फसल की बेहतर पैदावार के लिए क्यों जरूरी है जिंक और कॉपर

Share Product प्रकाशित - 05 May 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

फसल की बेहतर पैदावार के लिए क्यों जरूरी है जिंक और कॉपर

जानें, फसलों के लिए जिंक और कॉपर का महत्व और इसका उपयोग

फसलों की अच्छी पैदावार के लिए उनको पोषक तत्व मिलने बहुत जरूरी होते हैं। पोषक तत्वों का फसलोत्पादन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। आज मिट्‌टी की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है। इसके पीछे कई कारण है, लेकिन इसकी उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए फसलों को जिंक और कॉपर की अनुशंसित मात्रा अवश्य देनी चाहिए इससे फसल उत्पादन तो बढ़ता ही है, साथ ही मिट्‌टी की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। एक ही खेत में लगातार फसल उत्पादन के कारण मिट्‌टी में माइक्रो न्यूट्रिएंट (सूक्ष्म पोषक तत्व) की कमी आती जा रही है जिससे असंतुलन बढ़ गया है। जिंक की कमी से फसलों में बीमारियां बढ़ती है जिसका सीधा असर फसलोत्पादन पर पड़ता है। ऐसे में फसलों में जिंक और कॉपर की मात्रा देना बहुत जरूरी हो जाता है।

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पौधों में जिंक की कमी के क्या होते है लक्षण

पौधों में जिंक की कमी से छोटी पत्तियां पीली पड़ने लगती है। इसमें सबसे अधिक प्रभाव नई पत्तियों पर पड़ता है और इसके साथ ही इससे पुरानी पत्तियां भी प्रभावित होने लगती है। जिंक की कमी से पत्तियां सफेद, हल्की पीली, कांस्य या पीले रंग की हो जाती हैं।

पौधे में जिंक की कमी को कैसे दूर किया जा सकता है

पौधे में जिंक की कमी को दूर करने के लिए कई अलग-अलग जिंक यौगिकों का उपयोग उर्वरकों के रूप में किया जाता है, लेकिन इसमें सबसे अधिक जिस उर्वरक का उपयोग होता है वह जिंक सल्फेट है। विभिन्न मिटि्टयों की स्थितियों के कारण उनमें जिक की कमी हो सकती है। ऐसे में मिट्‌टी की जांच करके आप जिंक की कमी का पता लगा सकते हैं।

पौधों में कॉपर की कमी से क्या है लक्षण

पौधों में कॉपर की कमी के कारण पौधे की वृद्धि धीमी हो जाती है। नई पत्तियां बौनी रह जाती हैं। इसके अलावा पौधों की पत्तियां सूखने लगती है और पौधों का विकास रूक जाता है जिसका प्रभाव फसलोत्पादन पर पड़ता है। यदि पौधों में कॉपर की अधिकता हो जाए तो भी खराब है। इसकी अधिकता से पौधे बहुत धीमी गति से बढ़ाेतरी के साथ आयरन की कमी को दर्शाते हैं। इसके साथ पौधों की जड़ें रूकी हुई रह जाती हैं।

पौधों में कॉपर की कमी को कैसे करें दूर

पौधों में कॉपर की कमी को पूरा करने के लिए मिट्‌टी के पीएच मान की अहम भूमिका होती है। ऐसे में यदि आप पौधों को मिट्‌टी मे उगा रहे हैं, तो जड़ों के लिए तांबे का अवशोषण 6.0 से 7.0 के पीएच रेंज के साथ सबसे अच्छा रहता है। यदि आप हाइड्रो का उपयोग कर रहे हैं तो पीएच रेंज 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। तांबे की कमी को दूर करने के लिए आपको सही पोषक तत्वों से युक्त उच्च गुणवत्ता वाली मिट्‌टी का इस्तेमाल करना चाहिए। वहीं पौधों में कॉपर की कमी को दूर करने के लिए रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी किया जाता है। पौधों में तांबे की कमी को दूर करने के लिए ईडीटीए (एथिलीनडायमिनेटेट्राएसिटिक एसिड) का प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ ही आयरन, जिंक ऑक्साइड भी डाला जा सकता है। तांबे की कमी को पूरा करने के लिए जमीन में खुबानी बीज को मिलाना चाहिए।

मिट्‌टी में पोषक तत्वों की कमी का पता कैसे लगाए

खेत में फसल बोने से पहले मिट्‌टी जांच अवश्य करानी चाहिए। किसान मिट्‌टी की जांच करवाकर उसकी सेहत के बारे में जान सकते हैं। मिट्‌टी की जांच से खेत के स्वास्थ्य और उपजाऊ क्षमता की जांच करने में सहायता मिलती है। यह किसानों को मिट्‌टी के प्राकृतिक गुणों, उसमें मौजूद खनिज तत्व और उसकी क्षमता के बारे में जानकारी देते हैं। मिट्‌टी परीक्षण से किसान सही उर्वरकों का चयन कर सकता है। यह भी पता लगा सकता है कि मिट‌्‌टी में कौन-कोन से पोषक तत्वो की कमी है और उन्हें कैसे पूरा किया जा सकता है। इसके लिए किसान सही उर्वरक का चयन भी कर सकते हैं। सही उर्वरक का चुनाव करने से पैदावार बढ़ती है। मिट्‌टी परीक्षण करवा कर किसान अपने खेत को उपजाऊ बना सकते हैं। मृदा परीक्षण के लिए आप अपने स्थानीय कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा आप विभागीय प्रयोगशाला में भी मिट्‌टी की जांच करा सकते हैं।

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