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मछली के साथ बत्तख पालन से होगा महिलाओं को दोगुना मुनाफा

प्रकाशित - 22 Dec 2022

जानें, क्या है  बिहान योजना और इससे कैसे मिलेगा लाभ

छत्तीसगढ़ सरकार प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन करने के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार की योजनाओं का संचालन करती रहती हैं। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ राज्‍य ग्रामीण आजीविका मिशन ‘बिहान’ की शुरुआत की गई है। बिहान योजना मूल रूप से छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में आजीविका की गारंटी के विकल्‍प के रूप में सामने आई है। इस योजना के तहत प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में विभिन्‍न प्रकार के रोजगार का सृजन व आजीविका के लिए महिलाओं के समूहों को मछली पालन के साथ-साथ बतख पालन करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इतना ही नहीं महिलाओं को मछली व बतख भी पालने के लिए दिए जा रहे हैं। बिहान योजना का मुख्‍य उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में रहने वाले परिवारों की आय में वृद्धि करके उसे सालाना 1 लाख रुपए के ऊपर ले जाना है। आज ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की इस योजना से जुड़ी जानकारी आपके साथ साझा करेंगे।

क्या है छत्‍तीसगढ़ राज्‍य ग्रामीण आजीविका योजना?

छत्तीसगढ़ राज्‍य ग्रामीण आजीविका योजना को पूरे राज्‍य में बिहान योजना के नाम से भी जाना जाता है। बिहान योजना मूल रूप से छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में आजीविका की गारंटी विकल्‍प सुनिश्चित करना है। इस योजना के तहत प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं व पुरुषों के लिए विभिन्‍न प्रकार के रोजगार का सृजन व आजीविका के नए- नए साधन स्थापित किए जा रहे हैं। इस योजना के तहत सरकार स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को कृषि सखी, पशु सखी ,महिला किसान क्रेडिट कार्ड ,बैंक सखी ,बकरी पालन समूह , मधुमक्‍खी पालन समूह, न्‍यूट्री गार्डन प्रमोशन समूह , बैंक मित्र आदि क्षेत्रों में सरकार रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाती हैं।
छत्‍तीसगढ़ राज्‍य ग्रामीण आजीविका योजना ( बिहान योजना) के उद्देश्य

सरकार की इस योजना के निम्नलिखित उद्देश्य हैं जो इस प्रकार से हैं

  • बिहान योजना का मुख्‍य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों की आय में वृद्धि करके सालाना 1 लाख रुपए के ऊपर ले जाना है।
  • राज्‍य के प्रत्‍येक निर्धन परिवार से कम से कम 1 महिला को अनिवार्य रूप से बिहान योजना छत्तीसगढ़ के तहत संचालित स्‍वयं सहायता समूहों के साथ जोड़ना।
  • स्‍वयं सहायता समूहों की ग्रामीण महिलाओं का सर्व भौमिक सामाजिक संगठन तथा सामुदायिक संस्‍थाओं का गठन करके नियमित उनका मार्गदर्शन करना।
  • योजना के तहत समूहों का संघ बना कर महिलाओं को उचित मौके प्रदान करना।
  • बिहान बाजार जैसे कार्यक्रमों के जरिये महिलाओं को उत्‍पादन तथा बिक्री के लिये बाजार उपलब्‍ध करवाना।
  • ग्रामीण स्‍तर पर नये रोजगार सृजन करके महिलाओं को रोजगार प्रदान करना।

बिहान योजना के अंतर्गत महिलाओं को मिल रहा लाभ

छत्तीसगढ़ सरकार की इस योजना का लाभ लेकर महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं। प्रदेश सरकार राज्य में मछली पालन व बतख पालन की इच्छुक महिलाओं को मछली व बतख उपलब्ध करवा रही हैं जिससे महिलाओं को सालाना लाखों रुपए की आमदनी हो रही हैं। गांव की महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर तालाब में मछली पालन करने के साथ-साथ बतख का पालन भी कर रही हैं जिससे महिलाओं की आमदनी बढ़ रही हैं।

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बत्तख-मछली पालन एक साथ करने के फायदे

ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब में जहां भी पानी भरा होता है, वहां आपको बत्तखों का झुंड अक्सर देखने को मिल जाएगा। अगर मछली पालन के साथ बत्तख पालन किया जाए तो दोनों ही व्यवसायों को एक-दूसरे से सहयोग मिलता है और उत्पादन लागत में भी कमी आती है।
मछली के आहार पर भी आपको लगभग 70 प्रतिशत तक कम खर्च करना पड़ेगा और बत्तख तालाब की गंदगी को खाकर उसकी साफ़-सफ़ाई भी कर देते हैं। बत्तखों के पानी में तैरने से तालाब में ऑक्सीज़न लेवल भी बढ़ता है। इससे मछलियों का भी अच्छी तरह से विकास होता है।

मछली पालन के साथ बत्तख पालन व्यवसाय करने की तकनीक 

अगर आप भी मछली पालन करने के साथ-साथ बत्तख पालन करना चाहते हैं तो इसमें बारहमासी तालाबों का चयन किया जाता है, तालाब की गहराई कम से कम 1.5 मीटर से 2 मीटर तक की होनी चाहिए। 2 वर्ग फ़ीट प्रति बत्तख की जगह के अनुसार, तालाब के ऊपर या किसी किनारे बत्तख के लिए घर बना सकते हैं। बत्तख दिन में तालाबों में घूमते हैं और रात में उन्हें आराम करने के लिए घर की ज़रूरत होती है। तालाब पर बांस व लकड़ी से बत्तख के लिए बाड़ा बनाना चाहिए। बाड़े हवादार के साथ-साथ सुरक्षित भी होने चाहिए।
बत्तखो में ‘इंडियन रनर’ की प्रजाति सबसे अच्छी मानी जाती है। अंडों के लिए ‘खाकी कैम्पबेल’ सबसे अच्छी प्रजाति मानी जाती है। इनसे साल भर में लगभग 240 से 260 तक अंडे मिल जाते हैं। आमतौर पर बत्तखें 24 सप्ताह की उम्र के बाद अंडे देना शुरू कर देती हैं। एक बत्तख 2 साल तक अंडे देती हैं। अगर एक एकड़ का तालाब है तो आसानी से आप 250 से 300 बत्तख पाल सकते हैं।

बत्तख व मछली पालन के लिए आहार प्रबंधन

अगर आप बत्तख व मछली पालन एक साथ करते हैं तो आहार पर आपको लगभग 30 प्रतिशत कम खर्च आएगा। बत्तख को 120 ग्राम दाना रोज देना ज़रूरी होता है, लेकिन मछली के साथ बत्तख पालन में 60 से 70 ग्राम दाना देकर आप आहार की मात्रा पूरी कर सकते हैं। इसके अलावा, बत्तख के पानी में तैरने से पानी का ऑक्सीजन लेवल अच्छा रहता है, जो मछलियों के लिए बहुत ज़रूरी होता है। साथ ही बत्तख के बीट से मछलियों को भोजन मिल जाता है, यानी उनके आहार पर भी कम खर्च होता है। मछलियों को भोजन में सरसों की खली, धान की भूसी, मिनरल मिक्स्चर, घास बरसीम, जई, सब्जी का छिलका और बाज़ार में तैयार फ़ीड देनी चाहिए। इन सबको आप बोरे में बंडल बनाकर आधा तालाब में डूबोकर रस्सी से बांधकर लटका भी सकते हैं।

मछली के साथ बत्तख पालन करके कमाएं दोगुना लाभ 

एक मछली 6 से 9 महीने के अंदर एक से 1.5 किलो वजन तक की हो जाती हैं। एक एकड़ तालाब के क्षेत्र में 20 से 25 क्विंटल मछली का उत्पादन आसानी से हो जाता है, जिससे 5 से 6 लाख रुपए का मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ़ बत्तख पालन से सालाना 3 से 4 लाख रुपए आसानी से कमाएं जा सकते हैं। भारत की बात करें तो बत्तख पालन अंडा और मीट के लिए पूर्वी भारत के पूरे इलाक़े में काफ़ी प्रचलित व्यवसाय है। बत्तख पालन करने वाले किसान बत्तख के अंडे पूर्वी भारत के राज्यों में भेजकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

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