Published - 30 Nov 2021
भारत में बहुत से फलों की खेती की जाती है। इसमें सेब की खेती किसान को अच्छा मुनाफा देने वाली खेती मानी जाती है। इसकी खेती से किसान को कम लागत में अधिक फायदा होता है। क्योंकि बाजार में सेब के भाव अन्य फलों की अपेक्षा काफी अच्छे मिल जाते हैं। इस तरह से देखा जाए तो सेब की बाजार मांग हमेशा बनी रहती है। आज हम आपको ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से सेब उत्पादन के बारे में जानकारी दे रहे हैं। उम्मीद करते हैं कि ये जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी।
सेहत के लिहाज से भी सेब का सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी माना जाता है। कहावत भी है कि जो एक सेब रोज खाता है उसके घर डॉक्टर कभी नहीं आता है। जब आप कभी बीमार हो जाते हैं डाक्टर भी आपको सेब खाने की सलाह देते हैं। इसमें पोषक तत्वों की मात्रा भी अधिक होती है। इसमें प्रचूर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं।
भारत में सेब की खेती जम्मू सहित हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, अरूणाचल प्रदेश, नगालैंड, पंजाब और सिक्किम में की जाती है। इसके अलावा अब इसकी खेती अन्य राज्यों जैसे- महाराष्ट्र, बिहार में भी की जाने लगी है।
सेब का वानस्पतिक नाम - मैलस प्यूपमिला है। ये रोसासिए परिवार का पौधा है। यह एक गोलाकार पेड़ होता है जो सामान्य तौर पर 15 मी. ऊंचा होता है। ये पेड़ जोरदार और फैले हुए होते हैं। पत्ते ज्यादातर लघु अंकुरों या स्पूर्स पर गुच्छेदार होते हैं। सफेद फूल भी स्पेर्स पर उगते हैं। इसकी उत्पत्ति का केंद्र पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया माना जाता है। इसमें परागण प्रक्रिया संकर परागणित प्रणाली द्वारा होती है।
सेब की खेती के लिए गहरी उपजाऊ और दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। सेब की खेती में भूमि का पीएच मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए। खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। इसकी खेती में जलवायु का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसके पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए अधिक ठंड की आवश्यकता होती है। सर्दियों के मौसम में फलों के अच्छे विकास के लिए पौधों को लगभग 200 घंटे सूर्य की धूप की आवश्यकता होती है।
नवंबर से लेकर फरवरी अंत तक सेब के पौधे को लगाया जा सकता है। लेकिन इसे उगाने का सबसे अच्छा महीना जनवरी और फरवरी माना जाता है। नर्सरी से लाए गए पौधे एक साल पुराने और बिल्कुल स्वस्थ होने चाहिए। पौधों की रोपाई जनवरी और फरवरी के माह में की जाती है। इससे पौधों को ज्यादा समय तक उचित वातावरण मिलता है, जिससे पौधे अच्छे से विकास करते है।
भारत में सेब की अनेक किस्में प्रचलित है। इन किस्मों का चयन क्षेत्र की जलवायु और भौगोलिक स्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाता है। सेब की उन्नत किस्मों में सन फ्यूजी, रैड चीफ, ऑरिगन स्पर, रॉयल डिलीशियस किस्म, हाइब्रिड 11-1/12 किस्म प्रमुख हैं। इसके अलावा सेब की अन्य किस्में भी हैं। इनमें टाप रेड, रेड स्पर डेलिशियस, रेड जून, रेड गाला, रॉयल गाला, रीगल गाला, अर्ली शानबेरी, फैनी, विनौनी, चौबटिया प्रिन्सेज, ड फ्यूजी, ग्रैनी स्मिथ, ब्राइट-एन-अर्ली, गोल्डन स्पर, वैल स्पर, स्टार्क स्पर, एजटेक, राइमर जैसी किस्में मौजूद है जिन्हें अलग-अलग जगहों और अलग-अलग जलवायु में उगाया जाता है।
सेब की नई प्रजाति हरिमन-99 काफी अच्छी बताई जाती है। इस किस्म को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में पनियाला गांव के जाने-माने कृषि विशेषज्ञ एचआर शर्मा ने इसे विकसित किया है। भारत में हरिमन किस्म की खेती 22 से 23 राज्यों में अपनाई गई है और हर जगह सफल हो रही है। यह किस्म 45 से 48 डिग्री तापमान भी सहन कर लेती है और फल देती है।
सेब के पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह से दो से तीन गहरी जुताई कर लेनी चाहिए। रोटावेटर की सहायता से मिट्टी को भुरभुरा बना लें। इसके बाद ट्रैक्टर में पाटा लगवा कर चलाएं जिससे खेत की भूमि समतल हो जाए ताकि जल भराव की समस्या नहीं हो। इसके बाद 10 से 15 फीट की दूरी रखते हुए गड्ढों को तैयार करें। गड्ढों को तैयार करने का काम पौध रोपाई से एक महीने पहले कर लेना चाहिए।
सेब के वह पौधे जिनकी रोपाई होनी होती है, पहले उन्हें भी तैयार करना होता है। इस पौधों को बीज और कलम के जरिये तैयार किया जाता है। कलम से पौधों को तैयार करने के लिए पुराने पेड़ों की शाखाओं को ग्राफ्टिंग और गूटी विधि से तैयार किया जाता है। इसके अलावा यदि आप चाहे तो किसी भी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से इन्हेें खरीद सकते है।
सामान्य पेड़ों की तरह ही सेब के पौधे भी लगाए जाते हैं। सेब के पौधे 15 x 15 या 15 x 20 की दूरी पर लगाने चाहिए। सामान्यत: गड्ढा कर के मिट्टी, पानी, खाद वगैरह के साथ पौधे लगाने चाहिए। गोबर से तैयार जैविक खाद का उपयोग करना ज्यादा अच्छा रहता है।
सेब के पौधे को लगाने के लिए तैयार किए गए गड्ढे में 10 से 12 किलो गोबर की खाद के साथ एनपीके की आधा किलो की मात्रा को मिट्टी में अच्छी प्रकार से मिला देनी चाहिए। और हर साल इसी मात्रा में पौधों को उवर्रक देना चाहिए। पौधों के विकास के साथ उवर्रक की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए।
सेब के पौधों की सिंचाई के लिए आप ड्रिप एरिगेशन का उपयोग कर सकते हैं, यानी पाइप के सहारे बूंद-बूंद पानी द्वारा पौधे को देना। हालांकि फ्लड एरिगेशन यानी सामान्य तरीके से भी सिंचाई की जाती है। इसकी पहली सिंचाई पौध रोपण के तुरंत बाद करनी चाहिए। सर्दियों के महीने में केवल दो से तीन सिंचाई ही इसके पौधों के लिए पर्याप्त होती है, लेकिन गर्मियों के मौसम में इन्हे प्रत्येक हफ्ते में सिंचाई की जरूरत होती है। इसके अलावा बारिश के मौसम में जरूरत पडऩे पर ही इसकी सिंचाई की जानी चाहिए।
सेब के पौधों के आसपास उगी खरपतवार यानि अनावश्यक पौधों को तोडक़र बगीचे से दूर फेंक देना चाहिए। पौधे की समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। ताकि खरपतवार पनप नहीं पाए।
सेब के पौधे में कई प्रकार के रोग लगते हैं जिससे पौधा संक्रमित हो जाता है। इस प्रकार के पौधे का विकास रूक जाता है और फलोत्पादन पर इसका विपरित प्रभाव पड़ता है। इसके लिए रोगों के नियंत्रण के उपाय करने चाहिए।
इस रोग का लार्वा पौधे की छाल में छेद कर उसे नष्ट कर देता है। जिससे पौधा संक्रमित हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्लोरपीरिफॉस का छिडक़ाव 20 दिन में अंतराल में तीन बार करना चाहिए।
इस तरह का कीट रोग पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है। सफेद रूईया कीट के प्रभाव से पौधों की जड़ो में गांठे बनने लगती है, तथा रोग लगी पत्तिया सूखकर गिर जाती है। इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड या मिथाइल डेमेटान से उपचारित कर इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
इस रोग के लगने पर फलों पर धब्बे दिखाई देने लगते है तथा फल फटा-फटा दिखाई देने लगता है। फलो के अलावा यह रोग पत्तियों को भी प्रभावित करता है। इस रोग से बचाव के लिए बाविस्टिन या मैंकोजेब का छिडक़ाव पौधों पर उचित मात्रा में करना चाहिए।
सेब के पेड़ में फल विकसित की गई किस्म पर निर्भर करते करते हैं। पूर्ण पुष्प पुंज अवस्था के बाद 130-135 दिनों के भीतर फल परिपक्व होते हैं। फलों का परिपक्व रंग में परिवर्तन, बनावट, गुणवत्ता और विशेष स्वाद के विकास से जुड़ा होता है। फसल-कटाई के समय फल एकसमान, ठोस होने चाहिए। परिपक्वन के समय त्वचा का रंग किस्म, पर निर्भर करते हुए पीला-लाल के बीच होना चाहिए। सेब के फलों की हाथ से चुनाई की सिफारिश की जाती है क्योंकि इससे अभियांत्रिक फसल-कटाई के दौरान फल गिरने की वजह से ब्रूजिंग में कमी आएगी।
सेब के पेड़ पर चौथे वर्ष से फल लगने शुरू होते हैं। किस्म और मौसम पर निर्भर करते हुए, एक सुप्रबंधित सेब का बगीचा औसतन 10-20 कि.ग्रा./पेड़/वर्ष की पैदावार देता है। 6 वर्ष बाद सेब का पौधा पूर्ण विकसित हो जाता है, और एक बार में काफी फल दे देता है। एक एकड़ के जमीन में सेब के करीब 400 पौधों को लगाया जा सकता है। इस तरह किसान भाई इसकी खेती से बाजार भाव के अनुसार अच्छा मुनाफा कमा सकते हैंं।
आमतौर पर सेब का बाजार भाव 100 से 150 रुपए प्रति किलों के आसपास रहता है।
सेब की खेती पर कितनी मिलती है सब्सिडी बिहार में करीब 20 हेक्टेयर क्षेत्रफल में सेब की खेती की शुरुआत की जाएगी। इसमें 10 हेक्टेयर रकबा में कृषि विभाग और 10 हेक्टेयर पर इसमें रुचि रखने वाले किसानों से इसकी बागवानी कराई जाएगी। विभाग किसानों को 50 फीसदी के करीब सब्सिडी देगा। एक हेक्टेयर में करीब ढाई लाख रुपए की लागत आएगी। निजी क्षेत्र के तहत विभिन्न जिलों के किसानों को सेब की खेती से जोड़ा जाएगा। सेब की का क्षेत्र विस्तार करने के लिए सरकार किसानों को प्रति हेक्टेयर पर ढाई लाख रुपए तीन किस्तों में देगी। पहली किस्त में अनुदान का 60 फीसदी मिलेगा। बचा अनुदान दो समान किस्तों में दिया जाएगा।
प्रश्न 1. सेब की खेती के लिए कौनसी किस्म अच्छी है?
उत्तर. सेब की उन्नत किस्मों में सन फ्यूजी, रैड चीफ, ऑरिगन स्पर, रॉयल डिलीशियस किस्म, हाइब्रिड 11-1/12 किस्म प्रमुख हैं। इसके अलावा इसकी नई किस्म हरिमन भी है जो अधिक तापमान को भी सहन करने की क्षमता रखती है। सेब किस्मों का चयन अपने क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और जलवायु के अनुसार किया जाना चाहिए।
प्रश्न 2. क्या सेब की खेती के लिए सरकार से भी मदद मिल सकती है?
उत्तर. सेब की खेती के लिए राज्य सरकारे अपने स्तर पर किसानों को सब्सिडी का लाभ प्रदान करती है। बिहार में सेब की खेती करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत तक सब्सिडी का लाभ दिया जाता है।
प्रश्न 3. सेब की खेती के लिए कौनसी मिट्टी उपयुक्त रहती है?
उत्तर. सेब की खेती के लिए गहरी उपजाऊ और दोमट मिट्टी की उपयुक्त रहती है। सेब की खेती में भूमि का पीएच मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए। खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रश्न 4. सेब के पौधे कहां से मिल सकते हैं?
उत्तर. सेब के पौधे आपको सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से मिल सकते हैं।
प्रश्न 5. मैंने सेब का बगीचा लगाया हुआ है। फलों पर धब्बे दिखाई दे रहे है तथा फल फटा-फटा दिखाई दे रहा है। इसके नियंत्रण के लिए क्या करूं?
उत्तर. यह सेब का पपड़ी रोग है। इसके नियंत्रण के लिए बाविस्टिन या मैंकोजेब का छिडक़ाव पौधों पर उचित मात्रा में करना चाहिए।
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