Published - 05 Jan 2022
देश में मसालों की मांग और इसके निर्यात में हो रही बढ़ोतरी से किसानों का रूझान मसालों की खेती की ओर हो रहा है। मसाला फसलों की खेती कर कई किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। बुंदेलखंड के किसान मसाला फसलों की खेती कर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं। वहीं राजस्थान में भी किसान मसाला फसलों की खेती कर रहे हैं। इसी प्रकार देश के अन्य राज्यों में भी मसाला फसलों की खेती के अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। इसी के साथ इसकी खेती को सरकार की ओर से भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। मसाला फसलों की खेती के लिए सरकार की ओर से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है। इसका लाभ लेकर किसान मसाला फसलों की खेती कर सकते हैं। आइए आज हम आपको ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से प्रमुख 8 मसाला फसलों के बारे में बता रहे हैं जिनसे अच्छी कमाई की जा सकती है।
जीरा एक ऐसी मसाला फसल है जिसका उपयोग दाल, सब्जी तैयार करने के अलावा दही या छाछ में प्रयोग किया जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी जीरे के सेवन के कई फायदे होते हैं। अब बात करें इसकी खेती की तो इसकी खेती से किसानों की अच्छी कमाई हो सकती है। इसकी बाजार मांग पूरे बारह महीने बनी रहती है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश में इसके उत्पादन में 14.8 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। इसकी उन्नत किस्मों में आर जेड-19, आर जेड- 209, जी सी- 4, आर जेड- 223 बेहतर उत्पादन देने वाली किस्में हैं।
लहसुन की खेती से किसान अच्छा फायदा ले सकते हैं और अपनी आय में इजाफा कर सकते हैं। लहसुन का प्रयोग सब्जी बनाने, अचार बनने सहित कई प्रकार से किया जाता है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाओं में भी किया जाता है। इसे इम्युनिटी बढ़ाने वाला माना जाता है। इसकी बाजार मांग हर समय बनी रहती है। बुंदेलखंड के किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश में लुहसुन का उत्पादन 14.7 फीसदी बढ़ा है। इसकी उन्नत किस्मों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसकी उन्नत किस्में एग्रीफाउंड पार्वती (जी- 313), टी- 56-4, गोदावरी (सेलेक्सन- 2), एग्रीफाउण्ड व्हाइट (जी- 41), यमुना सफेद (जी- 1), भीमा पर्पल, भीमा ओंकार हैं।
देश में वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश में अदरक का उत्पादन 7.5 फीसदी बढ़ा है। किसान कम लागत पर अदरक की खेती करके भी अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं। इसकी खेती से किसान दो तरीके से फायदा ले सकते हैं। एक गीली अदरक को बेचकर तो दूसरा अदरक को सूखा कर सोंठ के रूप में तैयार करके इसे बेचकर लाभ कमा सकते हैं। अदरक की मुख्य रूप से तीन किस्में होती है एक सुप्रभात, दूसरा सुरूचि और तीसरा सुरभी जो कि काफी अच्छी मानी जाती है।
मसाला फसलों में सौंफ का अपना विशिष्ट स्थान है। इसका सब्जियों में प्रयोग होने के साथ ही आचार बनाने में भी किया जाता है। यदि इसके औषधीय महत्व की बात करें तो इसे कई रोगों में दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में सौंफ को त्रिदोष नाशक बनाया गया है। यदि व्यवसायिक स्तर पर इसकी खेती की जाए तो काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत में इसके उत्पादन में 6.8 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है। इसकी उन्नत किस्मों में गुजरात सौंफ 1, गुजरात सौंफ-2, गुजरात सौंफ 11, आर एफ 125, पी एफ 35, आर एफ 105, हिसार स्वरूप, एन आर सी एस एस ए एफ 1, आर एफ 101, आर एफ 143 हैं।
धनिया अम्बेली फेरी या गाजर कुल का एक वर्षीय मसाला फसल है। इसका हरा धनिया सिलेन्ट्रो या चाइनीज पर्सले कहलाता है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते है। धनिया बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण होने के कारण कुलिनरी के रूप में, कार्मिनेटीव और डायरेटिक के रूप में उपयोग में आते है। भारत में अनेक राज्यों में की जाती है। इनमें मध्यप्रदेश में धनिया की खेती 1,16,607 हेक्टेयर में होती है जिससे लगभग 1,84,702 टन उत्पादन प्राप्त होता है। भारत धनिया का प्रमुख निर्यातक देश है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में इसके उत्पादन में 6.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। धनिये की अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में हिसार सुगंध, आर सी आर 41, कुंभराज, आर सी आर 435, आर सी आर 436, आर सी आर 446, जी सी 2 (गुजरात धनिया 2), आरसीआर 684, पंत हरितमा, सिम्पो एस 33, जे डी-1, एसी आर 1, सी एस 6, जे डी-1, आर सी आर 480, आर सी आर 728 शामिल हैं।
मेथी एक नकदी फसल के रूप में मानी जाती है। यदि किसान इसकी व्यवसायिक रूप से खेती करें तो अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। मैथी को सब्जी, अचार व सर्दियों में लड्डू आदि बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियां साग बनाने के काम आतीं हैं तथा इसके दाने मसाले के रूप में प्रयुक्त होते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह बहुत गुणकारी है। इसका प्रयोग डायबिटीज में चूर्ण बनाकर सेवन किया जाता है। हरी हो या दानेदार मेथी दोनों ही स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छी मानी जाती है। इसकी खेती के लिए उन्नत किस्में में अजमेर फेन्यूग्रीक-1, अजमेर फेन्यूग्रीक-2, अजमेर फेन्यूग्रीक-3, आर.एम.टी.-143, आर.एम.टी.-305, राजन्द्रेर क्रांति, कसूरी मैंथी आदि हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 में इसके उत्पादन में 5.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान देश में लाल मिर्च का उत्पादन 4.2 फीसदी बढ़ गया है। इसके पीछे कारण ये हैं कि किसान मसाले के लिए मिर्च का उत्पादन कर रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। मिर्च की उन्नत किस्मों में मिर्च- एन.पी, 46 ए, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार हैं। शिमला मिर्च की उन्नत किस्मों में पूसा दीप्ती, अर्का मोहनी अर्का गौरव, अर्का बसंत हैं। आचार मिर्च के लिए उन्नत किस्में सिंधुर उन्नत किस्म मानी जाती है। इसके अलावा कैप्सेसीन उत्पादन हेतु- अपर्ना, पचास यलो किस्म अच्छी मानी गई है।
हल्दी बहुपयोगी फसल है। इसका यदि व्यावसायिक रूप से इसका उत्पादन किया जाए तो हल्दी की फसल से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। भारत में इसकी खेती आंध्रप्रदेश, ओडिशा, तमिलानाडु व महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मेघालय, असम में की जाती है। अब तो उत्तरप्रदेश के बाराबंकी में भी इसकी खेती होने लगी है। इनमें से हल्दी की सबसे ज्यादा खेती आंध्र प्रदेश में होती है। आंध्र प्रदेश का देश के हल्दी उत्पादन में करीब 40 फीसदी का योगदान करता है। यहां कुल क्षेत्रफल का 38 से 58.5 प्रतिशत उत्पादन होता है। हल्दी की पूना, सोनिया, गौतम, रशिम, सुरोमा, रोमा, कृष्णा, गुन्टूर, मेघा, सुकर्ण, सुगंधन उन्नत किस्में है।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत कोल्ड स्टोरेज पर अधिकतम 4 करोड़ रुपए तक का अनुदान दिया जा सकता है। मसाले से संबंधित प्रसंस्करण इकाई लगाने के लिए लागत का 40 प्रतिशत और अधिकतम 10 लाख रुपए अनुदान के रूप में दिया जाता है। छंटाई करने ग्रेडिंग, शॉर्टिंग के लिए सरकार 35 प्रतिशत अनुदान देती है, इसकी इकाई लगाने के लिए करीब 50 लाख रुपए तक लागत आती है। पैकिंग इकाई लगाने के लिए करीब 15 लाख रुपए का खर्चा आता है जिसमें 40 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। मसाला फसलों की खेती के लिए लागत का 40 प्रतिशत या अधिकतम 5500 रुपए प्रति हैक्टेयर अनुदान दिया जाता है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत मसाला की खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग खेती की लागत का 50 प्रतिशत तक अनुदान जाता है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत फव्वारा, स्प्रिंक्लर, बूंद- बूंद सिंचाई के साथ ही अन्य पर भी अनुदान है। जैविक खेती में मसाला उत्पादन करने वाले किसानों को अतिरिक्त अनुदान दिया जाता है। मसाले की जैविक खेती करने वाले किसानों को लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 10 हजार रुपए प्रति हैक्टेयर के रूप में अनुदान दिया जाता है। कीट रोग प्रबंधन के लिए लागत का 30 प्रतिशत 1200 रुपए प्रति हैक्टेयर अनुदान है।
देश में मसालों का उत्पादन 7.9 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर के साथ 2014-15 में 67.64 लाख टन से बढक़र 2020-21 में 106.79 लाख टन हो गया। वहीं, इस दौरान मसाला क्षेत्र 32.24 लाख हेक्टेयर से बढक़र 45.28 लाख हेक्टेयर हो गया है। भारत में पिछले कुछ वर्षों से मसाला उत्पादन में काफी वृद्धि देखने को मिली है। इससे निर्यात में भी बढ़ोतरी देखा जा रहा है। वर्ष 2014-15 में भारत 8.94 लाख टन का मसाला निर्यात करता था। जिसका मूल्य 14,900 करोड़ रुपए था। वर्ष 2020-21 में मसाला का उत्पादन बढने से निर्यात 16 लाख टन तक पहुंच गया है। भारत वर्ष 2020-21 में 29,535 करोड़ रुपए का मसाला निर्यात किया है। इस दौरान मसाले के निर्यात में 9.8 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर और कीमत के लिहाज से 10.5 फीसदी वृद्धि दर दर्ज की गई।
देश में इन मसालों के उत्पादन में शानदार बढ़ोतरी कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की विभिन्न विकास कार्यक्रमों के कारण हुई है। इनमें एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) आदि हैं।
अगर आप अपनी पुराने ट्रैक्टर व कृषि उपकरण बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
Social Share ✖