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सब्जियों की खेती में अपनाएं रिले क्रॉपिंग सिस्टम, बेहतर होगी पैदावार

प्रकाशित - 16 Aug 2024

जानें, क्या है रिले क्रॉपिंग सिस्टम और इससे कितना हो सकता है लाभ

परंपरागत खेती के साथ ही किसान सब्जियों की खेती से अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं। जो किसान सब्जियों की खेती कर रहे हैं वे अपनी बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए रिले क्रॉपिंग सिस्टम (Relay Cropping System) को अपना सकते हैं। रिले क्रॉपिंग प्रणाली एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिये एक ही जमीन पर अलग-अलग सब्जियों की खेती की जा सकती है। यह खेती की ऐसी खास तकनीक है जिसको अपनाकर किसान अधिक पैदावार के साथ ही अपनी आमदनी में भी इजाफा कर सकते हैं। खास बात यह है कि इसमें अगली फसल पिछली फसल की कटाई से पहले बोई जाती है।

क्या है रिले क्रॉपिंग सिस्टम तकनीक

रिले क्रॉपिग सिस्टम प्रणाली या तकनीक में एक खेत में एक फसल लगाई जाती है, जबकि दूसरी फसल उसी खेत में बाद में लगाई जाती है ताकि पिछली फसल की बची हुई नमी और पोषक तत्वों का लाभ उठाया जा सके। इसमें पहली फसल को काटने से पहले दूसरी फसल बोई जाती है। इससे पहली फसल की नमी दूसरी फसल को मिल जाती है जिससे सिंचाई की कम आवश्यकता होती है यानी कम सिंचाई में अधिक फसलों का लाभ इस प्रणाली से लिया जा सकता है। यह प्रणाली भूमि और संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने और पैदावार में बढ़ोतरी करने में सहायक साबित हो सकती है।

रिले क्रॉपिंग सिस्टम तकनीक के फायदे

रिले क्रॉपिंग सिस्टम को अपनाने से बहुत से फायदे मिलते हैं, इनमें से कुछ लाभ इस प्रकार से हैं-

  • सब्जियों की मल्टीक्रॉपिंग खेती से अधिक उपज मिलती है।
  • मल्टीक्रॉपिंग खेती से किसान की इनकम बढ़ सकती है।
  • इस तकनीक को अपनाने से सालभर रोजगार प्राप्त किया जा सकता है यानी सालभर पैसा कमाया जा सकता है।
  • इस तकनीक को उपयोग में लेने से अधिक मात्रा में उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। उर्वरक का संतुलित मात्रा में उपयोग होता है।
  • फसल चक्र के माध्यम से मिट्टी की सेहत को बनाए रखा जा सकता है।
  • इस तकनीक से पानी की बचत के साथ ही मिट्‌टी की उर्वरता को बनाए रखा जा सकता है।
  • इस तकनीक से बेहतर उपज प्राप्त की जा सकती है, हालांकि फसल की अच्छी पैदावार किस्म का चयन, उचित बुवाई का तरीका, संसाधनों का सही उपयोग, कीट प्रबंधन, समय पर कटाई जैसी बातों पर निर्भर करती है।

इस तकनीक से किन सब्जियों की की जा सकती है खेती

मल्टीक्रॉप खेती के तहत रिले क्रॉपिंग तकनीक का इस्तेमाल कर कई प्रकार की सब्जियों की बुवाई कर सकते हैं। इसमें किस फसल को किसके साथ बोना अच्छा रहता है, इस बात की जानकारी होना जरूरी है ताकि इस तकनीक से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। इस तकनीक में किस फसल की किस फसल के साथ खेती करें इसकी जानकारी इस प्रकार से है-

ककड़ी के साथ मिर्च की खेती

मल्टीक्रॉप फार्मिंग में ककड़ी के साथ मिर्च की खेती की जा सकती है। इसमें रिले क्रॉपिंग तकनीक का इस्तेमाल करके नवंबर से मार्च और फरवरी से अक्टूबर में दो बार बुवाई की जाती है। मिर्च फरवरी में मेड़ों पर बोई जाती है।

मटर के साथ लौकी की खेती

इस तकनीक के तहत नवंबर से अप्रैल और फरवरी से अक्टूबर के बीच खेती की जाती है। इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि सर्दियों में लौकी की नर्सरी प्लास्टिक की थैलियों में तैयार करनी चाहिए और फरवरी में तैयार क्यारियों में दोनों तरफ 2.5 मीटर और 45 सेमी की दूरी पर इसकी रोपाई की जाती है।

ककड़ी और स्पंज लौकी की खेती

इस तकनीक से ककड़ी और स्पंज लौकी की खेती नवंबर से अप्रैल में की जाती है। इसके अलावा इसकी खेती मार्च से अक्टूबर के बीच में भी की जा सकती है। यहां इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मार्च में ककड़ी में तैयार जल मेड़ों के वैकल्पिक किनारे पर 3 मीटर की दूरी पर स्पंज लौकी की बुवाई या रोपाई की जानी चाहिए।

आलू-प्याज-हरी खाद की खेती

इनकी खेती सितंबर से दिसंबर, दिसंबर और जून-जुलाई में कर सकते हैं।

आलू-पछेती फूलगोभी-मिर्च की खेती

इनकी खेती अक्टूबर से दिसंबर और दिसंबर से मार्च तथा मार्च से अक्टूबर में की जा सकती है।

इन फसलों की एक साथ नहीं करें बुवाई

कई ऐसी फसलें होती है जिनकी एक साथ बुवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह समान प्रकार की सब्जियां कीटों या रोगों के प्रति संवेदनशील होती है। इसके एक साथ बाने से फसल को कीट व रोग से हानि होने की संभावना अधिक रहती है। उदारहण के लिए टमाटर और मिर्च, इन्हें फसल प्रणाली में एक साथ या एक के पीछे एक नहीं बोना जाना चाहिए।

इन फसलों को एक साथ लगाना होता है लाभकारी

हमेशा गहरी जड़ वाली सब्जियों के बाद उथली जड़ वाली सब्जियां लगानी चाहिए ताकि वे मिट्टी की सभी परतों से पोषक तत्व ग्रहण कर सकें। उदाहरण के लिए मटर और सेम जैसी फलियां लगाना काफी लाभकारी हो सकता है क्योंकि ये फसलें वातावरण से नाइट्रोजन ग्रहण करती है और गैर फलीदार फसलों के लाभ के लिए इसे मिट्टी में संग्रहित करती हैं।

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