प्रकाशित - 15 Jan 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
सर्दियों में मनुष्य की तरह ही दुधारू पशुओं को अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होती है। ऐसे में गाय, भैंस जैसे दुधारू पशुओं को विशेष आहार दिए जाने की जरूरत होती है। दुधारू पशुओं को आहार में आप कई प्रकार की चीजों को शामिल करते हैं। लेकिन कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो एक ऐसा हरा चारा है जो पशुओं की सेहत को सर्दियों में बेहतर बनाए रखता है जिससे पशु की दूध देने की मात्रा भी बढ़ती है।
बता दें कि सर्दियों के मौसम में पशुओं के बीमार पड़ने का खतरा बढ़ जाता है जिसका सीधा असर दूध के उत्पादन पर पड़ता है। पशु बीमार होने की दशा में कम दूध देना शुरू कर देते हैँ जिससे किसान को नुकसान होता है। ऐसे में किसान को चाहिए कि इस मौसम में पशुओं का विशेष ध्यान रखें और उनके आहार में पौष्टिकता से भरपूर चारे का इस्तेमाल करें जिससे उनकी दूध देने की क्षमता पहले की जैसी बनी रहे।
पशुओं के लिए एक बहुत ही पौष्टिक चारा है जिसे उनका ड्राई फ्रूट माना जाता है। इसके उत्पादन के लिए सरकार की ओर से भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक दुधारू पशुओं के लिए सबसे अच्छा चारा अजोला माना जाता है। इस चारे को पशु बहुत ही चाव के साथ खाते हैं। इस चारे की खास बात यह है कि यह चारा पशुओं की सेहत सही रखने के साथ ही उनकी कमजोरी को भी दूर करता है जिससे पशु स्वस्थ रहता है और दूध उत्पादन भी बेहतर होता है।
यह एक जलीय फर्न होता है। इसे किसान आसानी से उगा सकते हैं। आम तौर पर अजोला को धान के खेत या उथले पानी में उगाया जाता है। यह तेजी से बढ़ने वाली घास है। अजोला एक जैव उर्वरक की तरह होता है। इससे एक ओर धान की उपज बढ़ाती है तो दूसरी हो पशुओं के लिए पौष्टिक चारा तैयार हो जाता है। अजोला पशुओं के लिए पौष्टिक आहार है जिसे पशु खाना पसंद करते हैं। यह चारा खिलाने से पशुओें के दूध देने की क्षमता बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस अजोला में 25 प्रतिशत से अधिक प्रोटीन पाया गया है जो पशुओं के लिए सब तरीके से फायदेमंद है।
अजोला अन्य पशु आहार की अपेक्षा काफी सस्ता पड़ता है। यह चारा पशुओं के लिए सुपाच्य व पौष्टिक आहार है। इस चारे में बहुत सारी विशेषताएं पाई जाती है जिसके कारण यह पशुओं के लिए काफी लाभकारी माना गया है। इसकी प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार से हैं-
पशुओं को अजोला खिलाने से उनके दूध में वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं की तुलना में अधिक पाई जाती है। यह चारा पशुओं में बांझपन की समस्या को भी दूर करने में सहायक है।
पशुओं में पेशाब में खून आने की समस्या को भी यह चारा दूर करता है। क्योंकि इसमें फॉस्फोरस की मात्र पाई जाती है जिससे पशुओं में फॉसफोरस की कमी दूर होती है। बता दें कि पशु के शरीर में फॉस्फोरस की कमी के कारण ही उसके पेशाब में खून आने जैसी समस्या उत्पन्न होती है।
अजोला में प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा कैरोटीन पाया जाता है। इसके अलावा इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, कॉपर, मैग्नीशियम जैसे खनिज पर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं जो पशु के सेहत को दुरूस्त रखने में सहायक है।
दुधारू पशुओं पर किए गए प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि जब पशुओं को उनके आहार के साथ 1.5 से 2 किलोग्राम तक अजोला प्रतिदिन दिया गया तो उनके दूध के उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ोतरी देखी गई। अजोला में कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा बहुत कम पाई जाती है जो इसे उत्तम पशु आहार बनाता है। इसे गाय, भैंस के अलावा भेड़, बकरी, मुगियों को भी खिलाया जा सकता है। यह उनके लिए भी एक आदर्श चारा माना गया है।
अजोला को नमी वाली जगह पर आसानी से उगाया जा सकता है। अजोला को उगाने के लिए भूमि की सहत से 5 से 10 सेंटीमीटर ऊंचे जल स्तर की आवश्यकता होती है। इसके विकास के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना गया है। इसे चावल के खेत में आसानी से उगाया जा सकता है। क्योंकि चावल के खेत में पानी भरा रहता है और अजोला पानी में ही उगाता है। ऐसे में चावल के खेत में अजोला उगाना धान की फसल के लिए भी अच्छा रहता है और इसके उत्पादन के लिए भी बेहतर है।
अजोला का प्रयोग मुख्यत: धान की खेती में किया जा सकता है। इसमें सभी किस्मों का प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन इसकी सबसे अच्छी किस्म Junwer 29 मानी जाती है। इससे अधिक लाभ मिलता है। धान की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद इसे खेतों में डाल सकते हैं। एक बार डालने के बाद आसानी से यह पूर खेत में फैल जाता है। यह धान के लिए हरी खाद काम करता है जो धान का उत्पादन बढ़ाने में सहायक होती है।
अजोला चारे को किसान किसी भी खाली जगह पर उगा सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले एक छाया छायादार जगह का चयन करना होता है। यह जगह 60 फुट लंबी, 10 फीट चौड़ी होनी चाहिए। अब इस जगह पर दो फीट गहरी क्यारियां तैयार तैयार कर लें। इन क्यारियों में कम से कम 120 गेज की सिलपुटिन शीट लगाई जाती है। इसके बाद क्यारी में करीब 100 किलोग्राम उपजाऊ मिट्टी बिछा देनी चाहिए। इसके बाद 15 लीटर पानी में 5 से 7 किलोग्राम पुराने गोबर को मिलाकर घोल बना लें। क्यारी को 500 लीटर पानी से भर दें। इसकी गहराई 12 सेंटीमीटर से 15 सेंटीमीटर तक रखनी चाहिए। उसके बाद अजोला की बुवाई शुरू करनी चाहिए।
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