Published - 23 Apr 2020
ट्रैक्टर जंक्शन पर किसान भाइयों का एक बार फिर स्वागत है। आज हम बात करते हैं अदरक की उन्नत खेती की। भारत में अदरक की खेती का क्षेत्रफल करीब 143 हजार हेक्टर है जिसमें लगभग 765 हजार मैट्रिक टन उत्पादन होता है। भारत विश्व में उत्पादित अदरक का आधा भाग पूरा करता हैं । अदरक भारत के लिए विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक प्रमुख स्त्रोत हैं । भारत में अदरक की खेती मुख्यत: केरल, तमिलनाडू, उडीसा, आसाम, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, आंध्रप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा उत्तराखंड में मुख्य व्यवसायिक फसल के रूप में की जाती है । केरल देश में अदरक उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं ।
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अदरक की खेती बलुई दोमट भूमि जिसमें अधिक मात्रा में जीवांश या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा हो सबसे ज्यादा उपयुक्त रहती है। मृदा का पी.एस. मान 5-6 ये 6.5 होना चाहिए। अच्छे जल निकास वाली भूमि पर सबसे अच्छी अदरक की उपज होती है। एक ही भूमि पर बार-बार फसल लेने से भूमि जनित रोग एवं कीटों में वृद्धि होती हैं। इसलिए फसल चक्र अपनाना चाहिये। उचित जल निकास ना होने से कंदों का विकास अच्छे से नहीं होता
अदरक की खेती गर्म और आर्द्रता वाले स्थानों में की जाती है । बुवाई के समय मध्यम वर्षा अदरक की गांठों (राइजोम) के जमाने के लिये आवश्यक होती है। इसके बाद थोड़ी ज्यादा वर्षा पौधों को वृद्धि के लिए तथा इसकी खुदाई के एक माह पूर्व सूखे मौसम की आवश्यकता होती हैं। अगेती बुवाई या रोपण अदरक की सफल खेती के लिए अति आवश्यक हैं। 1500-1800 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती अच्छी उपज के साथ की जा सकती हैं। परंतु उचित जल निकास रहित स्थानों पर खेती को भारी नुकसान होता है। औसत तापमान 25 डिग्री सेंटीग्रेड, गर्मियों में 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान वाले स्थानों पर इसकी खेती बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप में की जा सकती हैं।
मार्च-अप्रैल में खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद खेत को खुला धूप लगने के लिए छोड़ दें। मई के महीने में डिस्क हैरो या रोटावेटर से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लेते हैं। अनुशंसित मात्रा मं गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट और नीम की खली का सामान रूप से खेत में डालकर पुन : कल्टीवेटर या देशी हल से 2-3 बार आड़ी-तिरछी जुताई करके पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। सिंचाई की सुविधा एवं बोने की विधि के अनुसार तैयार खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लेना चाहिए। अंतिम जुताई के समय उर्वरकों को अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। शेष उर्वरकों को खड़ी फसल में देने के लिए बचा लेना चाहिए।
अदरक के कंदों का चयन बीज हेतु 6-8 माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिन्हित करके काट लेना चाहिए। अच्छे किस्म के 2.5-5 सेमी लंबे कंद जिनका वजन 20-25 ग्राम तथा जिनमें कम से कम तीन गांठें हो प्रवर्धन हेतु कर लेना चाहिए। बीज उपचार मैंकोजेव फफूंदी से करने के बाद ही प्रर्वधन हेतु उपयोग करना चाहिए।
अदरक की बुवाई दक्षिण भारत में मानसून फसल के रूप में अप्रैल-मई में की जाती जो दिसंबर में परिपक्व होती है। जबकि मध्य एवं उत्तर भारत में अदरक एक शुष्क क्षेत्र फसल है। जो अप्रैल से जून माह तक बुवाई योग्य समय हैं। सबसे उपयुक्त समय 15 मई से 30 मई हैं । 15 जून के बाद बुवाई करने पर कंद सडऩे लगते हैं और अंकुरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है। केरल में अप्रैल के प्रथम सप्ताह पर बुवाई करने पर उपज 200 प्रतिशत तक अधिक पाई जाती हैं । वहीं सिंचाई क्षेत्रों में सबसे अधिक उपज फरवरी के मध्य बोने पर पायी जाती है तथा कंदों के जमाने में 80 प्रतिशत की वृद्धि आंकी गई। पहाड़ी क्षेत्रों में 15 मार्च के आस-पास बुवाई की जाने वाली अदरक में सबसे अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है।
अदरक की कई प्रकार की किस्में होती हैं। इनमें कच्चे अदरक के लिए रियो डी जेनेरियो, चाइना, वायनाड लोकल, टफनगिया, टेली रोल के लिए-रयो डी जेनेरियो, सोंठ के लिए-मारण, वायनाड मैनन, थोड़े, वुल्लूनाटू, अरनाडू आदि प्रमुख है।
बीज हेतु अदरक के कंदों का चयन 6-8 माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिन्हित करके काट लेना चाहिए। अच्छे प्रकंद के 2.5-5 सेमी. लंबे कंद जिनका वजन 20-25 ग्राम तथा जिनमें कम से कम तीन गांठें हो प्रवर्धन हेतु कर लेना चाहिए। बीज उपचार मैंकोजेव फफूंदी से करने के बाद ही प्रर्वधन हेतु उपयोग करना चाहिए। अदरक 20-25 क्विंटल प्रकंद/हैक्टेयर बीज दर उपयुक्त रहता है तथा पौधों की संख्या 140000./हैक्टेयर पर्याप्त मानी जाती है। मैदानी भागों में 15-18 क्विंटल/हैक्टेयर बीजों की मात्रा का चुनाव किया जा सकता हैं। क्योंकि अदरक की लागत का 40-46 प्रतिशत भाग बीज में लग जाता इसलिये बीज की मात्रा का चुनाव, प्रजाति, क्षेत्र एवं प्रकंदों के आकार के अनुसार ही करना चाहिए।
अदरक की खेती से कमाई
अदरक की फसल लगभग 8 से 9 महीने में तैयार होती है। पकने की अवस्था में पौधे की बढ़वार रुक जाती है। पौधे भी पीले पडक़र सूखने लगते हैं और पानी देने के बाद भी उनकी वृद्धि नहीं होती। ऐसी फसल खोदने लायक मानी जाती है। अदरक की फसल औसतन 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। एक एकड़ में करीब 1 लाख 20 हजार रूपए का खर्च आता है और एक एकड़ में 120 क्विंटल अदरक का उत्पादन हो सकता है। अदरक का मार्केट रेट कम से कम 40 रूपए मिल ही जाता है। 1 एकड़ में अगर 40 के हिसाब से लगाए तो करीब 4 लाख 80 हजार रूपए की आमदनी हो जाती है। इस तरह से 1 एकड़ में सारे खर्च निकाल कर कम से कम 2 लाख 50 हजार रुपए का किसानों को फायदा हो सकता है।
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