प्रकाशित - 03 Jan 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
अजवाइन एक ऐसी व्यापारिक फसल है, जिसकी खेती करके किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। अजवाइन का प्रयोग हमारी रसोई में खाने की वस्तुओं में मसाले के रूप में होता है। वहीं इसका औषधीय महत्व भी है। इससे इसकी बाजार मांग हमेशा बनी रहती है। जैसा कि मसाला फसलों में अजवाइन का महत्वपूर्ण स्थान है। सब्जियों में मसाले के रूप में इसका प्रयोग होने के साथ-साथ अजवाइन में कई प्रकार के औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। अजवाइन का प्रयोग कई रोगों में घरेलू इलाज के तौर पर किया जाता है। पेट की समस्याएं जैसे कि पेचिस, हैजा, कफ, ऐंठन और बदहजमी आदि रोगों में इसका प्रयोग काफी लाभदायक होता है। इसका उपयोग गले में खराबी, आवाज फटने, कान दर्द, चर्म रोग, दमा आदि रोगों की औषधि बनाने के लिए भी किया जाता है। इसके अलावा भी इसमें बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसीलिए इसकी खेती करके किसान भाई अच्छा लाभ कमा सकते हैं। किसान भाइयों आज ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में हम आपको अजवाइन की उन्नत तरीके से खेती की जानकारी दे रहे हैं।
अजवाइन का पौधा झाड़ीनुमा आकार का होता है, यह धनिया की प्रजाति का पौधा है। अजवाइन के दानों में कई प्रकार के खनिज तत्वों का मिश्रण पाया जाता है, जो कि हमारे शरीर के लिए लाभकारी है। इससे निकलने वाला तेल का इस्तेमाल कई प्रकार की औषधियों को बनाने के लिए किया जाता है। अजवाइन तीन प्रकार की होती है। इसमें अजवाइन, जंगली अजवाइन और खुरासानी अजवाइन होती है। अजवाइन का उपयोग कई प्रकार के रोगों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। इसका सेवन मसाला, चूर्ण, काढ़ा और रस के रूप में भी किया जाता हैं। इसके इस्तेमाल से सर्दी-जुकाम, अपच, पेट दर्द, गठिया, मसूड़ों की सूजन दूर करने, मुंहासे निकलने पर इसका इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में अजवाइन की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, बिहार, आंध्रप्रदेश तथा मध्यप्रदेश शामिल है। राजस्थान में अजवाइन की खेती प्रमुख रूप से चितौडगढ़ एवं झालावाड़, उदयपुर, कोटा, बूंदी, राजसमन्द, भीलवाड़ा, टोंक, बांसवाड़ा आदि जिलों में की जाती है। विश्व में इसकी खेती उत्तरी अमेरिका, मिस्र, ईरान और अफगानिस्तान में प्रमुखता से होती है।
अजवाइन की खेती में यदि कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जाए तो इससे काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
अजवाइन की खेती रबी सीजन यानी कि सर्दियों के मौसम में की जाती है। अधिक गर्मी इसके पौधे के लिए अच्छी नहीं होती है। अजवाइन की खेती में सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है। इसलिए इसकी खेती रबी सीजन में की जाती है। भारत में इसकी बुवाई करने का सही समय अगस्त से सितंबर के बीच का है।
अजवाइन की खेती करने के लिए अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है। इसके अलावा यदि आप अधिक पैदावार प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको बलुई दोमट मिट्टी में इसकी खेती को करना चाहिए। अधिक नमी तथा जल भराव वाले भूमि पर इसकी खेती को नहीं किया जा सकता है। अजवाइन की खेती करने के लिए खेत का पीएच मान 6.5 से 8 के बीच का होना चाहिए।
अजवाइन का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला होता है। इसलिए इसके पौधों को अच्छे तरीके से विकास करने के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। लेकिन फूलों के बीजों को पकने के दौरान इसके पौधों को गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है तथा इसके लिए खुली धूप की आवश्यकता होती है।
अजवाइन के पौधों को शुरुआत में विकसित होने के लिए 20 से 25 डिग्री तक के तापमान की आवश्यकता होती है। सर्दियों के मौसम में यह पौधे न्यूनतम 10 डिग्री तापमान पर अच्छे से विकसित होते हैं। पौधों में लगे अजवाइन के दानों को पकने के लिए 30 डिग्री तक के तापमान की आवश्यकता होती है।
आज के समय में अजवाइन की पैदावार को बढ़ाने के लिए बाजार में कई तरह की विशेष किस्में मौजूद है। इन किस्मों को अलग-अलग जलवायु के अनुसार से अलग-अलग राज्यों में उगाया जाता है। अजवाइन की खेती के लिए इसकी प्रमुख किस्में इस प्रकार से हैं-
लाभ सलेक्शन 1– यह अजवाइन की जल्दी तैयार होने वाली किस्म है। इसकी खेती ज्यादातर राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में की जाती है। यह किस्म रोपाई के लगभग 130 से 140 दिन बाद पककर कटने के लिए तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन 8 से 9 क्विंटल प्रति एकड़ तक होता है।
लाभ सलेक्शन 2– यह किस्म सिंचित और असिंचित दोनों ही खेतों में कम समय में अधिक उत्पादन देने में सक्षम है। इसकी फसल अवधि 135 दिनों की होती है। इस किस्म की एक एकड़ खेती से किसान औसतन 10 क्विंटल उत्पादन आसानी से कर सकते हैं।
ऐ ऐ 1 – अजवाइन की इस किस्म को नेशनल रिसर्च फॉर सीड स्पाइस, तबीजी, अजमेर द्वारा देरी से पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है। इस किस्म का औसतन उत्पादन 15 क्विंटल तक का है। इस किस्म की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है। इस किस्म की रोपाई करने के लगभग 170 दिन के आसपास पककर कटने के लिए तैयार हो जाती है।
गुजरात अजवाइन 1– इस किस्म की रोपाई के लगभग 170 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म का औसतन उत्पादन 8 से 12 क्विंटल प्रति एकड़ तक का होता है।
आर ए 19-80– अजवाइन की इस किस्म की फसल अवधि लगभग 160 दिनों की होती है। इसका प्रति एकड़ औसतन उत्पादन 10 क्विंटल तक का होता है।
अजवाइन की खेती करने के लिए भुरभुरी और साफ मिट्टी की आवश्यकता होती है। खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को हटाने के लिए कल्टीवेटर की मदद से खेत की अच्छी तरह से 2 से 3 बार गहरी जुताई कर दें। इसके बाद खेत को कुछ दिनों के लिए ऐसे ही छोड़ दें, इससे मिट्टी में मौजूद सभी हानिकारक कीट सूरज की तेज़ धूप से खत्म हो जाएंगे।
जुताई करने के बाद खेत में पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला दिया जाता है। खाद को मिट्टी में अच्छे से मिलाने के लिए कल्टीवेटर की मदद से खेत की दो से तीन बार तिरछी जुताई कर दें तथा बाद में खेत में पानी लगाकर खेत का पलेव कर दें। पलेव करने के कुछ दिन बाद खेत की ऊपरी मिट्टी सूखी दिखाई देने लगे तो रोटावेटर की मदद से जुताई करके खेत की मिट्टी भूरभूरी कर लें। इसके बाद खेत में पाटा लगा कर खेत की भूमि को समतल कर दें।
अजवाइन की फसल की रोपाई बीज और पौधे लगाकर, दोनों ही तरीके से कर सकते हैं। पौधों की खेत में रोपाई करने के लिए पौधों को नर्सरी में एक महीने पहले ही तैयार कर लिया जाता है। यदि आप खेत में बीजों की बुवाई करना चाहते हैं तो बुवाई से पहले बीजों को बाविस्टीन की सही मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए। इसके बाद इसके बीजों की खेत में बुवाई कर देना चाहिए।
अजवाइन के पौधे की रोपाई के तुरंत बाद इसकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए। सिंचाई करते समय पानी के बहाव को धीमा ही रखना चाहिए जिससे इसके बीजों के बहने का खतरा न हो। अजवाइन के पौधों में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। जब पौधों का अंकुरण होने लगा हो उस दौरान जरूरत पड़ने पर ही 10 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए।
अजवाइन की फसल में ज्यादा उवर्रक की आवश्यकता नहीं होती है। खाद को खेत की तैयारी करते वक़्त दिया जाता है। इसके लिए खेत में 12 से 15 टन पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत में डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला दिया जाता है और रासायनिक खाद के रूप में तक़रीबन 80 किलो एन.पी.के. खाद की मात्रा को भी खेत में आखिरी जुताई के समय खेत में डाल देना चाहिए। इसके अलावा पौधों के विकास के दौरान व सिंचाई के बाद 25 किलो यूरिया खाद को खेत में डाल देना चाहिए।
अजवाइन के पौधों में खरपतवार पर नियंत्रण को प्राकृतिक तरीके से ही करना चाहिए। प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए अजवाइन के पौधों की 25 से 30 दिन में पहली निराई-गुड़ाई कर खरपतवार को निकाल देना चाहिए। इसके अलावा समय-समय पर जब भी खेत में खरपतवार दिखाई दे तो उसकी निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए।
अजवाइन के पौधे की रोपाई के लगभग 140 से 160 दिन बाद फसल काटने के लिए तैयार हो जाती है। अजवाइन के पौधों में लगने वाले गुच्छे पकने के बाद भूरे रंग के दिखाई देने लगते हैं। उस समय इसके पौधों की कटाई कर उन्हें खेत में इकट्ठा करके अच्छे से सूखा लिया जाता है। जब इसके दाने अच्छे से सूख जाये तब इन गुच्छों को लकड़ी की डंडी से पीटकर दानों को अलग कर लिया जाता है।
अजवाइन की किस्मों के अनुसार प्रति एकड़ औसतन 10 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त होता है। अजवाइन का बाजार में भाव 12 हजार रुपए से 20 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक का होता है। इससे किसान भाई एक एकड़ के खेत में अजवाइन की फसल की खेती करके सवा दो लाख रुपए तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं।
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