Published - 23 Jun 2021
बारिश के मौसम में पशुओं को कई प्रकार के रोग होने की संभावना रहती है। ऐसे में विशेषकर दूध देने वाले पशुओं को लेकर पशुपालक को काफी सचेत रहने की जरूरत है, क्योंकि पशु रोग ग्रसित हो जाए तो दूध की मात्रा पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। बीमार पशु में दूध उत्पादन की क्षमता कम हो जाती है और इससे परिणामस्वरूप पशुपालक की आमदनी में भी गिरावट आना स्वभाविक है। इससे बचने के लिए पशुपालकों को पशुओं के रहन-सहन, खाने-पीने और रोग से बचाव करने की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि पशु को बीमारी से बचाया जा सके। हालांकि सरकार/पशुपालन विभाग भी समय-समय पर टीकाकरण कार्यक्रम चलाकर पशुओं का टीकाकरण कराती है। फिर भी पशुपालकों को इस ओर विशेष ध्यान रखने की आवश्कता है। पशुपालकों को चाहिए कि वे बारिश से पहले अपने पशुओं को गलघोटू व एकटंगिया रोग का टीका अवश्य लगवाएं ताकि पशु को इन जानलेवा रोग से सुरक्षित रखा जा सके।
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यह बीमारी वर्षा ऋतु के प्रारंभ में रोगग्रस्त पशुओं के मल, मूत्र आदि से चारागाह के प्रदूषित होने पर होती है। इसलिए इसे भू-जन्य रोग भी कहा जाता है। रोगी पशुओं में एकाएक तीव्र बुखार आता है जिससे पशु सुस्त एवं खाने-पीने में अरुचि होती है। रक्त एवं श्लेष्मायुक्त दस्त के लक्षण दिखाई देने लगते है। रोगी पशु के गले निचले जबड़े के बीच दर्दयुक्त कड़ी सूजन दिखाई पड़ती है। जीभ सूजकर मुंह से बाहर निकलने लगती है। मुंह से लगातार लार बहने, श्वास लेने में बेचैनी इस रोग के प्रमुख लक्षण है। रोगग्रस्त पशु के गले एवं जीभ में सूजन अधिक बढऩे के कारण सांस लेने में पेरशानी होती है और दम घुटने से पशु की मृत्यु हो जाती है।
एकटंगिया रोग के लक्षण यह रोग भी वर्षाऋतु में गाय-भैंस प्रजाति में फैलने वाली छूतदार बीमारी है, जीवाणु के द्वारा फैलता है। तीन वर्ष तक की आयु के पशुओं में इसका प्रकोप अधिक होता है। दूषित चारागाहों पर स्वस्थ पशुओं के चरने से इस रोग के जीवाणु प्रदूषित घास के माध्यम से पशुओं के शरीर में प्रवेश पा जाता है। इस बीमारी में भी तेजबुखार आता है तथा गर्दन, कंधों एवं पुटठों पर सूजन तथा लगड़ेपन का लक्षण प्रमुख रूप से देखने को मिलता है।
पशुओं को गलघोटू व एकटंगिया रोग से बचाने के लिए टीकाकरक ही सबसे प्रभावी उपाय है। इसके लिए वर्ष में दो बार गलघोंटू रोकथाम का टीका अवश्य लगाना चाहिए। पहला वर्षा ऋतु में तथा दूसरा सर्द ऋतु (अक्टूबर-नवंबर) टीका लगवाना चाहिए। इसी प्रकार एकटंगिया रोग की रोकथाम के लिए तीन वर्ष के आयु वाले समस्त गौवंशीय-भैंसवंशीय पशुओं का प्रतिबंधात्मक टीकाकरण अवश्य करना चाहिए।
छत्तीसगढ़ राज्य में पशुओं में बरसात के दिनों में होने वाली गलघोटू और एकटंगिया बीमारी से बचाव के लिए राज्य में 17 लाख 14 हजार से अधिक पशुओं को अब तक टीका लगाया जा चुका है। पशुधन विकास विभाग के अनुसार पशुओं में होने वाली गलघोटू बीमारी से पशुधन हानि होने का अंदेशा रहता है। राज्य के सभी पशुपालकों को अपने पशुओं को उक्त बीमारी से बचाने के लिए टीकाकरण कराने की अपील की गई है। गलघोटू और एकटंगिया का टीका पशुधन विकास विभाग द्वारा शिविर लगाकर तथा पशु चिकित्सालयों एवं केन्द्रों में नियमित रूप से किया जा रहा है।
पशुओं में गलघोटू रोग की रोकथाम की सर्वोत्तम उपाय प्रतिबंधात्क टीकाकरण ही है। पशुपालकों को वर्षा ऋतु के आरंभ होने से पहले ही अपने पशुओं में टीकाकरण कराने की अपील की गई है। पशुधन विभाग द्वारा इस रोग के विरुद्ध नि:शुल्क प्रतिबंधात्मक टीकाकरण कार्य मिशन मोड पर किया जा रहा है। पशुपालक अपने गौ वंशीय-भैंसवंशीय पशुओं चिकित्सा संस्था से संपर्क कर टीकाकरण करा सकते हैं। अभी तक राज्य में 9 लाख 73 हजार पशुओं को गलघोटू (एच. एस.) का टीकाकरण लगाया जा चुका है।
इस बीमारी की रोकथाम का सर्वोत्तम उपाय तीन वर्ष के आयु वाले समस्त गौवंशीय-भैंसवंशीय पशुओं में प्रतिबंधात्मक टीकाकरण है। पशुधन विकास विभाग द्वारा राज्य में इस रोग के रोकथाम के लिए निशुल्क टीकाकरण किया जा रहा है। अब तक राज्य में 7 लाख 40 हजार पशुओं को एकटंगिया रोग का टीका लगाया जा चुका है।
डेयरी और पशुपालन क्षेत्र, वर्तमान में राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4.5 प्रतिशत योगदान देता है। लगभग 100 मिलियन ग्रामीण परिवारों खासकर भूमिहीन, छोटे या सीमांत किसानों के लिए आय का एक प्राथमिक स्रोत बनकर उभरा है। भारत पिछले 22 वर्षों से दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। 2018-19 में भारत का दूध उत्पादन लगभग 188 मिलियन मीट्रिक टन है, जो विश्व के दूध उत्पादन का लगभग 21 प्रतिशत है।
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