उड़द की उन्नत खेती से कमाई - कमाएं लाखों रुपए

Share Product Published - 12 Mar 2022 by Tractor Junction

उड़द की उन्नत खेती से कमाई - कमाएं लाखों रुपए

जायद और खरीफ के सीजन में उड़द की खेती

ट्रैक्टर जंक्शन पर किसान भाइयों का एक बार फिर स्वागत है। आज हम बात करते हैं उड़द की उन्नत खेती की। दलहनी फसलों में उड़द का प्रमुख स्थान है और विश्व स्तर पर उड़द के उत्पादन में भारत अग्रणी देश है। भारत के मैदानी भागों में इसकी खेती मुख्यत: खरीफ सीजन में होती है। परंतु विगत दो दशकों से उड़द की खेती ग्रीष्म ऋतु में भी लोकप्रिय हो रही है। देश में उड़द की खेती महाराष्ट्र, आंधप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू तथा बिहार में मुख्य रूप से की जाती है। उड़द की दाल में 23 से 27 प्रतिशत तक प्रोटीन पाया जाता है। उड़द मनुष्यों के लिए स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ-साथ भूमि को भी पोषक तत्व प्रदान करता है। इसकी फसल को हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। 

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उड़द की खेती के लिए जलवायु 

उड़द की खेती के लिए नम और गर्म मौसम आवश्यक है। उड़द की फसल की अधिकतर प्रजातियां प्रकाशकाल के लिए संवेदी होती है। वृद्धि के समय 25-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है। हालांकि यह 43 डिग्री सेंटीग्रेट तक का तापमान आसानी से सहन कर सकती है। 700-900 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में उड़द को आसानी से उगाया जाता है। अधिक जल भराव वाले स्थानों पर इसकी खेती उचित नहीं है। फूल अवस्था पर अधिक वर्षा हानिकारक होती है। पकने की अवस्था पर वर्षा होने पर दाना खराब हो जाता है।

उड़द की खेती के लिए भूमि का चयन

उड़द की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में होती है। हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि जिसमें पानी का निकास अच्छा हो उड़द के लिए अधिक उपयुक्त होती है। पी.एच.मान 7-8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिए उपजाऊ होती है। अम्लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्त नहीं है। वर्षा आरंभ होने के बाद दो-तीन बार हल चलाकर खेत को समतल करना चाहिए। वर्षा आरंभ होने से पहले बोनी करने से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है। साथ ही खेत को समलत करके उसमें जल निकास की उचित व्यवस्था कर देना भी बेहतर है।

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उड़द की फसल में खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

दलहनी फसल होने के कारण उड़द को अधिक नत्रजन की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि उड़द की जड़ में उपस्थित राजोबियम जीवाणु मंडल की स्वतंत्र नत्रजन को ग्रहण करते हैं और पौधों को प्रदान करते हैं। पौधे की प्रारंभिक अवस्था में जब तक जड़ों में नत्रजन इकट्ठा करने वाले जीवाणु क्रियाशील हो तब तक के लिए 15 से 20 किग्रा नत्रजन 40-50 किग्रा फास्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के समय खेतों में मिला देते हैं। संपूर्ण खाद की मात्रा बुवाई के समय कतारों में बीच के ठीक नीचे डालना चाहिए। दलहनी फसलों में गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट, जिप्सम आदि का उपयोग करना चाहिए। विशेषत :  गंधक की कमी वाले क्षेत्र में 8 किलोग्राम गंधक प्रति एकड़ गंधक युक्त उर्वरकों के माध्यम से देना चाहिए।

उड़द की खेती में बीज की मात्रा एवं बीजोपचार

उड़द अकेले बोने पर 15 से 20 किग्रा बीज प्रति हैक्टेयर तथा मिश्रिम फसल के रूप में बोने पर 6-8 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से लेना चाहिए। बुवाई से पहले बीज को 3 ग्राम थायरम या 2.5 ग्राम डायथेन एम-45 प्रति किलो बीज के मान से उपचारित करना चाहिए। जैविक बीजोपचार के लिए ट्राइकोडर्मा फफूंद नाशक 5 से 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपयोग किया जाता है।

उड़द की बुवाई का सही तरीका व समय

मानसून के आगमन पर या जून के अंतिम सप्ताह में पर्याप्त वर्षा होने पर बुवाई करें। बुवाई नाली या तिफन से करें, कतारों की दूरी 30 सेमी तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 सेमी रखें तथा बी 4-6 सेमी की गहराई पर बोये। ग्रीष्मकाल में इसकी बुवाई फरवरी के अंत तक या अप्रैल के प्रथम सप्ताह से पहले करनी चाहिए।

उड़द की खेती में सिंचाई 

उड़द की खेती में सामान्यत: सिंचाई की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती है। हालंकि वर्षा के अभाव में फलियों के बनते समय सिंचाई करनी चाहिए। इसकी फसल को 3 से 4  बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है। पहली सिंचाई पलेवा के रूप में और बाकि की सिंचाई 20 दिन के अंतराल पर होनी चाहिए।

निराई-गुड़ाई

खरपतवार फसलों को अनुमान से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। अत: अच्छे उत्पादन के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई कुल्पा व डोरा आदि चलाते हुए अन्य आधुनिक नींदानाशक का समुचित उपयोग करना चाहिए। नींदानाशक वासालिन 800 मिली से 1000 मिली प्रति एकड़ 250 लीटर पानी में घोल बनाकर जमीन बखरने से पूर्व नमी युक्त खेत में छिडक़ने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।

उड़द बीज का राइजोबियम उपचार

उड़द के दलहनी फसल होने के कारण अच्छे जमाव पैदावार व जड़ों में जीवाणुधारी गांठों की सही बढ़ोत्तरी के लिए राइजोबियम कल्चर से बीजों को उपचारित करना जरूरी होता है। एक पैकेट (200 ग्राम) कल्चर 10 किलोग्राम बीज के लिए सही रहता है। उपचारित करने से पहले आधा लीटर पानी का 50 ग्राम गुड या चीनी के साथ घोल बना लें। उसके बाद कल्चर को मिलाकर घोल तैयार कर लें। अब इस घोल को बीजों में अच्छी तरह से मिलाकर सुखा दें। ऐसा बुवाई से 7-8 घंटे करना चाहिए।

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उड़द में खरपतवार नियंत्रण

वर्षाकालीन उड़द की फसल में खरपतवार का प्रकोप अधिक होता है जिससे उपज में 40-50 प्रतिशत हानि हो सकती है। रसायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए वासालिन 1 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी के घोल का बुवाई से पूर्व खेत में छिडक़ाव करें। फसल की बुवाई के बाद परंतु बीजों के अंकुरण से पूर्व पेन्डिमिथालीन 1.25 किग्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करके खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है। अगर खरपतवार फसल में उग जाते हैं फसल बुवाई 15-20 दिन की अवस्था पर पहली निराई तथा गुड़ाई खुरपी की सहायता से कर देनी चाहिए तथा पुन: खरपतरवार उग जाने पर 15 दिन बाद निराई करनी चाहिए।

उड़द के फसल चक्र और मिश्रित खेती

वर्षा ऋतु में उड़द की फसल प्राय: मिश्रित रूप से मक्का, ज्वार, बाजरा, कपास व अरहर आदि के साथ उगती हैं। उड़द के साथ अपनाए जाने वाले साधन फसल चक्र इस प्रकार हैं:

सिंचित क्षेत्र :  उड़द-सरसों, उड़द-गेहूं
असिंचित क्षेत्र : उड़द-पड़त-मक्का, उड़द-पड़त-ज्वार

उड़द की फसल में कीट की रोकथाम

फली छेदक कीट : इस कीट की सूडियां फलियों में छेदकर दानों को खाती है। जिससे उपज को भारी नुकसान होता है।

देखभाल : मोनोक्रोटोफास का एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें। 

सफेद मक्खी :  यह उड़द फसल का प्रमुख कीट है। जो पीला मोजैक वायरस के वाहक के रूप में कार्य करती है।

देखभाल : ट्रायसजोफॉस 40 ई.सी. का एक लीटर का 500 लीटर पानी में छिडक़ाव करें। इमिडाक्लोप्रिड की 100 मिलीलीटर या 51 इमेथोएट की 25 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडक़ाव करें।

अर्ध कुंडलक (सेमी लुपर) : यह मुख्यत: कोमल पत्तियों को खाकर पत्तियों को छलनी कर देता है। 

देखभाल : प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. 1 लीटर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें। 

एफिड : यह मुलांकूर का रस चूसता है। जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है। 

देखभाल : क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. 500 मिली लीटर 1000 लीटर पानी के घोल में मिलाकर छिडक़ाव करना चाहिए।

उड़द की फसल में रोग और उनकी रोकथाम

पीला मोजेक विषाणु रोग : यह उड़द का सामान्य रोग है और वायरस द्वारा फैलता है। इसका प्रभाव 4-5 सप्ताह बाद ही दिखाई देने लगता है। इस रोग में सबसे पहले पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे गोलाकार रूप में दिखाई देने लगते हैं। कुछ ही दिनों में पूरी पत्तियां पीली हो जाती है। अंत में ये पत्तियां सफेद सी होकर सूख जाती है।

उपाय : सफेद मक्खी की रोकथाम से रोग पर नियंत्रण संभव है। उड़द का पीला मोजैक रोग प्रतिरोधी किस्म पंत यू-19, पंत यू-30, यू.जी.218, टी.पी.यू.-4, पंत उड़द-30, बरखा, के.यू.-96-3 की बुवाई करनी चाहिए।

पत्ती मोडऩ रोग : नई पत्तियों पर हरिमाहीनता के रूप में पत्ती की मध्य शिराओं पर दिखाई देते हैं।  इस रोग में पत्तियां मध्य शिराओं के ऊपर की ओर मुड़ जाती है तथा नीचे की पत्तियां अंदर की ओर मुड़ जाती है तथा पत्तियों की वृद्धि रूक जाती है और पौधे मर जाते हैं।

उपाय : यह विषाणु जनित रोग है। जिसका संचरण थ्रीप्स द्वारा होता हैं। थ्रीप्स के लिए ऐसीफेट 75 प्रतिशत एस.पी. या 2 मिली डाईमैथोएट प्रति लीटर के हिसाब से छिडक़ाव करना चाहिए और फसल की बुवाई समय पर करनी चाहिए।

पत्ती धब्बा रोग : यह रोग फफूंद द्वारा फैलता है। इसके लक्षण पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। 

उपाय :  कार्बेन्डाजिम 1 किग्रा 1000 लीटर पानी के घोल में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए।

उड़द की कटाई 

उड़द लगभग 85-90 दिनों में पककर तैयार होती है। उड़द की फसल की कटाई के लिए हंसिया का उपयोग किया जाना चाहिए। कटाई का काम 70 से 80 प्रतिशत फलियों के पकने पर ही किया जाना चाहिए। फसल को खलिहान में ले जाने के लिए बंडल बना लें।

भंडारण 

दानों में नमी दूर करने के लिए धूप में अच्छी तरह से सुखाना जरूरी है। इसके बाद फसल को भंडारित किया जा सकता है।

उड़द की उपज

शुद्ध फसल में 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और मिश्रित फसल में 6-8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज हो जाती है।

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