रेशम कीट पालन : सिल्क उत्पादन से होगी अच्छी आमदनी, सरकार से भी मिलेगी मदद

Share Product Published - 15 Oct 2021 by Tractor Junction

रेशम कीट पालन : सिल्क उत्पादन से होगी अच्छी आमदनी, सरकार से भी मिलेगी मदद

जानें, क्या है रेशम कीट पालन और इससे होने वाले लाभ

आजकल खेती में नये-नये अनुसंधान हो रहे  हैं। कृषि अनुसंधान केंद्रों और अन्य संबंधित विभागों के कृषि विशेषज्ञों की ओर से किसानों को ऐसी फसलों के उत्पादन के लिए प्रेरित किया जा रहा है जो उन्हे अधिक से अधिक मुनाफा दे सकें। दरअसल कृषि अब एक उद्योग बन चुका है। भारत की मिट्टी खेतों में सोना उगलती है। अब धान और गेहूं की खेती तक ही किसान संतुष्ट नहीं हैं। अधिक आय के लिए किसानों को पशुपालन, मछली पालन, मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट सहित कितने ही ऐसे कार्य हैं जिन्हे कम लागत और सरकारी अनुदान से शुरू किया जा सकता है। इससे किसान एक एकड़ भूमि में डेढ़ लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।  यहां किसानों को सिल्क प्रोडक्शन के लिए रेशम कीट पालन के बारे में संपूर्ण जानकारी दी जा रही है। 

कैसे होती रेशम की खेती

यहां आपको बता दें कि रेशम की खेती सुनने में भले ही अटपटी बात लगती हो लेकिन यह सच है कि प्राकृतिक रेशम कीटों द्वारा ही उत्पादित किया जाता है। इसके लिए आपको सिल्क वर्म यानि रेशम के कीट पालने पड़ेंगे। ये रेशम के कीट कैसे करेंगे सिल्क का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन? इसके लिए मल्बरी यानि शहतूत के पौधों को उगाया जाता है। जब इन पौधों के पत्तों को खाकर सिल्क वर्म  अपनी लार से रेशम बनाते हैं। एक एकड़ भूमि में एक बार रेशम की खेती करने से 500 किलोग्राम रेशम के कीड़ों का उत्पादन होता है।  यहां  आपको  रोचक बात बताते हैं कि रेशम के कीटों की उम्र दो से तीन दिन की होती है। मादा कीट करीब 200 से 300 अंडे देती है। 10 दिन में अंडे लार्वा निकलता है जो अपने मुंह से तरल प्रोटीन का स्त्राव करता है। वायु से संपर्क में आने पर यह कठोर होकर धागे का रूप ले लेते हैं। कीड़े के चारों ओर एक गोल घेरा बन जाता है इसे ककून कहते हैं। गर्म पानी में डालने पर यह कीड़ा मर जाता है। इस ककून का उपयोग रेशम बनाने में किया जाता है। कीड़ों को शहतूत की पत्तियों पर पाला जाता है। 

रेशम कीट पालन से जुड़े हैं भारत के 60 लाख किसान

बता दें कि भारत में रेशम कीट पालन से लाखों परिवार जुड़़े हुए हैं और इन परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो चुकी है। रेशम कीट पालन खेती-बाड़ी की श्रेणी में ही माना जाता है। चाइना के बाद भारत रेशम उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। भारत में हर किस्म का रेशम पैदा होता है। भारत के विभिन्न राज्यों में करीब 60 लाख लोग रेशम कीट पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।  

ये सरकारी संस्थान देते हैं सिल्क वर्म पालन को बढ़ावा 

भारत में केंद्रीय रेशम रिसर्च सेंटर बहरामपुर में साल 1943 में बनाया गया था। इसके बाद रेशम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1949 में रेशम बोर्ड की स्थापना की गई। मेघालय में केंद्रीय इरी अनुसंधान संस्थान और रांची में केंद्रीय टसर अनुसंधान प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई। यहां से पूरे रेशम कीट पालन संबंधी प्रशिक्षण आदि के बारे में जानकारी ली जा सकती है। वहीं भारत सरकार रेशम कीट पालन की ट्रेनिंग कराने के लिए आर्थिक मदद देती है। इसके अलावा सरकार रेशम कीट पालन से जुड़ा साजो-सामान रेशम कीट के अंडे, कीटों से तैयार कोया को बाजार मुहैया करवाने आदि में मदद करती है। 

तीन तरह से होती है रेशम की खेती 

यहां बता दें कि भारत में रेशम की खेती तीन प्रकार से की जाती है। इनमें पहली है मलबेरी खेती, दूसरी टसर खेती और तीसरी है ऐरी खेती। रेशम एक कीट के प्रोटीन से बना रेशा है। बढिया रेशम शहतूत और अर्जुन के पत्तों पर कीट पालन से होता है। शहतूत के पत्ते खाकर जो कीट रेशम बनाते हैं उसे मलबरी रेशम कहा जाता है। भारत में मलबरी रेशम का उत्पादन कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू -कश्मीर और पश्चिम बंगाल में किया जाता है। बिना शहतूत वाले रेशम का उत्पादन झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिसा, उत्तरप्रदेश और पूर्वी राज्यों में होता है। यहां जानकारी के लिए बता दें कि  केंद्र सरकार रेशम कीट पालन के लिए कई योजनाओं के तहत सब्सिडी प्रदान करती है। रेशम कीट पालन के बारे में ज्यादा जानकारी भारत सरकार की वेबसाइट के इस लिंक से हासिल कर सकते हैं। https://www.india.xn--gv-jiay.in/hi/tàæpics/agriculture/sericulture

एमपी सरकार सिल्क वर्म के लिए देती है किसानों को कर्ज 

यहां बता दें कि मध्यप्रदेश सरकार की ओर से भी रेशम कीट पालन के लिए किसानों को आसान किश्तों में कर्ज दिया जाता है। रेशम कीट पालन में कैरियर बनाने के लिए कई कॉलेज और विश्वविद्यालय इससे संबंधित डिग्री और डिप्लोमा कोर्स कराते हैं। सेरिकल्चर से संबंधित पढ़ाई कर किसान परिवारों के छात्र अपना भविष्य भी तय कर सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस तरह की सुविधा सेंट्रल सेरीकल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, मैसूर, सेंट्रल सेरिकल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यृट बहरामपुर, सैम हिग्नीबॉटम इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइसेज सहित ओडिसा, जम्मू, नई दिल्ली में भी इस तरह के संस्थान हैं। 

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