प्रकाशित - 14 Jun 2024
देश में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन होने के बावजूद ओपन मार्केट में इस प्रकार का माहौल बन रहा है कि सर्दियों तक गेहूं का भाव 3000 हजार रुपए प्रति क्विंटल के आस-पास पहुंच सकता है। ऐसे में गेहूं की कीमतों में तेजी की उम्मीद से बड़ी संख्या में किसानों और व्यापारियों ने गेहूं को बेचने से रोक रखा है। लेकिन केंद्र सरकार के इस फैसले से गेहूं के दाम में तेजी पर ब्रेक लग सकता है। सरकार ने बता दिया है कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में गेहूं का स्टॉक है। केंद्र सरकार ने गेहूं की इंपोर्ट ड्यूटी में किसी भी प्रकार के बदलाव से इनकार किया है। सरकार का कहना है कि देश के पास 80 करोड़ लोगों को फ्री गेहूं बांटने के बावजूद बड़ी मात्रा में गेहूं बचेगा। देश में गेहूं का संकट जैसी स्थिति पैदा नहीं होगी। आइए, ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट से जाने कि गेहूं की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए सरकार क्या प्रयास कर रही है और किसान को अपना गेहूं कब तक बेच देना चाहिए।
देश में गेहूं का औसत भाव 2400 से 2600 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है। जबकि विदेशी बाजार में गेहूं की कीमतों में गिरावट का सिलसिला जारी है। शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबीओटी) पर गेहूं की कीमत 6.84 डॉलर प्रति बुशल यानी 21,000 रुपये प्रति टन पर चल रही हैं। रूसी गेहूं की कीमत 235 डॉलर प्रति टन यानी 19,575 रुपये के आसपास है। इस प्रकार देखें तो दूसरे देशों में 2000 से 2100 रुपये प्रति क्विंटल का भाव चल रहा है। अगर विदेशों से गेहूं मंगाते है तो उस पर 40 प्रतिशत इंपोर्ट ड्यूटी और माल-भाड़ा खर्च चुकाना होगा। ऐसी स्थिति में यह गेहूं भारतीय बाजार से महंगा साबित होगा। इसलिए इंपोर्ट ड्यूटी को शून्य करने की मांग की गई है। ताकि भारतीय बाजार से कम कीमत में गेहूं का आयात हो सके। जबकि भारत में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य ही 2275 रुपए प्रति क्विंटल है। हाल ही में टर्की ने भी गेहूं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम कम हुए हैं। टर्की रशिया से बड़ी मात्रा में गेहूं का आयात करता है।
केंद्र में मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल शुरू हो चुका है। सरकार ने अपने 100 दिन के एजेंडे में खाद्यान्न, दलहन और तेल-तिलहन की कीमतों को नियंत्रित रखने का एजेंडा रखा है। चालू रबी मार्केटिंग सीजन के दौरान 11 जून 2024 तक किसानों से 266 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद एमएसपी पर की जा चुकी है। सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए 184 लाख मीट्रिक टन गेहूं की जरूरत होगी। इसके लिए सरकार के पास पर्याप्त स्टॉक है। वहीं उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने कहा कि गेहूं के बाजार मूल्य पर सक्रिय रूप से नजर रखी जा रही है। सरकार गेहूं की कीमतों में तेजी रोकने के लिए जमाखोरी पर तुरंत एक्शन लेगी।
दरअसल, गेहूं और उसके आटे के बिजनेस से जुड़े बिजनेस ग्रुप यह चाहते हैं कि सरकार गेहूं पर लगने वाली 40 प्रतिशत इंपोर्ट ड्यूटी को शून्य कर दे जिससे वह विदेशों से सस्ता गेहूं मंगा सके। अगर सरकार इंपोर्ट ड्यूटी शून्य करती है तो ये ग्रुप विदेशों से सस्ता गेहूं मंगा सकेंगे और देश का किसान गेहूं सस्ता होने के डर से अपना गेहूं कम दाम पर बेचने को मजबूर हो जाएंगे। इसके बाद ये ग्रुप भविष्य में गेहूं की कृत्रिम कमी बताकर गेहूं व आटे के दाम बढ़ा सकते हैं। लेकिन अब केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि गेहूं पर आयात शुल्क घटाने का कोई विचार नहीं है। इससे गेहूं के दाम एमएसपी से ऊपर बने रहेंगे। लेकिन सरकार गेहूं के दाम में ज्यादा तेजी नहीं आने देगी।
इधर, गेहूं में तेजी की उम्मीद लगाए बैठे एक वर्ग का कहना है कि गेहूं के आटे की कीमत आगामी 15 दिनों में 28 से 31 रुपए प्रति किलो तक पहुंच सकती है। सर्दी आते-आते गेहूं का भाव 2800 से 3000 रुपए प्रति क्विंटल तक देखने को मिल सकता है। रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रमोद कुमार भी पिछले दिनों सरकार से मांग कर चुके हैं कि भारत को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए शून्य शुल्क पर गेहूं का आयात करने की जरूरत है।
केंद्र सरकार का कहना है कि देश में गेहूं का उत्पादन उसकी मांग से ज्यादा है। देश में गेहूं की सालाना खपत 1050 लाख मीट्रिक टन है। जबकि वर्तमान सीजन में 1129.25 लाख मीट्रिक टन गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान है। वहीं देश में गेहूं का स्टॉक कम होने की अफवाह फैलाने वालों को जवाब देते हुए मंत्रालय ने कहा है कि बफर स्टॉकिंग मानदंड वर्ष की प्रत्येक तिमाही के लिए अलग-अलग होते हैं। देश में 1 जनवरी, 2024 तक गेहूं का भंडार 138 लाख मीट्रिक टन के निर्धारित बफर मानक के मुकाबले 163.53 लाख टन था। गेहूं का स्टॉक किसी भी समय तिमाही बफर स्टॉक से नीचे नहीं रहा है।
कुल मिलाकर देश में गेहूं का इतना स्टॉक है कि ज्यादा कीमत बढ़ने की उम्मीद नहीं है। अगर मानसून सीजन में अच्छी बारिश होती है तो रबी सीजन में बेहतर बुवाई होगी। अगर मानसून सीजन में कम बारिश होती है तो गेहूं की कीमतों में जरूर तेजी देखने को मिल सकती है।
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