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अश्वगंधा की उन्नत खेती : अश्वगंधा की खेती से किसान हो रहे मालामाल

Published - 12 Oct 2021

जानें, अवश्वंगधा की खेती (Ashwagandha Farming) का सही तरीका और इसके लाभ

अश्वगंधा की खेती तीन गुना फायदा देने वाली फसल है। इसका उत्पादन करके किसान कम समय में अधिक मुनाफा कमा कर मालामाल हो सकते हैं। यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो बेहतर उत्पादन प्राप्त कर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। इसकी बाजार मांग हर मौसम में बनी रहती है। बड़ी-बड़ी आर्युवेर्दिक दवा निर्माता कंपनियां इसका अपनी दवाओं में इस्तेमाल करती है। अश्वगंधा की खेती खारे पानी में भी की जा सकती है। वहीं इसकी फसल में रोग और कीटों का प्रकोप भी कम होता है। इस तरह देखा जाए तो अश्वगंधा की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। 

क्या है अश्वगंधा

अश्वगंधा एक औषधि है। इसे बलवर्धक, स्फूर्तिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी माना जाता है। इसकी जड़, पत्ती, फल और बीज औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। आयुवेर्दिक दवाओं में इसका उपयोग होता है। सभी जड़ी बूटियों में से अश्वगंधा सबसे अधिक प्रसिद्ध जड़ी बूटी मानी जाती है। 

अश्वगंधा खेती : अश्वगंधा के गुण / (Ashwagandha Benefits)

शोधकर्ताओं के अनुसार अश्वगंधा के प्रयोग से तनाव और चिंता के लक्षणों को दूर किया जा सकता है। इसका प्रयोग कई बीमारियों के इलाज में भी किया जाता है।  अश्वगंधा में कई तरह के एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते है। यह गुण शरीर में कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रण करता है। जिससे हृदय संबंधित विकार होने की संभावना नहीं रहती है। इसका प्रयोग हृदय को स्वास्थ रखने में किया जा सकता है। इसके प्रयोग से हृदय विकार होने की संभावना कम होती है। कैंसर रोग से बचाने में अश्वगंधा काफी सहायक है। थायराइड की बीमारी में भी इसके प्रयोग की सलाह वैद्यों द्वारा दी जाती है। यह तनाव का दूर करने और इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत करता है। सर्दी-खांसी की समस्या में भी इसके प्रयोग से आराम मिलता है। ये बालों की गिरती समस्या को दूर करने में सहायक है। ध्यान रहे इसका प्रयोग चिकित्सक की सलाह के अनुसार करना चाहिए। क्योंकि इसके गलत तरीके से प्रयोग करने पर नुकसान भी हो सकता है। 

अश्वगंधा की उन्नत खेती : कैसा होता है अश्वगंधा का पौधा

अश्वगंधा एक द्विबीज पत्रीय पौधा है। जो कि सोलेनेसी कुल का पौधा है। सोलेनेसी परिवार की पूरे विश्व में लगभग 3000 जातियां पाई जाती हैं। और 90 वंश पाए जाते हैं। इसमें से केवल दो जातियां ही भारत में पाई जाती हैं। इस जाति के पौधे सीधे, अत्यंत शाखित, सदाबहार तथा झाड़ीनुमा 1.25 मीटर लंबे पौधे होते हैं। पत्तियां रोमयुक्त, अंडाकार होती हैं। फूल हरे, पीले तथा छोटे एंव पांच के समूह में लगे हुए होते हैं। इसका फल बेरी जो कि मटर के समान दूध युक्त होता है। जो कि पकने पर लाल रंग का होता है। जड़े 30-45 सेमी लम्बी 2.5-3.5 सेमी मोटी मूली की तरह होती हैं। इनकी जड़ों का बाह्य रंग भूरा तथा यह अंदर से सफेद होती हैं।

भारत में कहां-कहां होती है अश्वगंधा की वैज्ञानिक खेती

भारत में इसकी खेती 1500 मीटर की ऊंचाई तक के सभी क्षेत्रों में की जा रही है। भारत के पश्चिमोत्तर भाग राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश आदि प्रदेशों में अश्वगंधा की खेती की जाती है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में अश्वगंधा की खेती बड़े स्तर पर की जाती है। मध्य प्रदेश के मनसा, नीमच, जावड़, मानपुरा और मंदसौर और राजस्थान के नागौर और कोटा जिलों में अश्वगंधा की खेती की जा रही है। बता दें कि भारत में अश्वगंधा की जड़ों का उत्पादन प्रति वर्ष 2000 टन है। जबकि जड़ की मांग 7,000 टन प्रति वर्ष है। 

अश्वगंंधा की खेती के लिए जलवायु व मिट्टी

अश्वगंधा को खरीफ (गर्मी) के मौसम में वर्षा शुरू होने के समय लगाया जाता है। अच्छी फसल के लिए जमीन में अच्छी नमी व मौसम शुष्क होना चाहिए। फसल सिंचित व असिंचित दोनों दशाओं में की जा सकती है। रबी के मौसम में यदि वर्षा हो जाए तो फसल में गुणात्मक सुधार हो जाता है। इसकी खेती सभी प्रकार की जमीन में की जा सकती है। लेकिन अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट अथवा हल्की लाल मृदा जिसका पी. एच. मान 7.5-8.0 हो व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त होती है। यह पछेती खरीफ फसल है। पौधों के अच्छे विकास के लिये 20-35 डिग्री तापमान 500-750 मि.मी. वार्षिक वर्षा होना जरूरी है। पौधे की बढ़वार के समय शुष्क मौसम एंव मृदा में प्रचुर नमी की होना आवश्यक होता है। 

अश्वगंधा की उन्नत किस्में

भारत में अश्वगंधा की पाई जाने वाली उन्नत किस्मों में पोशिता, जवाहर असगंध-20, डब्यलू एस.-20 व डब्यलू एस.-134 किस्में अच्छी मानी जाती है। 

अश्वगंधा की खेती कब और कैसे करें / अश्वगंधा की खेती के लिए खेत और नर्सरी तैयार करना

अगस्त और सितंबर माह में जब वर्षा हो जाऐ उसके बाद जुताई करनी चाहिए। दो बार कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद पाटा लगा देना चाहिए। वहीं नर्सरी तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नर्सरी को सतह से 5-6 इंच ऊपर उठाकर बनाई जाए ताकि नर्सरी में जलभराव की समस्या उत्पन्न न हो। नर्सरी में गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। इससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है।

अश्वगंधा के बीज की मात्रा व बीजोपचार

नर्सरी के लिए प्रति हेक्टेअर पांच किलोग्राम व छिडक़ाव विधि के लिए प्रति हेक्टेअर 10 से 15 किलो अश्वगंधा का बीज की जरूरत पड़ती है। बोआई के लिए जुलाई से सितंबर तक का समय उपयुक्त माना जाता है। वहीं जैविक विधि से नर्सरी को उपचारित करने के लिए गोमूत्र का प्रयोग किया जाता है।

अश्वगंधा की नर्सरी में बीजों की बुवाई

नर्सरी में इसके बीजों की बुवाई पक्तियों में करनी चाहिए। इसके बीजों को गहराई  में 1-1.25 सेमी की गहराई में डालना चाहिए। नर्सरी में बीज की बुवाई जून माह में की जाती है। बीजों में 6-7 दिनों में अंकुरण शुरू हो जाता है। 

Ashwagandha Cultivation : रोपण की विधि

नर्सरी में जब पौधा 6 सप्ताह का हो जाये तब इसे खेत में रोपित कर देना चाहिए। रोपाई के समय दो पौधों के बीच 8 से 10 सेमी की दूरी हो और पंक्तियों के बीच 20 से 25 सेमी की दूरी होनी चाहिए। 

अश्वगंधा की खेती में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग

अश्वगंधा के बीजों की बुवाई से एक माह पूर्व प्रति हेक्टेअर पांच ट्रॉली गोबर की खाद या कंपोस्ट की खाद खेत में मिला देना चाहिए। बोआई के समय 15 किग्रा नत्रजन व 15 किग्रा फास्फोरस का छिडक़ाव करना चाहिए। 

अश्वगंधा में सिंचाई क्रियाएंं

अश्वगंधा में नियमित समय से वर्षा होने पर फसल की सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन आवश्यकता पडऩे पर इसकी सिंचाई की जा सकती है। सिंचित अवस्था में खेती करने पर पहली सिंचाई करने के 15-20 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद अगर नियमित वर्षा होती रहे तो पानी देने की आवश्यकता नहीं रहती है। बाद में महीने में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए। अगर बीच में वर्षा हो जाए तो सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है। वर्षा न होने पर जीवन रक्षक सिंचाई करनी चाहिए। अधिक वर्षा या सिंचाई से फसल को हानि हो सकती है। 4 ई.सी. से 12 ई.सी. तक वाले खारे पानी से सिंचाई करने से इसकी पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि इसकी गुणवत्ता 2 से 2.5 गुणा बढ़ जाती है।

अश्वगंधा के फसल की छंटाई व निराई-गुड़ाई

बुवाई फसल को 25 से 30 दिन बाद हाथ से छांट देना चाहिए। इससे लगभग 60 पौधे प्रतिवर्ग मीटर यानी 6 लाख पौधे प्रति हेक्टेअर अनुरक्षित हो जाते हैं। इसकी खेती में समय-समय पर खेत से खरपतवार निकलते रहना चाहिए। अश्वगंधा जड़ वाली फसल है इसलिए समय-समय पर निराई-गुडाई करते रहने से जड़ को हवा मिलती रहती है जिसका उपज पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

अश्वगंधा में कीटों व रोगों से सुरक्षा

अश्वगंधा पर रोग व कीटों का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। फिर भी माहू कीट तथा पूर्णझुलसा रोग से फसल प्रभावित होती है। ऐसी परिस्थिति में मोनोक्रोटोफास का डाययेन एम- 45, तीन ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर बोआई के 30 दिन के अंदर छिडक़ाव करना चाहिए। आवश्यकता पडऩे पर इसका छिडक़ाव 15 दिन के अंदर दोबारा किया जा सकता है। 

फसल चक्र

अश्वगंधा खरीफ फसल के रूप मे लगाई जा सकती है तथा फसल चक्र में गेहूं की फसल ली जा सकती है।

अश्वगंधा की कटाई

फसल बोआई के 150 से 170 दिन में तैयार हो जाती है। पत्तियों का सूखना फलों का लाभ होना फसल की परिपक्वता का प्रमाण है। परिपक्व पौधे को उखाडक़र जड़ों को गुच्छे से दो सेमी ऊपर से काट लें फिर इन्हें सुखाएं। फल को तोडक़र बीज को निकाल लें। 

अश्वगंधा की प्राप्त उपज व लाभ / अश्वगंधा की कीमत 

आम तौर पर एक हैक्टर से 6.5-8.0 कुंतल ताजा जड़े प्राप्त होती हैं जो सूखने पर 3-5 क्विंटल रह जाती है। इससे 50-60 किलो बीज प्राप्त होता है। इस फसल में लागत से तीन गुना अधिक लाभ होता है। अब बात करें इससे  होने वाले मुनाफे की तो एक हेक्टेयर में अश्वगंधा पर अनुमानित व्यय 10000 रुपए आता है जबकि करीब 5 क्विंटल जड़ों तथा बीज का वर्तमान विक्रय मूल्य लगभग 78,750 रुपए होता है।

अश्वगंधा की खेती के लिए बीज कहां  से प्राप्त करें

किसान भाई अपने क्षेत्र के निकटतम उद्यान या कृषि विभाग की नर्सरी से इसके बीज या पौध प्राप्त सकते हैं। निजी नर्सरी से भी इसे ले सकते हैं। इसके अलावा अमेजन जैसी ऑनलाइन बीज विक्रय करने वाली साइट से भी बीज प्राप्त कर सकते हैं। यदि चाहे तो अपने किसान साथी जो इसकी अश्वगंधा खेती करते हैं उनसे भी इसका बीज प्राप्त किया जा सकता है।

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