प्रकाशित - 07 Feb 2024
रबी फसल में गेहूं का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। देश में कई राज्यों में गेहूं की खेती (wheat cultivation) प्रमुखता से की जाती है। हर किसान चाहता है कि उसकी बोई गई फसल से उसे अधिक पैदावार प्राप्त हो, लेकिन जानकारी के अभाव में अपनी फसल की सही से देखभाल नहीं कर पाते है, इसका परिणाम यह होता है कि फसल की पैदावार में गिरावट आ जाती है।
यदि हम बात करें गेहूं की तो इसकी फसल से किसान काफी बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए किसान गेहूं की बुवाई से लेकर कटाई तक कुछ आसान से तरीकों का इस्तेमाल करके इसकी पैदावार में बढ़ा सकते हैं। इतना ही नहीं गेहूं की क्वालिटी में भी सुधार कर सकते हैं जिससे उन्हें इसके बाजार में बेहतर भाव मिल सकें।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको गेहूं की पैदावार में बढ़ोतरी को लेकर ऐसे 10 आसान तरीके बता रहे हैं जिसको अपनाकर आप काफी अच्छा उत्पादन प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं।
गेहूं की खेती (wheat cultivation) में किसान को बुवाई से लेकर कटाई तक कई बातों का ध्यान रखना होता है। इस दौरान थोड़ी सी भी लापरवाही होने से फसल की पैदावार में कमी आ सकती है। ऐसे में किसानों को गेहूं की खेती करते समय इन 10 आसान तरीकों को अपनाना चाहिए जो पैदावार बढ़ाने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं, ये 10 आसान तरीके इस प्रकार से हैं
गेहूं की खेती (wheat cultivation) में बीज का काफी महत्व होता है। इसलिए किसान को चाहिए कि वे अपने क्षेत्र के लिए अनुशंसित की गई गेंहू की किस्म का ही चयन करें, क्योंकि गेहूं की पैदावार पर क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है। ऐसे में किसानों को हमेशा अपने क्षेत्र के लिए अनुशंसित किस्मों का ही चयन करना चाहिए।
कहावत है कि जैसा बीज बोया जाएगा, वैसा ही फल प्राप्त होगा। ऐसे में किसान को गेहूं की बुवाई (wheat sowing) करते समय बीज की क्वालिटी का विशेष तौर से ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए किसान को चाहिए कि वे हमेशा प्रमाणिक बीज का ही इस्तेमाल करें। इसके लिए बीज की खरीद हमेशा सरकार की ओर से मान्यता प्राप्त दुकानों दुकानों से ही करें और बीज की खरीद का बिल अवश्य लें। वहीं यदि आप अपने द्वारा उत्पादित पिछले साल का बीज का प्रयोग कर रहे हैं तो इसकी क्वालिटी की जांच करें। इसके लिए इन बीजों का अंकुरण परीक्षण करें। यदि बीज का अंकुरण प्रतिशत 80 से 90 प्रतिशत हो तभी यह माना जाता है कि बीज की क्वालिटी (seed quality) सही है। यदि इससे कम अंकुरण प्रतिशत हो तो समझ लें कि बीज की क्वालिटी बेहतर नहीं है। ऐसे में ऐसे बीजों की बुवाई करने से बचें।
गेहूं की बेहतर पैदावार के लिए जरूरी है कि इसकी समय से बुवाई की जाए। सही समय पर गेहूं की बुवाई करने से पैदावार अच्छी मिलती है जबकि देरी से बुवाई करने पर पैदावार में कमी देखी गई है। गेहूं की बुवाई का उचित समय 15 अक्टूबर से 25 नवंबर तक होता है। यदि किसी कारण वश समय पर बुवाई नहीं कर पाते हैं तो आपको 25 नवंबर से 25 दिसंबर तक हर हाल में इसकी बुवाई का काम कर लेना चाहिए। इसमें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि देर से पकने वाली गेहूं की किस्म की बुवाई समय पर अवश्य कर देनी चाहिए अन्यथा उपज में गिरावट आ जाती है।
गेहूं की खेती में तापमान का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। गेहूं के लिए बढ़ा हुआ तापमान नुकसान दायक होता है। खासकर गेहूं के पौधों में जब दाना आना शुरू होता है। इस समय सही तापमान होना जरूरी है नहीं तो दाना कमजोर हो जाता है। यदि तापमान में बढ़ोतरी हो रही है तो सिंचाई का सहारा लेना चाहिए ताकि उत्पादन में होने वाली कमी को रोका जा सके। बता दें कि गेहूं की खेती के लिए 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तक तापमान सही माना गया है।
आज खेती में अंधाधुंध रासायनिक खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह हमारी सेहत और फसल दोनों के लिए नुकसानदाय है। रासानिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से भूमि की उर्वराशक्ति नष्ट होती है और फसल की क्वालिटी में भी गिरावट आने की संभावना रहती है। ऐसे में गेहूं की बुवाई करने से पहले खेत की मिट्टी की जांच कराएं और जरूरत के हिसाब से निर्धारित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करें जिससे बेहतर उपज मिल सके।
हर फसल में खरपतवार की समस्या रहती है। इसी प्रकार गेहूं की फसल में भी खरपतवार की समस्या बनी रहती है। खरपतवार से तात्पर्य उन अवांछनीय पौधे व घास से है जो गेहूं की फसल के आसपास उग जाते हैं जिससे गेहूं की फसल को नुकसान होता है। खरपतवार से उपज में कमी होने की संभावना बनी रहती है। ऐसे में गेहूं की खेती में खरतवार पर नियंत्रण करें, इसके लिए किसान खरपतवार नाशक केमिकल्स का प्रयोग कर सकते हैं।
धान की अपेक्षा गेहूं की फसल को कम पानी की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी बेहतर फसल के लिए 10 सेमी पानी पर्याप्त है। सामान्य तौर पर गेहूं की फसल को चार से छह सिंचाईयों की जरूरत होती है। वहीं रेतीली भूमि में छह से आठ सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके अलावा भारी दोमट भूमि में तीन से चार सिंचाई से ही काम चल जाता है। ऐसे में खेत की मिट्टी और तापमान को देखते हुए गेहूं की समय-समय पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। खास बात यह है कि गेहूं में दाना बनते समय सिंचाई अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि यह गेहूं की क्रांतिक अवस्था होती है ऐसे में गेहूं सिंचाई अवश्य करें जिससे दाना अच्छा बनाता है। सिंचाई करते समय खेत में जल भराव बिलकुल नहीं होना चाहिए, इसके लिए खेत में पानी निकाली की उचित व्यवस्था करें।
गेहूं की फसल में कई प्रकार के कीट व रोगों का प्रकोप बना रहता है। ऐसे में कीट व रोगों से फसल को बचाने के उपाय उचित समय पर करें। इसके लिए कीटनाशक का छिड़काव करें। वहीं फसल पर कीट का प्रकोप अधिक हो रहा है तो अपने जिले के कृषि विभाग के कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेकर इसकी रोकथाम के उपाय करने चाहिए।
जब गेहूं की बालियां सुनहरी व पीली पड़ने लगे और फसल की पत्तियां सूखने लगे तब समझ लेना चाहिए कि फसल कटाई के लिए तैयार है। फसल पकने के तुरंत बाद कटाई का काम कर देना चाहिए क्योंकि फसल अधिक पक जाने से दाने के छिटक कर बाहर गिरने से नुकसान की संभावना बनी रहती है। यदि गेहूं की हाथ से कटाई करनी हो तो दाने में नमी की मात्रा 25 से 30 प्रतिशत होनी चाहिए। वहीं यदि कंबाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester) से कटाई करनी हो तो कटाई के समय नमी 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। हाथ से कटाई के लिए दरातियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि मशीन से कटाई में रीपर बाइंडर मशीन (Reaper Binder Machine) का अधिक प्रयोग होता है।
गेहूं की फसल की कटाई के बाद उसे अच्छे से सूखाने के बाद अब इसकी छंटाई का काम करना चाहिए। इसमें गेहूं की फसल से घास, फूंस के कण आदि को बाहर करके साफ दाना छान कर अलग कर लेना चाहिए। अब इसे एकत्र करके साफ कंटनेरों में इसका भंडारण कर लेना चाहिए। ध्यान रहे कंटनेरों में फसल को भरने से इस बात का ध्यान रखें की दाना सूख गया है, क्योंकि नमी से कीट लगने की संभावना रहती है। ऐसे में दाना संग्रह करते समय कंटनेर में नीम की पत्तियां या गोलियां रखी जा सकती है ताकि अनाज लंबे समय तक खराब नहीं हो। वहीं यदि फसल बेचने के लिए मंडी ले जाना हो तो साफ फसल को टाट या प्लास्टिक की बोरी में इसका भर कर इसे ले जाना चाहिए।
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