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सोयाबीन, मूंगफली, कुसुम व तिल की अधिक पैदावार देने वाली 7 नई किस्में लाॅन्च

प्रकाशित - 13 Sep 2024

जानें, क्या है इनकी खासियत और इनसे कितनी मिल सकती है पैदावार

कृषि वैज्ञानिकों की ओर से किसानों के लिए विभिन्न फसलों की नई-नई किस्में विकसित की जाती है जो अधिक पैदावार देने के साथ ही कीट-रोगों के प्रति सहष्णु हो। इसी क्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) नई दिल्ली ने तिलहन फसलों की 7 नई किस्में लांन्च की है जो कम नुकसान के साथ ही अधिक पैदावार देने में समक्ष हैं। इन तिलहन फसलों में सोयाबीन, मूंगफली, कुसुम व तिल की 7 किस्में विकसित की है जिन्हें किसान अपने प्रदेश की जलवायु के हिसाब से चुन सकते हैं। 

सोयाबीन की एआरसी 197 किस्म

आईसीएआर- भारतीय अनुसंधान संस्थान, इंदौर मध्यप्रदेश द्वारा सोयाबीन की 2 किस्मों को स्पॉन्सर किया गया है। इसमें पहली किस्म को विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए अनुशंसित किया गया है। इस किस्म की खास बात यह है कि सोयाबीन की यह किस्म खरीफ मौसम में वर्षा आधारित खेती के लिए उपयुक्त पाई गई है। यह किस्म 112 दिन की अवधि में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म गैर- टूटने वाली, रहने के प्रति सहनशील, कीट व तना मक्खी कीट के प्रति प्रतिरोधी, सेमीलूपर के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी व स्पोडोप्टेरा लिटुरा के प्रति मध्यम प्रतिरोधी किस्म है। यदि इस किस्म की पैदावार की बात करें इस किस्म से 16.24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।  

सोयाबीन की एनआरसी 149 किस्म

आईसीएआर- भारतीय अनुसंधान संस्थान, इंदौर मध्यप्रदेश द्वारा सोयाबीन की अन्य एक किस्म एनआरसी 149 को भी स्पॉन्सर किया है। इस किस्म को दिल्ली, उत्तर प्रदेश के उत्तर पूर्वी मैदानी इलाके, पंजाब, हरियाणा, उत्तरखंड और पूर्वी बिहार के मैदानी इलाकों के लिए अनुशंसित किया है। यह भी वर्षा आधारित खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त किस्म है। यह किस्म 127 दिन की अवधि में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में कई खूबियां हैं। जैसे- न टूटने वाला, न रुकने वाला, स्टेमफ्लाई, डिफोलिएटर्स, सफेद मक्खी, वाईएमवी, पॉड ब्लाइट, राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी किस्म है। सोयाबीन की इस किस्म से 24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

मूंगफली की ‘Girnar 6 (NRCGCS 637)’ किस्म

मूंगफली की ‘Girnar 6 (NRCGCS 637)’ किस्म को आईसीएआर-मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ गुजरात द्वारा स्पॉन्सर किया गया है। इस किस्म को विशेष रूप से राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश राज्य के लिए अनुसंशित किया गया है। यह किस्म 123 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 51 प्रतिशत और इसमें प्रोटीन की मात्रा 28 प्रतिशत है। यह किस्म सूखे के प्रति मध्यम रूप से सहनशील है और प्रारंभिक पत्ती के धब्बे, जंग, अल्टरनेरिया ब्लाइट, कॉलर रोट, तना सड़न, सूखी जड़ सड़न के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। इस किस्म में लीफ हॉपर, थ्रिप्स, स्पोडोप्टेरा की घटना कम होती है। यह किस्म समय पर बोई गई खरीफ सीजन के लिए उपयुक्त है। इस किस्म से 30.30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

मूंगफली की ‘TCGS 1707 आईसीएआर कोणार्क) स्पेनिश बंच’ किस्म

मूंगफली की ‘TCGS 1707 आईसीएआर कोणार्क) स्पेनिश बंच’ किस्म को आईसीएआर-एआईसीआरपी, आचार्य एन.जी. रंगा कृषि विश्वविद्यालय, तिरूपति, आंध्रप्रदेश द्वारा स्पॉन्सर किया गया है। इस किस्म को ओडिशा और पश्चिम बंगाल के लिए अनुशंसित किया गया है। मूंगफली की यह किस्म भी समय पर बोई खरीफ सीजन के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 110 से 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में 49 प्रतिशत तेल की मात्रा और 29 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। यह किस्म पर्ण रोगों एलएलएस और के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। जंग, मिट्‌टी जनित रोग कॉलर सड़न, तना सड़न और सूखी जड़ सड़न, चूसने वाले कीटों (एलएच और थ्रिप्स) के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। इस किस्म से मूंगफली की 24.76 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

तिल की ‘तंजिला (CUMS-09A)’ किस्म

तिल की ‘तंजिला (CUMS-09A)’ किस्म को तिलहन पर आईसीएआर-एआईसीआरपी, कृषि विज्ञान संस्थान, कलकत्ता विश्वविद्यालय, कोलकाता, पश्चिम बंगाल द्वारा स्पॉन्सर किया गया है। यह किस्म 91 दिन की अवधि में तैयार हो जाती है। खास बात यह है कि तिल की यह किस्म जल्दी या देर से बोई जाने वाली सिंचित, ग्रीष्मकालीन खेती के लिए उपयुक्त है। इस किस्म में तेल की मात्रा 46.17 है। यह किस्म जड़ सड़न, फाइलोडी और पाउडरयुक्त फफूंदी जैसी बीमारियों के प्रति उच्च स्तर पर प्रतिरोधी है। तिल की इस किस्म की बीज उपज 963 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर से 1147.7 किलोग्राम प्रति हैक्टैयर तक मिल सकती है। इसमें तेल उपज 438.5 किग्रा/हेक्टेयर से 558.0 किग्रा/हेक्टेयर तक है। इस किस्म में तेल की मात्रा 46.17% पाई गई है। यह किस्म जड़ सड़न, फाइलोडी और पाउडरयुक्त फफूंदी जैसी बीमारियों के प्रति उच्च स्तर की प्रतिरोधक क्षमता रखती है।  

कुसुम की ‘ISF-123-sel-15’ किस्म

कुसुम की इस किस्म को आईसीएआर- भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद, तेलंगाना द्वारा स्पॉन्सर किया गया है। इसमें पहली नई किस्म ‘ISF-123-sel-15’ है। इस किस्म को विशेष रूप से महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना राज्य के लिए अनुशंसित किया गया है। इस किस्म की खास खात यह है कि यह किस्म देर से बोई गई वर्षा आधारित स्थितियों के लिए उपयुक्त पाई गई है। यह किस्म 127 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म में उच्च तेल सामग्री 34.3 प्रतिशत है। यह किस्म विल्ट के प्रति प्रतिरोधी, अत्यधिक संवेदनशील एफिड संक्रमण के प्रति मध्यम सहिष्णु है। सोयाबीन की इस किस्म से करीब 16.31 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

कुसुम की ‘ISF-300’ किस्म  

कुसुम की ‘ISF-300’ किस्म को भी आईसीएआर- भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद, तेलंगाना द्वारा स्पॉन्सर किया गया है। यह कुसुम की एक नई वैरायटी है। यह किस्म समय पर बोई गई वर्षा आधारित और सिंचित दोनों स्थितियों में बेहतर पैदावार देती है। यह किस्म 134 दिन की अवधि में तैयार हो जाती है। इसमें तेल की मात्रा 38.2 प्रतिशत है। यह किस्म फ्यूजेरियम विल्ट के प्रति प्रतिरोधी है। कुसुम की इस किस्म से 17.96 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

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