Published - 07 Oct 2020
ट्रैक्टर जंक्शन में किसान भाइयों का एक बार फिर स्वागत है। आज हम आपको मोती की खेती से कमाई संबंधित सभी जानकारी देंगे। देशभर में किसान पारंपरिक खेती के अलावा अन्य विकल्पों में भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं और अपनी कमाई का जरिया बढ़ा रहे हैं। देश का किसान मोती की खेती से भी अपनी आय बढ़ा सकते हैं। मोती की खेती के लिए सरकार की ओर से ट्रेनिंग भी दी जाती है। साथ ही कई बैंकों की ओर से मोती की खेती के लिए आसान शर्तों पर लोन उपलब्ध कराया जाता है। तो आइए जानते हैं मोती की खेती के बारे में संपूर्ण जानकारी।
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यहां पर हम आपको मोती की खेती के मौसम, आवश्यक जगह, लागत, ट्रेनिंग सेंटर व बाजार में मोतियों की बिक्री व कीमत के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
मोती की खेती से कम लागत और मेहनत में अधिक मुनाफा मिलने की संभावना है, इसलिए किसानों का रूझान मोती की खेती तरफ भी बढ़ा है। मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल मौसम शरद ऋतु यानि अक्टूबर से दिसंबर तक का महीना माना गया है।
मोती की खेती उसी प्रकार से की जाती है जैसे मोती प्राकृतिक रूप से तैयार होता है। किसान भाई अपने खेत या घर के आसपास छोटी जगह पर मोती की खेती कर सकते हैं। मोती की खेती के लिए 500 वर्गफीट का तालाब होना चाहिए। इस तालाब में 100 सीप पालकर मोती का उत्पादन शुरू किया जा सकता है।
किसान भाई 500 वर्गफीट के तालाब में 100 सीप पालकर मोती का उत्पादन शुरू कर सकते हैं। बाजार में सीप की कीमत 15 से 25 रुपए प्रति नग होती है। वहीं तालाब बनाने पर करीब 15 से 20 हजार रुपए का खर्चा आता है। इसके अलावा वाटर ट्रीटमेंट और उपकरणों पर भी 5 हजार रुपए तक का खर्चा आता है।
मोती की खेती शुरू करने के लिए सबसे पहले तालाब या नदी आदि जगहों से सीपों को इकट्ठा किया जाता है। इसके अलावा सीपों को बाजार से भी खरीदा जा सकता है। सीप आप सरकारी संस्थानों से या मछुआरों से ले सकते हैं। सबसे पहले इन सीपों को खुले पानी में डाला जाता है। फिर 2 से 3 दिन बाद इन्हें निकाला जाता है। ऐसा करने से सीप के ऊपर का कवच और उसकी मांसपेशियां नरम हो जाती हैं। इनमें मामूली सर्जरी के माध्यम से उसकी सतह पर 2 से 3 एमएम का छेद किया जाता है। इसके बाद इस छेद में से रेत का एक छोटा सा कण डाला दिया जाता है। इस तरह से सीप में रेत का कण डाला जाता है, तो सीप में चुभन होती है और सीप अपने अंदर से निकलने वाला पदार्थ छोडऩा शुरू कर देता है। इसके बाद 2 से 3 सीप को एक नायलॉन के बैग में रखकर तालाब में बांस या किसी पाईप के सहारे छोड़ा जाता है। बाद में इस सीप से 15 से 20 महीने के बाद मोती तैयार हो जाता है। अब कवच को तोडक़र मोती निकाला जाता है।
भारत में मोती तैयार करने की तीन विधियां ज्यादा प्रचलित हैं। इनमें केवीटी, गोनट और मेंटलटीसू शामिल है। केवीटी में सीप के अंदर ऑपरेशन के जरिए फारेन बॉडी डालकर मोती तैयार किया जाता है। इसका इस्तेमाल अंगूठी और लॉकेट बनाने में होता है। चमकदार होने के कारण एक मोती की कीमत हजारों रुपए में होती है।
गोनट में प्राकृतिक रूप से गोल आकार का मोती तैयार होता है। मोती चमकदार व सुंदर होता है। एक मोती की कीमत आकार व चमक के अनुसार 1 हजार से 50 हजार रुपए तक होती है। मेंटलटीस पद्धति में सीप के अंदर सीप की बॉडी का हिस्सा ही डाला जाता है। इस मोती का उपयोग खाने के पदार्थों जैसे मोती भस्म, च्यवनप्राश व टॉनिक बनाने में होता है। बाजार में इसकी सबसे ज्यादा मांग है।
किसान भाई मोती की खेती से अच्छा लाभ कमा सकते हैं। एक सीप से एक मोती १५ से 20 महीने बाद तैयार होता है। वर्तमान में एक सीप का बाजार भाव करीब 20 से 30 रुपए के बीच है। बाजार में एक मिमी से लेकर 20 मिमी साइज के सीप के मोती का दाम करीब 300 रुपए से लेकर 2000 रुपए के बीच मिलता है। सीप से मोती निकालने के बाद सीप को बाजार में भी बेच जा सकता है। भारतीय बाजार की अपेक्षा विदेशों में मोती का निर्यात कर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। बेहतर क्वालिटी और डिजाइनर मोती की कीमत इससे कहीं अधिक 10 हजार रुपए तक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मिल जाती है। सीप की संख्या को बढ़ाकर कमाई को बढ़ाया जा सकता है।
अगर किसान भाई चाहें तो हैदराबाद, सूरत, अहमदाबाद, मुंबई जैसे शहरों में सीधे भी अपने मोती बेच सकते हैं। इन शहरों में हजारों कारोबारी हैं, जो मोती का के व्यवसाय में लगे हुए हैं। वहीं कई बड़ी कंपनियां देशभर में अपने एजेंटों के माध्यमों से मोतियों को खरीदती हैं। आप चाहें तो इन कंपनियों से भी संपर्क में रह सकते हैं। अगर आपको इंटरनेट की समझ है तो आप ऑनलाइन भी अपने मोती बेच सकते हैं। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार एक असली मोती की कीमत लगभग 360 रुपये / कैरेट और 1800 रुपये प्रति ग्राम होती है।
देश में मोती की खेती के लिए कई जगह ट्रेनिंग मिलती है। मोती की खेती थोड़ा वैज्ञानिक खेती है। इसलिए इसे शुरू करने से पहले किसानों को प्रशिक्षण की जरूरत होती है। इंडियर काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च के तहत एक विंग देश में बना हुआ है। इस विंग का नाम सीफा यानी सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर है। यह मोती की खेती की ट्रेनिंग देता है। इसका मुख्यालय उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में है। यह संस्थान ग्रामीण नवयुवकों, किसानों एवं छात्र-छात्राओं को मोती उत्पादन पर तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करता है। यहां पर कोई भी 15 दिनों की ट्रेनिंग ले सकता है। भारत सरकार का सेंट्रल मेरिन फिसरिज रिसर्च इंस्टीच्यूट ने केरल के तिरुवनंतपुरम में व्यवसायिक रूप से मोती के उत्पादन का बड़ा केंद्र स्थापित किया है।
मोती की खेती के लिए कई संस्थाओं व बैंकों द्वारा लोन उपलब्ध कराया जाता है। यह लोन नाबार्ड और कई बैंक से मिलता है। इस लोन पर कम ब्याज देना होता है और 15 सालों तक चुकाने के लिए समय भी मिलता है।
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