्हें भूख बहुत लगती है और यही कारण हैं कि ये भूख से मर जाते हैं। इसलिए इसके खाने-पानी पर विशेष ध्यान दिया जाता है। शुरुआती 15 दिनों तक 10 चूजों पर 1 लीटर जल में 100 मी.ली. दूध एक अंडा उबाल करके उसका चूर्ण बनाकर छोटे प्याज के टुकड़ों में मिलाकर खिलाया जाता है। यह चूजों को आवश्यक उर्जा एवं प्रोटीन प्रदान करता है। वहीं पानी के लिए जल पात्र हरे रंग कांच या पत्थर का रखा जाता है।
भारतीय बाजार में टर्की आहार उपलब्ध नहीं होने के कारण पक्षी पालन निम्न संघटक को मिलाकर स्वयं टर्की के लिए आहार निर्माण कर सकते हैं।
संघटक | स्टार्टर | ग्रोवर |
---|---|---|
मक्का | 50 | 50 |
मूंगफली की खली | 25 | 23 |
नमक रहित मछली चूर्ण | 10 | 15 |
बाजरा/रागी/गेहूं (बराबर मात्रा में) | 10 | - |
चावल चोकर | 3 | 8 |
नमक | 1 | 3 |
विटामिन एवं खनिज लवण मिश्रण | 1 | 1 |
इसके अतिरिक्त कुक्कुट आहार में अन्य अवयव मिश्रित कर टर्की आहार का निर्माण कर सकते हैं।
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