प्रकाशित - 17 Nov 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
गेहूं की बुवाई का समय चल रहा है। इसे देखते हुए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार की ओर से किसानों के लिए गेहूं की खेती (Wheat Cultivation) से संबंधित उपयोगी सलाह जारी की गई है। इसमें बताया गया है कि कैसे किसान गेहूं की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए उचित किस्म, वैज्ञानिक सस्य क्रियाएं और उचित खाद की मात्रा का प्रयोग करके कम खर्च में अधिक पैदावार ले सकते हैं। गेहूं की अगेती बुवाई का समय जा चुका है। ऐसे में किसान समय पर गेहूं की बुवाई नवंबर के तीसरे सप्ताह तक कर सकते हैं यानी किसान नवंबर में 25 नवंबर तक गेहूं की बुवाई का काम पूरा कर सकते हैं।
सिंचित क्षेत्रों में समय से बुवाई के लिए किसान गेहूं की उन्नत किस्में डब्ल्यूएच 1105, डब्ल्यूएच 1184, डीबीडब्ल्यू 222, डीबीडब्ल्यूएच 221, एचडी 3086, पीबीडब्ल्यू 826 और एचडी 3386 आदि किस्मों की बुवाई कर सकते हैं। वहीं किसान अपने क्षेत्र के अनुसार कृषि विभाग द्वारा अनुसंशित की गई गेहूं की अन्य किस्मों का चयन कर सकते हैं।
विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गई सलाह के मुताबिक गेहूं की बुवाई उर्वरक ड्रिल मशीन (Fertilizer Drill Machine) से करनी चाहिए। बुवाई के दौरान बीज की गहराई करीब 5 सेंटीमीटर और कतार से कतार की दूरी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। किसान समय से गेहूं की बुवाई के लिए प्रति एकड़ 40 किलोग्राम बीज का प्रयोग कर सकते हैं।
गेहूं की फसल को भूमि जनित रोगों से बचाने के लिए उन्हें उपचारित करना आवश्यक हो जाता है। ऐसे गेहूं में दीमक से बचाव के लिए 60 मिली क्लोरपाईरीफास 20 ईसी या 200 मिली ईथियोन 50 ईसी (फासमाइट 50 प्रतिशत) 60 मिली के पानी में मिलाकर 2 लीटर घोल बनाकर 40 किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिए। वहीं खुली कांगियारी व पत्तियों की कांगियारी से बचाव के लिए वीटावैक्स या बविस्टीन 2 ग्राम या टैबुकोनाजोल (रक्लिस 2 डीसी) एक ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से सूखा उपचारित किया जाना चाहिए। जैविक खाद उपचार के लिए 200 मिली एजोटोबैक्टर व 200 मिली फॉस्फोरस टीका (पी.एस.बी) प्रति 40 किलोग्राम बीज के लिए प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा गेहूं की फसल को मोल्या रोग से बचाने के लिए सूत्र कृमि ग्रस्त खेत में सरसों, चना, मेथी, सब्जी वाली फसलें आदि को फसल चक्र के रूप में उगाना चाहिए। मोल्या बीमारी प्रभावित खेतों में गेहूं की सूख में बिजाई करके तुरंत सिंचाई करनी चाहिए। अधिक संक्रमण वाले क्षेत्र में कार्बोफ्यूरान 3 जी (13 किलोग्राम) प्रति एकड़ की दर से बिजाई के समय उपयोग करना चाहिए। एजोटोबैक्टर क्रोकोम (एचटी-54) या एजोटीका का 50 मिली प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से उपचार करना चाहिए। इसके बाद बीज को छाया में सुखाने के बाद बुवाई करनी चाहिए।
किसान को समय से बुवाई एवं सिंचित दशा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश की मात्रा क्रमश: 60:24:12 के किलोगाम के अनुपात में प्रति एकड़ के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए किसान को 50 किलोग्राम डीएपी और 110 किलोग्राम यूरिया या 150 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 130 किलोग्राम यूरिया एवं 20 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ डालना चाहिए।
गेहूं की फसल को 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी पहली सिंचाई बुवाई के 20 से 25 दिन के बाद शिखर जड़ निकलने की अवस्था में करना बहुत जरूरी होता है। इसकी दूसरी सिंचाई बुवाई के 40 से 45 दिनों के बाद कल्ले निकलने की अवस्था में की जाती है। इसकी तीसरी सिंचाई 65 से 70 दिनों के बाद जब तने में गांठ पड़ने लगे तब करनी चाहिए। इसकी चौथी सिंचाई बुवाई के 90 से 95 दिनों बाद फूल आने की अवस्था में करनी चाहिए। इसकी पांचवी सिंचाई बुवाई के 105 से 110 दिनों के बाद जब दानों में दूध पड़न लगे तब करनी चाहिए और इसकी छठी और अंतिम सिंचाई बुवाई के 120 से 125 दिनों के बाद जब गेहूं का दाना सख्त हो रहा हो, उस समय की जानी चाहिए।
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