प्रकाशित - 15 Apr 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
पिछले कुछ सालों में पशुपालन के प्रति क्रेज तेजी से बढ़ा है। भारतीय किसान खेती के अलावा पशुपालन को अपनाकर अपनी आय को बढ़ा रहे हैं। पशुपालन में किसान दूधारू पशु गाय, भैंस, भेड़, बकरी का पालन करना पसंद करते हैं। इनमें गाय व भैंस का पालन करने में किसान को अधिक लागत खर्च करनी पड़ती है क्योंकि अच्छी नस्ल की गाय व भैंस बेहद महंगी कीमत पर मिलती है। साथ ही उनके रखरखाव का खर्च भी ज्यादा होता है। वहीं बकरी व भेड़ का पालन कुछ हद तक सस्ता है। किसान कम जगह व कम लागत में बकरी व भेड़ का पालन शुरू कर सकते हैं। जहां भेड़ का पालन ऊन के लिए किया जाता है, वहीं बकरी का पालन दूध व मांस के लिए किया जाता है। बकरी के दूध के फायदे को देखते हुए इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। स्वास्थ्य के प्रति सचेत आमजन बकरी के दूध को अधिक पसंद कर रहा है। बकरी पालन से कई किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। साथ ही बकरी पालन पर आसानी से लोन भी मिल जाता है। ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में आपको बकरी की टॉप 3 नस्ल और बकरी पालन लोन की जानकारी दे रहे हैं तो बने रहें हमारे साथ।
भारत में बकरी की करीब 50 नस्ल मौजूद है। इन 50 नस्लों में से कुछ बकरियों का उपयोग व्यवसायिक स्तर पर किया जाता है। ऐसे में किसानों / पशुपालकों को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि बकरी की कौनसी नस्ल उन्हें अधिक मुनाफा दे सकती है। यहां ज्यादा मुनाफा देने वाली बकरी की टॉप 3 नस्ल की विशेषताएं बताई गई है।
उस्मानाबादी बकरी का पालन दूध और मीट के लिए किया जाता है। इन बकरियों के पालन पर अधिक खर्च नहीं करना पड़ता है। ये बकरियां साल में सिर्फ चार माह दूध देती है। दूध की मात्रा 0.5 लीटर से 1.5 लीटर प्रतिदिन तक होती है। साल में दो बार दो-दो बच्चों को जन्म देने वाली उस्मानाबादी बकरी की रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य बकरी नस्लों से ज्यादा होती है। बकरी की इस नस्ल में दो बच्चों को जन्म देने की संभावना 47 फीसदी तक होती है। उस्मानाबादी नस्ल के 73 प्रतिशत बकरे-बकरी पूरी तरह से काले होते हैं। शेष 27 फीसदी सफेद और भूरे रंग के होते हैं। यह नस्ल मुख्य रूप से महाराष्ट्र के उस्मानाबाद तुलजापुर, अहमदनगर, उदगीर, लातूर, सोलनपुर और परभणी के अलावा तेलंगाना, आंध्र प्रदेश जैसे कई अन्य प्रदेशों में भी पाली जाती है
सिरोही नस्ल की बकरी अन्य नस्ल के मुकाबले ज्यादा दूध देती है। साथ ही इसका दूध सुपाच्य और ताकतवर होता है जो लोग भैंस का दूध नहीं पचा पाते हैं उन्हें सिरोही नस्ल का दूध पीने की सलाह दी जाती है। सिरोही नस्ल की बकरी पहली बार 19 या 20 माह में बच्चों को जन्म देती है। यह एक साथ दो बच्चे यानी एक साल में 4 बच्चे और रोजाना एक से दो लीटर दूध देने के कारण काफी लोकप्रिय है। दूध और मांस उत्पादन से ज्यादा कमाई की वजह से सिरोही नस्ल देशभर में प्रसिद्ध है। सिरोही नस्ल की बकरी राजस्थान के अलावा, उत्तरप्रदेश और गुजरात में भी पाई जाती है। इस नस्ल के बकरे और बकरी का शरीर मध्यम आकार का होता है जहां बकरे का वजन 50 किलोग्राम व बकरी का वजन 23 किलोग्राम के आसपास होता है। सिरोही नस्ल की अधिकांश बकरियां भूरे रंग की होती है। इस नस्ल की बकरी का दुग्धकाल करीब 175 दिन होता है।
जमुनापारी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से उत्तरप्रदेश के इटावा जिले में पाई जाती है। इसके अलावा यमुना नदी के आसपास के क्षेत्रों, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश और बिहार में बड़ी संख्या में पाली जाती है। बकरी का यह नस्ल अपने ज्यादा मांस और दूध से पशुपालकों को ज्यादा मुनाफा देती है। जमुनापारी बकरी प्रतिदिन डेढ़ से दो लीटर तक दूध देती है। इस नस्ल की बकरी की ऊंचाई, लंबाई व वजन अन्य नस्ल के मुकाबले अधिक होता है। यह बकरी अपने पूरे जीवनकाल में 12 से 14 बच्चों को जन्म देती है। जमुनापारी नस्ल की बकरी सफेद रंग की होती है। पीठ पर लंबे बाल और माथे पर सींग छोटे होते हैं। इस बकरी का दूध डेंगू सहित कई बीमारियों में मरीजों के लिए रामबाण है। विश्वभर में जमुनापारी बकरियों की डिमांड को देखते हुए भारत सरकार ने इसे विश्व प्रसिद्ध प्रजाति का दर्जा दिया है। जमुनापारी बकरी की मांग मलेशिया, वियतनाम, इंडोनेशिया, श्रीलंका, भूटान, बांग्लादेश आदि देशों में सबसे ज्यादा है।
अगर आप बकरी पालन करना चाहते हैं तो आपको आसानी से लोन मिल जाएगा। केंद्र सरकार राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत बकरी पालन और भेड़ पालन को प्रोत्साहित कर रही है। पशुपालन विभाग नेशनल लाइव स्टॉक मिशन पोर्टल के माध्यम से किसानों को सब्सिडी और सस्ती दर पर लोन की सुविधा देता है। इसके अलावा राज्य सरकार भी विभिन्न योजनाओं से पशुपालको को बकरी पालन के लिए सबसे सस्ता लोन प्रदान करती है। अगर आप बकरी पालन के लिए सरकारी योजनाओं की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो https://www.nlm.udyamimitra.in/ पर विजिट कर सकते हैं।
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