Published - 16 Jul 2021
भारत में प्राचीन काल से ही बांस की खेती की जाती रही है। पहले बांस का उपयोग अधिक होता था। झोपड़ी बनाने से लेकर घर के काम आने वाले सामान बांस से ही बनाए जाते थे। धीरे-धीरे बांस का उपयोग कम होने लगा और लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर बनाने सहित अन्य कामों में होने लगा है जिससे धीरे-धीरे वन क्षेत्र कम होता जा रहा है। इसलिए आज जरूरी है कि फिर से बांस का उपयोग को फिर से बढ़ाया जा सके ताकि लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई पर रोक लग सके। इस दिशा में हमारी सरकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सरकार चाहती है कि देश में बांस के उत्पादन को बढ़े जिससे किसानों की आय में बढ़ोतरी हो और साथ ही यहां से अन्य देशों को भी बांस का निर्यात किया जा सके। बता दें कि दुनिया में बांस उत्पादन में अग्रिय होने के बावजूद भारत का निर्यात न के बराबर है। इसके अलावा बांस की खेती ( bamboo cultivation) को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सरकारी नर्सरी में इसके पौधे निशुल्क दिए जाते हैं। यदि सही तरीके से बांस की खेती की जाए तो किसान इससे अच्छा मुनाफा कमा सकता है।
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किसानों के बीच बांस की खेती का चलन बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे कारण यह है कि आजकल किसान फसलों की खेती मुनाफे के हिसाब से करने लगे हैं। अब वे पारंपरिक खेती को छोड़ अलग हटकर खेती कर रहे है जिसका लाभ उन्हें मिल भी रहा है। इसी क्रम में बांस की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौंदा साबित हो रही है। आज देश में बड़े पैमाने पर किसान बांस की खेती कर रहे हैं।
अभी तक बांस के लगभग 2000 विभिन्न उपयोगों की जानकारी है जिसमें संरचनाओं का निर्माण घरेलु उपयोग की वस्तुएं, साज-सज्जा के सामान, ईंधन एवं हवा हेतु बफर क्षेत्र बनाना इत्यादि शामिल है। इसके अलावा बांस का इस्तेमाल स्तंभों, बीम, दीवारों, छतों और सीढिय़ों जैसे संरचनात्मक अनुप्रयोगों में किया जा सकता है। इसका उपयोग फसल वास्तुकला, भंडारण संरचनाओं, आवास, मत्स्य पालन संरचनाएं, मछली जाल, मछली बीजों का परिवहन इत्यादि में किया जा सकता है। बांस की बनी वस्तुओं का ग्रामीण स्तर पर उत्पादन रोजगार एवं अच्छे आय का माध्यम बन सकती है। बांस का उपयोग करके कृषि कार्यों में उपयोग आने वाले उपकरणों का निर्माण भी किया जा सकता है। इस प्रकार कृषि उपकरणों में बांस एक हरित अभियांत्रिकीय पदार्थ के रूप में अपनाया जा सकता है।
एक बार बांस खेत में लगा दिया जाए तो 5 साल बाद वह उपज देने लगता है। अन्य फसलों पर सूखे एवं कीट बीमारियों का प्रकोप हो सकता है। जिसके कारण किसान को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। लेकिन बांस एक ऐसी फसल है जिस पर सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। वहीं एक बार बांस पौधा स्थायी हो जाए तो यह तब तक नहीं मरता, जब तक यह अपनी आयु पूरी न कर ले। वैसे बांस की आयु 32-48 वर्ष मानी जाती है। इस लिहाज से बांस किसान को कई सालों तक लाभ देता है।
केंद्र सरकार की मंशा किसानों को बांस के उत्पादन के लिए प्रेरित कर के बांस के सामान और बांस के निर्यात को बढ़ावा देना है। दुनिया में बांस उत्पादन के मामले में अग्रणी होने के बावजूद भारत का निर्यात न के बराबर है। देश में बांस की खेती के प्रसार को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार 2014 से इस पर लगातार काम कर रही है। इसके लिए केंद्र सरकार ने साल 2017 में भारतीय वन्य अधिनियम 1927 का संशोधन कर के बांस को पेड़ों की श्रेणी से हटा दिया है। इस संशोधन की वजह से अब कोई भी बांस की खेती और उससे जुड़ा व्यवसाय कर सकता है।
बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकारी नर्सरी से पौध निशुल्क दिए जाते हैं। बांस की करीब 136 प्रजातियां है। भारत में 13.96 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र पर बांस लगे हुए हैं, लेकिन व्यावसायिक रूप से खेती करने के लिए और अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग बांस की किस्में लगाई जाती हैं। लेकिन उनमें से 10 तरह की किस्मों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है।
ऐसे में केंद्र सरकार की तरफ से राष्ट्रीय बांस मिशन योजना के तहत इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार इस योजना के अंतर्गत किसानों को बांस की खेती करने पर 50 हजार रुपए की सब्सिडी देती है और छोटे किसान को एक पौधे पर 120 रुपए की सब्सिडी देने का प्रावधान है।
बांस के लिए कोई खास किस्म मिट््टी या जमीन की जरूरत नहीं पड़ती है। इसे बंजर जमीन पर भी उगाया जा सकता है। बांस की खेती करने के लिए इसकी नर्सरी तैयार कर पौध लगाई जाती है। बांस की नर्सरी ऐसी जगह पर बनानी चाहिए, जहां आसानी से आना जाना हो सके। साथ ही पानी की व्यवस्था भी हो। दोमट मिट्टी, जिसका पीएच मान 6.5 से 7.5 हो, उसे नर्सरी लगाने के लिए अच्छा माना जाता है। नर्सरी तैयार करने के लिए मार्च माह सबसे अच्छा माना जाता है। बीजों को छह माह से एक साल तक भंडारित किया जा सकता है। बुवाई करने से पहले गहरी जुताई कर के क्यारियां बनाकर बीज बोना चाहिए और हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बुवाई के पहले सप्ताह में ही पौध निकलने लगते हैं। पौधे जब थोड़े बड़े हो जाएं तो रोपाई करनी चाहिए। इसके अलावा गैर पारंपरिक तरीके से भी बांस की खेती की जाती है। इसमें जड़े लगाना, कलम काटकर लगाना और शाखाओं को कटिंग कर के लगाना भी शामिल है।
एक बार बांस लग जाए तो वह कई सालों तक मुनाफा देता रहता है। बाजार में इसकी बढ़ती मांग के कारण इसके अच्छे भाव भी मिल जाते हैं। किसान इसे खेत की मेड पर उगाकर भी पैसा कमा सकता है। यदि एक हेक्टेयर खेत में 625 पौधे चार से चार मीटर दूरी पर उगाएं जाएं तो ये पांचवें साल से 3125 बांस हर साल लिए जा सकते हैं। वहीं किसान आठवें साल से 6250 बांस प्रतिवर्ष उपज ले सकते हैं और इसे बेचकर किसान 5 से 7 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर मुनाफा कमा सकते हैं।
किसान बांस के साथ अन्य मुनाफा देने वाली फसलों की खेती करके भी लाभ कमा सकते हैं। एक बास से दूसरे बांस के बीच अंतर क्षेत्र में किसान बांस के साथ अदरक, हल्दी, आम, सफेद मुस्ली या इसी तरह की अन्य फसलें उगाकर 20 से 50 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।
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