Published - 09 May 2022 by Tractor Junction
देश के कई किसान मछली पालन का व्यवसाय करके अपनी आय में इजाफा कर रहे हैं। ऐसे में कई जगह पर मछली उत्पादन को बढ़ाने के लिए विशेष तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तकनीक का इस्तेमाल करके मछलीपालक किसान मछली उत्पादन बढ़ाने के साथ ही अपनी आय में भी बढ़ोतरी कर सकते हैं। बता दें कि पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के इलाकों में झोरा तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे किसानों को काफी लाभ हो रहा है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको मछली पालन की झोरा तकनीक के बारें में जानकारी दे रहे हैं और साथ ही यूपी में मछलीपालन पर सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में बता रहे हैं।
झोरा तकनीक के तहत छोटे सीमेंट टैंक में मछली पालन किया जाता है। इन सीमेंट टैंकों को यहां कि स्थानीय भाषा में झोरा कहा जाता है। इन झोरों में पहाड़ों से पानी आता है। भारत में केवल पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के इलाकों में ही झोरा तकनीक से मछली पालन किया जाता है। इस तकनीक में किसान एक छोटे से हिस्से का चयन करते हैं जो भूमि की उपलब्धता के आधार पर किया जाता है। झोरा एक ऐसी तकनीक है जिसमें पहाड़ों ने निरंतर आने वाला पानी इस कृत्रिम सीमेंट के बने टंकों में इकट्ठा होता जाता है। इस तरह यहां 24 घंटे पानी इन टैकों में जमा होता रहता है और इसी पानी में मछली पालन किया जाता है।
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के इलाकों में वर्तमान में करीब 5 हजार झोरे मौजूद हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा ये हैं कि इन किसान परिवारों को खाने के लिए मछलियां तो मिल ही रही हैं, साथ ही इन्हें मछलियां बेचने से अतिरिक्त आय भी हो रही है। यहां किसान खेती के साथ मछलीपालन करके अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं। इस तरह यहां के किसानों को अतिरिक्त आय का एक अच्छा स्त्रोत मिल गया है।
इस तकनीक की शुरुआत 1980 में की गई थी। इसके तहत पहाड़ी क्षेत्रों में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए और ऊंचाई वाले जगहों में मछलियों के विकास पर अध्ययन करने के लिए सरकार ने डिमॉन्सट्रेशन के लिए 9 सीमेंट टैंकों का निर्माण करवाया था। इसके बाद इसमें मछली पालन शुरू किया गया। इसमें यहां की स्थानीय भौगोलिक स्थिति में अच्छी तरह से पनपने वाली मछलियों की प्रजातियों का चयन किया गया। इस अध्ययन के उत्साहजन परिणाम प्राप्त हुए। नौ महीने के बाद प्रत्येक झोरा तालाब से करीब 100-120 किलोग्राम मछली उत्पादन प्राप्त हुआ। मछली पालन की इस तकनीक से बढ़े उत्पादन ने प्रशासन को पहाडिय़ों में बड़े पैमाने पर मछली पालन शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रशासन ने इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय लोगों को तालाब निर्माण के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी की सहायता उपलब्ध कराई।
उत्तरप्रदेश में मत्स्य विभाग की ओर से किसानों को मछलीपालन के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि उनकी आय में बढ़ोतरी हो सके। इसके लिए प्रशासन की ओर से सहयोग दिया जा रहा है। जैसा कि उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में विभिन्न प्रकार के तालाबों, पोखरों आदि मौजूद हैं। इसमें वैज्ञानिक विधि को अपनाकर मत्स्य पालन करके किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं।
उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से राज्य के किसानों के लिए मछलीपालन पर योजना चलाई जा रही है। इसके लिए आवेदन करने वाले किसान के पास अपना निजी तालाब अथवा निजी भूमि या पट्टे का तालाब होना चाहिए तभी वह इस योजना का लाभ उठा सकता है। इसके लिए इच्छुक किसान को भूमि संबंधी खसरा खतौनी लेकर जनपदीय कार्यालय से संपर्क करना होगा। पट्टे के तालाब पर मत्स्य पालन हेतु पट्टा निर्गमन प्रमाण-पत्र के साथ जनपदीय कार्यालय संपर्क किया जा सकता है। इसके लिए विभाग की ओर से क्षेत्रीय मत्स्य विकास अधिकारी/अभियंता द्वारा भूमि/तालाब का सर्वेक्षण कर प्रोजेक्ट तैयार किया जाएगा। यदि भूमि/तालाब मछली पालन के योग्य है तो जनपदीय कार्यालय की ओर से प्रोजेक्ट तैयार कर संस्तुति सहित प्रोजेक्ट बैंक को ऋण स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। बैंक स्वीकृति मिलने पर अनुदान की राशि बैंक को भेज दी जाती है और बैंक के माध्यम से ये राशि किसान के खाते में ट्रांसफर होती है।
बता दें कि यूपी में मत्स्य विभाग की ओर से तालाबों/प्रस्तावित तालाबों की भूमि का मृदा-जल के नमूनों का परीक्षण विभागीय प्रयोगशाला में निशुल्क किया जाता है तथा इसकी जानकारी मत्स्य पालन के इच्छुक किसान को दी जाती है। मृदा और जल के परीक्षण के बाद यदि कोई कमी पाई जाती है तो उसका उपचार या निदान मत्स्य पालन हेतु इच्छुक व्यक्ति को बताया जाता है।
मत्स्य पालन के इच्छुक किसान मछली पालन की तकनीकी जानकारी एवं मत्स्य पालन हेतु आवश्यक प्रशिक्षण ब्लाक/तहसील स्तर पर क्षेत्रीय मत्स्य विकास अधिकारी/जनपदीय अथवा मंडलीय कार्यालय से संपर्क कर प्राप्त कर सकते हैं। इतना ही नहीं किसान मत्स्य विभाग/मत्स्य विकास निगम से मत्स्य बीज भी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा विभाग की ओर से समय-समय पर कृषि मेलों/प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है। इसमें किसान विभागीय योजनाओं एवं मत्स्य पालकों को दी जा रही सुविधाओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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